Private hospitals should be run responsibly: जिम्मेदारी से भागते प्राइवेट अस्पतालों पर हो कार्रवाई

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लॉकडाउन के चलते पूरी दुनिया की संचालन प्रक्रिया इस कदर प्रभावित हो गई कि सरकारी हो या प्राइवेट,सभी संस्थाएं यह निर्णय नही ले पा रही हैं कि उन्हें किन नियम-कानून के तहत काम करना है। कानूनी दांवपेचों में फसी एक ऐसी ही घटना सामने आई है और यह खबर मानव के जीवन से जुडी है।दरअसल, मामला यह है कि जब कोई महिला गर्भवती होती है और यदि वो सरकारी अस्पताल में प्रसव कराना चाहती है तो उसको तीन महीने की गर्भवती होने पर अस्पताल में पंजीकरण करवाना अनिवार्य होता है। प्रसव होने तक पूरा इलाज संबंधित अस्पताल में चलता है। वहीं दूसरी ओर अधिकतर मध्यमवर्गीय परिवार या पूंजीपति प्राइवेट अस्पतालों में प्रसव कराते हैं और जैसा कि शुरूवात से लेकर प्रसव तक वह भी उस अस्पताल से जुडे रहते हैं। लेकिन अब लॉकडाउन के चलते ऐसे परिवारों को परेशानी यह आ रही है कि इस दौरान लोगों के पास पैसा नही हैं या खत्म हो गया और अधिकतर प्राइवेट अस्पताल के मालिकों ने कोरोना के डर से अस्पताल बंद कर दिए और जो खुले हैं वो डिलीवरी केस नही ले रहे ।दोनों ही स्थिति में इस तरह को लोगों को समस्याओं का सामना करना पड रहा है। इसके बाद की स्थिति यह बन रही है कि लोग परेशान होकर सरकारी अस्पताल की ओर जा रहे हैं लेकिन वहां उनका इलाज करने से मना किया जा रहा है। सरकारी अस्पताल प्रशासन का कहना है कि हमारे पास पहले से ही अपनी क्षमता से अधिक केस होते हैं और यदि किसी ने अपना पंजीकरण पहले से नही कराया हो तो उसका प्रसव हमारे यहां कानूनी तौर पर संभव नही है। ऐसी स्थिति में कई लोग परेशान हो रहे हैं। आखिर करें तो क्या करें ? गर्भवती महिलाओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे तमाम परिवारों सरकारी अस्पतालों के बाहर परेशान होते दिखाई दे रहे हैं।
इस स्थिति में शासन-प्रशासन को ऐसे लोगों के लिए जल्द ही कोई समाधान निकालना होगा।इसके अलावा सरकार को प्राइवेट अस्पतालों पर सख्त कार्रवाई करते हुए उनको खुलावाकर लोगों का इलाज के लिए आदेश जारी करना चाहिए। कई दिन से खबरें आ रही है कि देश में अधिकतर प्राइवेट अस्पताल व क्लीनिक कोरोना के डर से बंद किए हुए हैं। मौजूदा दौर में गर्भवती महिलाओं के अलावा ऐसे मरीजों को भी दिक्कत आ रही हैं जिनका डायलिसिस या अन्य रेगूलर इलाज वाली बीमारी के लिए अस्पताल जाना पडता है। पूरी दुनिया और देश में चल रही स्थिति से बाहर आने के लिए मानवता व एकजुटता की जरुरत है लेकिन जो लोग अपने कर्तव्य को छोडकर भाग रहे हैं जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर,नर्स से लेकर सफाई कर्मचारी अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की जनता को बचाने का हर अथक प्रयास कर रहे हैं लेकिन ऐसे समय पर कायरों की तरह भागने वाले प्राइवेट अस्पतालों के मालिक व उसमें काम करने वाले डॉक्टरों या अन्य स्टॉफ की कार्यशैली पर तमाम तरह के सवालिया निशान खडे हो रहे हैं। कई प्राइवेट डॉक्टर न मिलने के लिए तरह-तरह के बहाने भी बना रहे हैं। जब यह लोग मरीजों से मोटी फीस लेते हैं और मीठी-मीठी बात करके अपने मरीज के रुप में ग्राहक बढ़ाते हैं तो अब अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोडकर क्यों भाग रहे हैं ? ऐसे में कुछ खबरें ऐसी भी आई कि कुछ महिलाओं का प्रसव अस्पताल की सीढ़ियों या घर पर ही हो गया।
बहरहाल, कोरोना वॉयरस की वजह से अभी कई तरह के कू-प्रभाव आने बाकी हैं लेकिन केंद्र व राज्य सरकारों को ऐसे गंभीर मामलों पर गंभीरता दिखाते हुए कडे एक्शन आॅफ प्लान की जरुरत है। यदि इसमें देर हो गई तो मानव जीवन की अप्राकृतिक हानि शुरू हो जाएगी। इसके अलावा इस तरह की घटनाओं से शासन-प्रशासन को सीख लेनी चाहिए कि जो भी कोई प्राइवेट संस्थान देश पर आपदा के समय अपनी जिन्मेदारियों से भागे तो उस पर कडी कार्रवाई का नियम-कानून होना चाहिए। यदि हिन्दुस्तान के परिवेश में बच्चों के पैदा होने के आंकडे पर गौर करें तो एक मिनट में 34 बच्चे पैदा होते हैं तो इससे हिसाब लगाया जा सकता है कि हाल क्या हो सकता है। केन्द्र सरकार व राज्यों सरकारों ने ने प्राइवेट अस्पतालों को आर्थिक तौर पर मदद देने के लिए भी कहा था कि आप सभी लोगों का इलाज वैसे ही करते रहें जैसे चल रहा था जिसका सरकार आपको पैसा देगी लेकिन इसके बाद कोई अस्पताल हरकत में नही आया। यदि इस ही बात को कडे कानूनों के दायरे में लाकर नियम जारी कर दिए होते तो निश्चित तौर पर सभी अस्पताल हरकत में आ जाते। इसके अलावा अहम बात यह है कि कोरोना से पीडित मरीजों के लिए प्राइवेट कंपनियों ने हेल्थ इंशोरेंस का पैसा देने से मना कर रही हैं,यह भी एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला है इस पर भी सरकार को सख्ती दिखानी होगी। जब कभी भी हमारे देश में बडे स्तर मानव जीवन पर आपदा आई है तब हमनें साथ मिलकर हर चुनौती को हराया है लेकिन कुछ लोगों के स्वार्थ और भय के कारण भगवान रुपी समझने वाला डॉक्टरों का पेशा कंलकित हो रहा है। इसलिए इस लेख के माध्यम से सभी प्राइवेट अस्पताल व क्लिनीक के मालिकों से यही प्रार्थना है कि अपने फर्ज को समझते हुए जरुरतमंदो का इलाज करते रहें।

योगेश कुमार सोनी
वरिष्ठ पत्रकार

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