खिलाड़ियों के होते हैं जीत के मजबूत इरादें

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डाॅ.श्रीकृष्ण शर्मा
खेलों में हर खिलाड़ी शीर्षता पाने के मजबूत इरादों के साथ ही उतरता है। टोक्यो ओलंपिक खेलों के सेमीफाईनल में जगह बनाकर भारत के लिए पदक पक्का करने वाली मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन ने भी कहा कि ‘मैं कांस्य पदक पर रूकना नहीं चाहती। मैं स्वर्ण लाना चाहती हंूु। पदक एक ही होता है वो है स्वर्ण।’ हार जीत खेल की ऐसी शब्दावली है जो खेल की व्याख्या कर देती है। मैदान पर शीर्षता पाने की प्रतिद्वंदिता देखते ही बनती है। परिणाम किसी के भी पक्ष में हो लेकिन विजयी को पराजित हुए खिलाड़ी  द्वारा मुबारकबाद देता देखकर खेलो के आयोजन के मकसद एकदम साफ समझा जा सकता है। यही है खेल भावना। जहां खेल की सराहना पराजित भी करता नजर आता है। जब खिलाड़ी पराजित होकर मैदान से बाहर निकलता है तो उन्हें जनता के कई तरह की नाराजगी का सामना करना पड़ता है। जनता की उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन की असफलता परेशानी का सबब बन जाती है। जिससे खेल भावना तो आहत होती ही है साथ ही खेलों से जुड़ने का मन बनाने वाली नई पौध पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है। खिलाड़ी के तौर पर खिलाड़ी का पूरा जीवन देश के लिए स्वर्ण पदक की इच्छा लेकर ही आगे बढता रहता है। यही वजह है कि खेलों के शुरू होने से पहले ही खिलाड़ियों को उत्साहित करने के लिए पूरा देश उनके साथ दिखाई पड़ता है। ओलंपिक खेलों में डेब्यू करने वाली भारत की एकमात्र तलवारबाज भवानी देवी कहा कि ‘जो ओलंपिक्स से बिना मेडल के लौटेंगे उनका भी उसी तरह से समर्थन किया जाना चाहिए जैसा पहले किया गया था। भवानी देवी ने कहा कि ‘एक खिलाड़ी की जिंदगी बहुत मुश्किल होती है, खिलाड़ी स्वर्ण पदक के लिए काम करता है। कुछ जीत पाते हैं, कई उस पदक को नहीं जीत पाते हैं लेकिन यह अंत नहीं होता, हमें वही समर्थन चाहिए होता है।’ मैदान पर केवल खिलाड़ी नहीं पराजित होता, पूरी खेल व्यवस्था फेल होती है। भारतीय खेल प्राधिकरण की योजनाएं फेल होती हैं। खेल महासंघ की कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। खेल के गुरू और देश की हार होती है। यही सब जानने के कारण ही खिलाडी अपनी जीत पक्की करने के लिए पूरी ताकत झोेंक देता है। कोई भी जीत किसी को हराकर ही हांसिल होती हैं। यही खेल का नियम है। हार की समीक्षा होनी चाहिए। कमियों को दूर किया जाना चाहिए। हार के कारण बने बिंदुओं को हटा का फिर से तो आगे बढ़ा जा सकता है न कि केवल खिलाड़ी को दोषी ठहराकर।

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