Utterkatha: One drug of every merge, collective responsibility absent, difficulties not easy: उत्तरकथा: हर मर्ज की एक दवा, सामूहिक उत्तरदायित्व नदारद, मुश्किलें आसान नहीं

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सदी के इस सबसे बड़े संकट काल में उत्तर प्रदेश में हर मोर्चे पर उत्तरप्रदेश  के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  डटे नजर आते हैंलेकिन इतनी बड़ी घड़ी में  बीते कुछ हफ्तों से मंत्रिपरिषद, सामूहिक उत्तरदायित्व, एकजुट प्रयास जैसी बातें नेपथ्य में जा चुकी हैं।
देश के इस बसे बड़ी आबादी वाले सूबे में कोरोना काल उतना विकट नहीं है जितना अपेक्षाकृत महाराष्ट्र, दिल्ली, केरल वगैरह में। राहत के हर काम पर मुख्यमंत्री की नजर है और हर मोर्चे पर वह नजर आ रहे हैं। हालांकि इस सबके बाद भी सब कुछ सही हो गया हो वैसा भी नहीं।
इसी बीच बुधवार की शाम हिंदी हृदय प्रदेश के बड़े हिस्से में बड़ों की बेवकूफी से अफरातफरी मच गई और इसका इल्जाम अब मीडिया पर ही जाना है.
वैसे मेडिया के कुछ बेहूदा लोग इसके जिम्मेदार हैं भी.
मुख्य सचिव के एक बयान  और उसके  कुछ घण्टे बाद अपर मुख्य सचिव गृह और सूचना की सफाई के बीच यूपी में पिछले कई दिनों की योगी की सोशल डिस्टेनसिंग की कमाई लुट गई । वहीं अंबेडकरनगर से 15, हरदोई से 23 लोगों से के क्वैरेंटाइन से भागने की खबरे आ रही हैं। गेंहू कटाई के सीजन में किसान परेशान हैं और सरकारी प्रयासो से उनकी समस्या आंशिक ही दूर हो सकी है।
कोरोना संकट के चलते देश के बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, पंजाब से शुरु हुआ मजदूरों, गरीबों का पलायन भीड़ की शक्ल में अब नहीं दिख रहा पर पैदल, गांवों के रास्ते या कस्बाई सड़कों पर लौटते हजारों लोग दिख रहे हैं। परदेस से देस लौटे मजदूरों को अब क्वैरेंटाइन में रखा जा रहा है जहां ये लोग भाग रहे हैं।
सुल्तानपुर में दो दिन पहले बाहर से लौटने वाले 26 प्रवासी मजदूर क्वैरेंटाइन छोड़ भाग गए। लखीमपुर में क्वैरेंटाइन में खानगी से टूटे दलित युवक रोशनलाल ने भाग कर गांव से खाने को बिस्किट खरीदा पर लौटने पर पुलिस ने पीट दिया। पिटाई से आहत नौजवान ने फांसी लगा ली। बीते चार दिनों से आजमगढ़, सीतापुर, रायबरेली, सुल्तानपुर, हाथरस और खीरी से क्वैरेंटाइन किए गए गरीबोंव मजदूरों के भागने की खबरें आ रही हैं। क्वैरेंटाइन छोड़कर भागे कई लोगों पर आपदा प्रबधन अधिनियम व आईपीसी की धारा 269, 270 व 188 के तहत मुकदमा भी दर्ज कराया गया है। कई जगहों पर क्वैरेंटाइन किए गए लोगों, गांव वालों का पुलिस के साथ संघर्ष भी हुआ है। मैनपुरी में तो बाहर से लौटे एक व्यक्ति के बारे में सूचना देने वाली गांव की महिला का कत्ल तक कर दिया गया है।
राज्य की सीमा सील कर देने, बसों का चलना बंद कर देने और बाहर से लौटने वाले लोगों को क्वैरेंटाइन कर देने की कारवाई के बाद पलायन कर रही भीड़ काफी हद तक थमी है। हालांकि अब भी मुख्य सड़कों, गांवों, कस्बों के रास्ते पर दूर से अपने घर लौटते गरीब, मजदूर नजर आते हैं।
उधर कोरोना संकट के चलते पड़ोसी देश नेपाल की सीमाएं भी सील कर दी गयी हैं। इसके चलते नेपाल में फंसे हजारो मजदूर सीमा पर बसे गांवों के रास्ते लौट रहे हैं। बलरामपुर नेपाल सीमा पर कोयलाबास के जंगलों, सीरिया नाका व कृष्णानगर के गांवों से होकर नेपाल में काम रहे लोग लौट रहे हैं। कई दिनों तक बढ़नी बार्डर पर मजदूरों की भीड़ भारत में प्रवेश का इंतजार करने के बाद लौटी है।
लंबा मुश्किलों भरा सफर तय कर अपने घरों को पहुंचे लोगों को सरकार के आदेश पर क्वैरेंटाइन कर गांव से बाहर रखा गया है। अब इन क्वैरेंटाइन की जगहों पर सुविधाओं के अभाव में लोगों ने भागना शुरु कर दिया है। महामारी से बचाव के लिए सभी ग्राम पंचायतों में बाहर से आने वाले मुसाफिरों को क्वैरेंटाइन करके रखा गया है।  कुछ ग्राम पंचायतों से ऐसी सूचना मिल रही है कि लॉकडाउन के दौरान बाहर से आने लोग वहां न रुककर बिना भय के अपने अपने घरों में रहना शुरू कर दिये हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि एक ग्रामपंचायत में लेखपाल,आशा, सफाईकर्मी, कोटेदार, ग्रामपंचायत सचिव, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, आंगनबाड़ी सहायिका जैसे सरकार के प्रतिनिधि मात्र प्रतीकात्मक रूप से सम्बन्धित को सूचना देकर अपने कार्यों की इतिश्री कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जगहों पर क्वैरेंटाइन कर रखे लोगों ने भरपेट खाना न मिलने की शिकायत की है।
कोरोना से रोकथाम को लेकर एक बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बिना भेदभाव के हर जरूरतमंद को समय से भोजन मिलना चाहिए। उन्होंने निर्देश दिया कि सभी डीएम, एसपी खुद जाकर क्वारंटीन सेंटरों की निगरानी करें। क्वारंटीन सेंटरों के संबंध में किसी प्रकार की कोताही होने पर उन्हें जिम्मेदार माना जाएगा।  जिन जिलों में अब तक कम्यूनिटी किचन शुरू नहीं हुए हैं, मुख्य सचिव  वहां के डीएम से बात कर भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित कराएं। इसके साथ ही संबंधित डीएम की जवाबदेही भी तय करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि भोजन वितरण के कार्य में गांवों में प्रधानों के अलावा नगर निकायों में पार्षदों और अन्य कर्मचारियों की भी इसमें मदद लें।
उधर गेंहूं कटाई के इस मौसम में लाकडाउन ने उत्तर प्रदेश के किसानों को फिर से अतीत में पहुंचा दिया है। बीते एक दशक से कम्बाइन हार्वेस्टर के सहारे गेंहूं की फसल काट रहे उत्तर प्रदेश के किसानों में से खासी तादाद में लोग इस बार परंपरागत तरीके से कटाई और मड़ाई का काम शुरु कर रहे हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने हाय तौबा के बाद रजिस्टर्ड कम्बाइन हार्वेस्टरों को कटाई की मंजूरी दे दी है।
कोरोना लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार सब्जी उगाने वाले किसानों पर पड़ी है। बाजार में सब्जियां जा नहीं पा रही है और बिचौलिये कम दाम दे रहे हैं। यहां तक की सब्जियां खेतों में सड़ रही हैं। किसानों का कहना है कि बीते महीने ओले-बारिश से फसल आधी रह गई फिर लॉकडाउन ने मंडियों के रास्ते बंद कर दिए। गोरखपुर, बनारस, कानपुर और लखनऊ के किसानों के लिए यह लॉकडाउन मुसीबत का सबब बन गया है। बरेली तरफ के किसान जरूर कुछ अपनी सब्जियां उत्तराखंड भेज पा रहे हैं। किसान औने-पौने दामों पर आढ़तियों को सब्जियां बेचने पर मजबूर हैं।
प्रदेश में इस समय कुल 3316 रजिस्टर्ड कम्बाइन हार्वेस्टर हैं जो कटाई व मड़ाई का काम कर सकेगें। सरकार की ओर से फसल कटाई और कृषि उपज के लिए गठित समिति ने इन हार्वेस्टरों को अनुमति दी है। समिति का कहना है कि कम्बाईन हार्वेस्टरों को अगर कटाई के काम के लिए दूसरे जिले में जाना होगा तो इसके लिए संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों से पास लेना जरुरी होगा। इसके लिए मुख्य सचिव ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ज्यादातर हार्वेस्टर पीलीभीत, बरेली, उधमसिंह नगर से आते हैं।
किसान नेताओं का कहना है कि प्रदेश में गेहूं के रकबे को देखते हुए केवल रजिस्टर्ड हार्वेस्टरों के सहारे कटाई और मड़ाई का काम पूरा नही किया जा सकता है। उनका कहना है कि सरकार की ओर से सभी हार्वेस्टरों को आने जाने व कटाई की इजाजत न देने के चलते किसानों को बड़े पैमाने पर परंपरागत तरीकों से कटाई का काम करना होगा। प्रदेश में रजिस्टर्ड हार्वेस्टरों के मुकाबले असल में कटाई का काम करने वाले हार्वेस्टर कई गुना ज्यादा हैं।
लाकडाउन के चलते इस बार गांवों में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तादाद में मजदूर लौटे हैं पर उन्हें सरकार के आदेश पर क्वारेंटाइन कर दिया गया है जिससे वो कटाई के काम भी नहीं लग पा रहे हैं। इसके अलावा सडक़ किनारे बसे गांवों में मजदूरों को खेतों में काम करने में परेशानी हो रही है। पुलिस व प्रशासन के लोग मजदूरों के एक साथ काम करने से रोक रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि दूर-दराज के गांवों में इस तरह की दिक्कत नहीं है।
  किसी तरह अपनी सब्जियां लेकर थोक मंडी पहुंचे किसानों पर भीड़ जमा होने के चलते कई बार लाठीचार्ज हो चुका है। किसानों का कहना है कि पिछले 10 दिन में शायद ही कोई किसान होगा, जिसने बाजार जाकर सब्जी बेचने की कोशिश की हो और पिटा न हो।
जगह जगह की रोक और पाबंदियों के चलते बजाय मंडी तक पहुंचने के खेतों में ही सब्जियों की फसल खराब हो रही है। सब्जी की कटाई और समय से बाजार तक नहीं पहुंचने से किसानों के सामने आर्थिक तंगी आ गई है। लाकडाउन के शुरुआती दिनों में जहां सब्जियों के भाव खासे उंचे थे वहीं अब ये सामान्य दिनों के मुकाबले काफी नीचे आ गए हैं। किसान खेत में उगाए बैगन और पालक काटकर जानवरों को खिलाने लगे हैं।
हलवाईयों, मिठाई की दुकानों और संस्थाओं में खपत घटने के बाद दूध बेभाव बिकने लगा है। सरकारी डेयरी पराग तक ने चेतावनी दी है कि यही हाल रहा तो दूध फेंकने की नौबत आ जाएगी।
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