प्रभु नाम का संकीर्तन ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है

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morari bapu
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श्री राम कथा में संत मोरारी बापू ने कहा कि कई जन्मों तक भी यदि प्रेम का संचार न हो तो भगवान नहीं प्राप्त होते हैं। प्रेम प्रकट हो जाने पर भगवान एक ही जन्म में मिल जाते हैं। उन्होंने कहा कि भरत चरित्र अगम और अनूप है, क्योंकि भरत के चरित्र में चारों आश्रमों के लोग अपने-अपने दर्शन करते हैं। बृहस्पतिवार को दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम परिसर में चल रही आनलाइन श्रीराम कथा में संत मोरारी बापू ने रामजन्म की कथा का वर्णन किया। कहा कि रामकथा सूर्य की किरण के समान है। भरत चरित्र के सप्तशील, सत्यशील, धर्मशील, कर्मशील, कुलशील, रूपशील, धैर्यशील, विनम्रशील को प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन मे अनुकरण करना चाहिए, वही वास्तविक भक्ति है। ईश्वर को सदैव अपना मन अर्पण करना चाहिए, जिससे जीवन मे सार्थकता आती है।

रामकथा विश्वास का ग्रंथ है, क्योंकि यह विश्वनाथ का ग्रंथ है।  रामकथा मयार्दा की कथा है इसलिए शंकर जी ने पार्वती जी का नाम नही लिया बल्कि उन्हें गिरिराज कुमारी से संबोधित किया। उन्होंने कहा कि यथा समय यथा शक्ति और यथा मति मनुष्य को श्री हरि नाम का सुमिरन करना चाहिए, क्योंकि इस नश्वर शरीर और नश्वर संसार में इस भवसागर से वही पार लगा सकता है।

भरत का चरित्र इतना विशाल है कि उसमें आप कितना भी डुबो, आपकी चोंच अर्थात आत्मा कभी तृप्त नही हो सकती, सदैव उसके सुनने और जानने की इच्छा प्रबल बनी रहेगी। मोरारी बापू ने कहा राम तो आज भी आपके घर में आ सकते है, परंतु राम को लाने के लिए आपको दशरथ और कौशल्या के गुणों को अपने अंदर समाहित करना पडेगा। जगत कल्याण के लिए सदैव प्रभु का अवतार होता है और प्रभु नाम का संकीर्तन ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।

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