HomeपंजाबUncategorizedSATIRE: अरे बैताल इतना उदास क्यों बैठा है?

SATIRE: अरे बैताल इतना उदास क्यों बैठा है?

अरे बैताल इतना उदास क्यों बैठा है? और ये क्या तुने अपने पेड़ पर लिख दिया है, नेताओं का इधर से गुजरना मना है।
कुछ नहीं विक्रम। मैं तो नेताओं की दूरदर्शी निगाह को लेकर थोड़ा परेशान हूं।
क्यों क्या हो गया?
क्यों तुम्हें पता नहीं विक्रम, ये नेता लोग चुनावी मौसम में कहां-कहां देख ले रहे हैं।
नेता हैं। जनप्रतिनिधि हैं। उनका अधिकार है वो कहीं भी देख लें।
अरे नेता हैं तो इसका क्या मतलब वो कहीं भी देख लेंगे?
कुछ समझा नहीं बैताल, खुल कर बता थोड़ा।
देख विक्रम खुल कर तो नहीं बताऊंगा, पर तूं मेरी बातों को इशारों-इशारों में समझ ले। चुनाव आयोग की निगाह आजकल हर जगह है।
तुझे किस बात का डर बैताल?
अरे मैं बैताल हूं तो क्या हुआ मेरी भी इज्जत है। मेरी भी प्रतिष्ठा है। मुझे भी अपनी इज्जतगोई का डर है।
अच्छा ये बात है। मैं समझ गया बैताल, लगता है तूं रामपुर की सैर कर आया है।
हां ठीक समझा तूं विक्रम।
हा हा हा हा हा… इसीलिए बैताल तुने अपनी कमर के नीचे ये कंबल लपेट लिया है।
और क्या। मुझे तो अब इन नेताओं से बहुत बच बचाकर रहने में ही अपनी भलाई समझ आ रही है। पता नहीं कौन इधर से गुजरे और मेरे नीचे की पोल खोल दे। तूं भी अपनी इज्जत की खैर चाहता है तो इन नेताओं से बचकर रह। तुझे पता नहीं इनकी नजर कितनी दूर तक जाती है।

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