गर्मी के मौसम में परंपरागत पेय पदार्थो का अभाव, दूध की बिक्री के कारण अब भोजन में नहीं मिलता दही व लस्सी का स्वाद Shortage of Beverages in Summer Season

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Shortage of Beverages in Summer Season

ग्रामीण क्षेत्रों से लुप्त होता जा रहा है, हरियाणा का परंपरागत खाना Shortage of Beverages in Summer Season

अमित वालिया, लोहारू: 
Shortage of Beverages in Summer Season: देसां म्है देश हरियाणा, जित दूध-दही का खाणा। हरियाणा प्रदेश की पहचान देश व विदेश में शायद इन पंक्तियों से ही होती है, लेकिन वर्तमान स्थिति पर गौर किया जाए तो हरियाणा की पहचान के लिए बनाई गई ये पंक्तियां केवल इतिहास बनकर रह गई है। गांवों में न अब खाने में दूध मिलता है, न ही दही, लस्सी तो जैसे घरों से लुप्त ही हो गई है। अधिक मुनाफे के चक्कर में ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालक अब दूध-दही का खानपान करने की बजाय उसे बेचना पसंद करते है, तथा इसके बदले में उन्हें अच्छी कीमत भी मिलती है। खास बात तो यह है कि पशुपालकों को दूध बेचने के लिए बाजार या फिर किसी अन्य स्थान पर जाना नहीं पड़ता, बल्कि दूध खरीदने के लिए विभिन्न नामी गिरामी डेयरियों की गाडिय़ां हर गांव व कस्बे से लेकर ढ़ाणियों तक अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी है।

पिछले कुछ वर्षो से क्षेत्र में दूध बिक्री का काम जोरों पर Shortage of Beverages in Summer Season

Shortage of Beverages in Summer Season

सुबह से लेकर देर रात तक दूध एकत्रित करने के बाद यह दूध डेयरियों द्वारा पूरे देश में सप्लाई होता है। लोहारू व सतनाली क्षेत्र की बात की जाए तो क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षो  से पशुपालकों ने दूध बेचना शुरू किया हुआ है। इस कारण वे लोग खुद भी दूध, दही और लस्सी से वंचित होते जा रहे हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों से भी गर्मी के मौसम में प्रयोग किए जाने वाले परंपरागत पेय पदार्थ लुप्त होते जा रहे है। गर्मी के मौसम में ग्रामीण क्षेत्र में लोग सुबह और दोपहर के खाने में दही या लस्सी जरूर लेते है। इसके बाद रात के खाने के साथ वे दूध पीते हैं। मगर पिछले कुछ वर्षो से क्षेत्र में दूध बिक्री का काम जोरों पर है। इस कारण अच्छे खाते पीते घरानों में भी दही और लस्सी तो क्या दूध का भी टोटा रहने लगा है। पुराने समय में कोई ग्रामीण दूध नहीं बेचता था।

दूध बेच दिया तो समझो पूत बेच दिया Shortage of Beverages in Summer Season

अगर कोई ऐसा करता तो गांव के ही लोग उस पर ताने मारते हुए कहते थे कि दूध बेच दिया तो समझो पूत बेच दिया। लेकिन अब जमाना बदल चुका है तथा पशु पालक अब गाय या भैंस को खिलाए जाने वाले बिनौला और खल का खर्चा निकालने के लिए दूध बेच रहे हैं। कई लोगों का तो यह आजीविका का साधन भी बन गया है। बुजूर्ग हरिसिंह, भान सिंह शेखावत, रामेश्वर आदि ने कहा जिस आदमी की आर्थिक स्थिति ठीक है और वह अपना दूध बेच रहा है तो उसे पड़ोसियों की लस्सी का स्वाद लेने का हक नहीं है।

आजकल खाते पीते घरों के जमींदार अपने पशुओं का दूध बेच रहे Shortage of Beverages in Summer Season

वहीं सुमित्रा व राम रती देवी का कहना है कि आजकल खाते पीते घरों के जमींदार अपने पशुओं का दूध बेच रहे हैं। इस कारण गांवों में लस्सी को लेकर मारामारी हो गई है। इस तरह के लोग हमारे घर भी लस्सी लेने आ रहे हैं। हमारे यहां तो उसी को लस्सी मिलती है जो सबसे पहले आता है। कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन इतना अवश्य है कि शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से भी हरियाणा का परंपरागत भोजन दूध, दही व लस्सी लुप्त होते जा रहे है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में भी विभिन्न डेयरियों के दूध ने दस्तक दे दी है, हो भी क्यों न क्योंकि महंगाई को देखते हुए पशुओं के आहार आदि का खर्चा निकालने के लिए पशुपालकों द्वारा दूध को बेचा जाना उनकी मजबूरी बन चुकी है।
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