Necessity to reduce border disputes: सीमा पर तकरार कम करने की दरकार 

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कूटनीति की ऐसी निरापद स्थिति पीएम नरेंद्र मोदी देखेंगे, इसकी कल्पना उनके शैदाइयों ने नहीं की थी। देश के लिए तय करना धणा मुश्किल है कि गलती 62 में हुई थी, या उसके 58 साल बाद 2020 में? नरेंद्र भाई तब 11 साल के थे, जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने ‘कूटनीतकि भूल’ की थी। तब उन्होंने ‘एंटायर पोलिटकिल साइंस’ में एमए भी नहीं किया था। 69 साल के पीएम मोदी अब परिपक्व नेता हैं। कोविड संकट से उबारने के वास्ते पूरी दुनिया को नेतृत्व देने वाले थे। गलवान में हमारे 20 सैनकिों की शहादत ने सब कुछ उलट-पुलट करके रख दिया।

ऐसा क्यों हो रहा है कि जिन मित्रों से पीएम मोदी लपक के गले लगते थे, उन्होंने चुप्पी साध रखी है? इजराइल, फ्रांस, अमेरकिा, रूस तक खुलकर नहीं बोल रहे हैं। 22 जून को रशिया-इंडिया-चाइना (आरआईसी) विदेश मंत्रियों की विज़ुअल बैठक जब हो रही थी, रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने स्पष्ट किया था कि भारत और चीन उभयपक्षीय विवाद स्वयं सुलझा सकते हैं। इन्हें किसी की मदद की जरूरत नहीं। ऐसे बयान के कई निहितार्थ नकिलते हैं। उनमें से एक यह है कि आपको शत्रु को तुर्की ब तुर्की जवाब देना है, तो ख़ुद को ताकतवर बनाइये। और उसके लिए चाहिए आधुनकितम हथियार।

तनाव का ऐसा वातावरण नहीं होता, तो प्रतिरक्षामंत्री राजनाथ सिंह रूसी विजय दिवस परेड में तीनों सेवाओं के 75 भारतीय सैनकिों को लेकर मास्को नहीं जाते। मिस्टर सिंह मास्को गये, भारत का उतावलापन दिखाया कि हमें एस-400 रूसी मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली अभी के अभी चाहिए। हम 2021 के आखिर तक का इसकी सप्लाई का इंतजार नहीं कर सकते। भारतीय वायुसेना के लिए 21 अदद मिग-29, 12 अदद एसयू-30 एमकेआई युद्धक विमान चाहिए। यह 60 अरब रुपये का सौदा है।

इससे पहले भारत 272 अदद एसयू-30 एमकेआई युद्धक विमानों का आर्डर रूस को दे चुका है, उन्हें आनेवाले 10 से 15 वर्षों की अवधि में सप्लाई करनी है। राजनाथ सिंह रूसी पक्ष को बता चुके हैं कि युद्धक विमानों समेत टी-90 टैंक व किलो क्लास सब-मरीन के स्पेयर पार्ट्स हमें चाहिए, ताकि युद्धकाल में किसी किस्म की बाधा न हो। अक्टूबर 2018 में एस-400 रूसी मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली की पांच रेजीमेंटल सेट की सप्लाई के वास्ते मास्को और दिल्ली ने हस्ताक्षर किये थे। रूसी समाचार एजेंसी तास के अनुसार, ‘यह पांच अरब डॉलर से अधकि का सौदा था, जिसकी आख़िरी खेप (फिफ्थ रेजीमेंटल सेट) 2025 के मध्य तक भारत के पास पहुंच जानी है।’ अमेरकिी धमका रहे थे कि रूस, भारत को एस-400 सप्लाई न करे।  इस बीच चीन ने पुतिन पर प्रेशर बनाना शुरू किया है कि वह भारत को मिसाइल रक्षा प्रणाली न दे, यह क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा का कारण बनेगा।

चीन, रूस का भी सगा नहीं है। 2017 दिसंबर में चीन ने जब यूक्रेन में ओबीओआर के बहाने पैर पसारे, रूस को यह नागवार गुजरा था। उसी साल दिसंबर में ‘त्सनिलमाश एक्सपोर्ट’ का सीईओ इगोर रेशेतिन समेत तीन लोग रूसी खुफिया के हत्थे चढ़े। ये चारों लोग वैसे दस्तावेज चीन को दे चुके थे, जो उनके मिसाइल व उपग्रह कार्यक्रम को मजबूत करने वाला था। सितंबर 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में ‘बाल्टकि स्टेट टेक्नीकल यूनिवर्सिटी’ के दो साइंटिस्ट पकड़े गये थे, जो चीन को खुफिया जानकारी दे रहे थे। मास्को को मालूम था कि चीन आर्कटकि में कई वर्षों से रूसी शोध व मेरीटाइम गतिविधियों की जासूसी करा रहा है।

जून 2020 के तीसरे हफ्ते सेंट पीटर्सबर्ग में एक रूसी वैज्ञानकि वेलरी मितको को 20 साल की सजा सुनाई गई है। इसलिए, रूस भी अपने तरीके से चीन की नींद हरना चाहेगा। चीन को बैलेंस करने के लिए यह प्रेसिडेंट पुतिन की पहल थी कि उन्होंने भारत को शंघाई कारपोरेशन आर्गेनाइजेशन, ब्रकि्स, और आरआईसी (रूस, इंडिया,चाइना ग्रुपिंग) में शामिल कराया। चीन और रूस के बीच चूहे-बिल्ली का खेल आने वाले दिनों में लगता है होगा। उसके लिए एस-400 की सप्लाई तक इंतजार करना होगा। 2007 से ही रूसी सेना के इस्तेमाल में एस-400 है। चीन ने एस-400  मिसाइल सिस्टम का पहला रेजीमेंटल सेट 2018 में रूस से हासिल कर लिया था। सीमा पर चीन के फुदकने की बड़ी वजह रूस से प्राप्त एस-400 मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली भी है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने दिसंबर 2018 में जानकारी दी थी कि चीन ने 36 लक्ष्यों को एक साथ धराशायी कर एस-400 मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली का परीक्षण कर लिया था।

भारत में इसकी सप्लाई पर पहली बार हस्ताक्षर 2015 में पुतिन की दिल्ली यात्रा के समय हुआ था। फिर अमेरकिी धमकी मिली कि एस-400 की सप्लाई हुई तो काउंटरिंग अमेरकिाज एडवर्सरीज थू्र सैंगशन्ज एक्ट (सीएएटीएसए) लगाएंगे। यह जबरदस्ती का थोपा अमेरकिी कानून ईरान, रूस और उत्तर कोरिया पर आयद है। मगर, चीन ने कभी इसकी परवाह नहीं की। अगर, हमारे नेता भी चीन की राह पर होते, तो एस-400 मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली 2019 में ही हमें मिल चुकी होती। यह तो प्रतिरक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ही स्पष्ट कर सकते हैं कि ‘सीएएटीएसए’ को ताक पर रखने का साहस पांच साल बाद कैसे आ गया? ट्रंप प्रशासन ने मोदी सरकार पर दबाव डाला है कि क्षेत्रीय शांति के वास्ते आप एस-400 के मुकाबले हमसे इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस विपन सिस्टम (आईएडीडब्ल्यूएस) खरीद लें।

हथियारों की सप्लाई, समझौते, और उत्पादन के मामले में अपने यहां अजब-गजब चक्रव्यूह है। अक्टूबर 2018 में ही रूसी असाल्ट राइफल एके-203 कलाशनकिोव और 200 सीरीज के प्रोडक्शन का समझौता रूस से हुआ था। अमेठी के कोरबा आयुध कारखाने से इनका उत्पादन मार्च 2019 से आरंभ हो जाना था। कहां हम साढ़े सात लाख असाल्ट राइफलों का प्रोडक्शन करने वाले थे, मगर फरवरी 2020 तक एक पीस भी तैयार नहीं मिला। बदले में 72 हजार 700 अमेरकिी सिग सॉसर असाल्ट राइफल का सौदा कर लिया गया। दिसंबर 2019 में आर्मी के नार्दर्न कमांड को दस हजार अदद सिग सॉसर असाल्ट राइफल भेज दिये गये। 70 अरब रुपये की यह सप्लाई रूस से नाराजी का सबब भी बनी।

मार्च 2020 में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने जानकारी दी थी कि भारत में हथियार सप्लाई में अमेरकिा, रूस के बाद दूसरे नंबर पर है। अमेरकिी सूबेदारी अब 14 फीसद इजराइल और 12 प्रतिशत फ्रांस ने छीन ली है। रूस अब भी भारत के कुल हथियार आयात के 56 फीसद हिस्से पर काबिज है। 15 जून 2020 को ‘सिपरी ने एक और रोचक जानकारी दी कि दुनिया के मुख्तलिफ हिस्सों में तनाव के बावजूद नाभकिीय हथियारों की होड़ में कमी आई है।

नौ नाभकिीय संपन्न देशों अमेरकिा, रूस, चीन, पाकिस्तान, भारत, उत्तर कोरिया, फ्रांस, यूके, इजराइल के पास कुल मिलाकर 13 हजार 865 परमाणु हथियार थे। 2020 में वो घटकर 13 हजार 400 हो चुके हैं। सच यह है कि ये देश नाभकिीय हथियारों का कबाड़ हटाकर नेक्स्ट जेनरेशन वाले उन्नत हथियारों को वकिसित कर रहे हैं। यह पब्लकि डोमेन में बताया नहीं जा सकता कि भारत का रक्षा अनुसंधान एवं वकिास संगठन (डीआरडीओ) इसमें कितना सक्रिय है। मगर, सरकार की ओर से 2019 में खबर आई कि डीआरडीओ अगली पीढ़ी के हाइपरसोनकि हथियारों को वकिसित करने में लगा हुआ है।

यों, पाकिस्तान, चीन व उत्तर कोरिया के कबाड़ हो चुके नाभकिीय हथियारों का जखीरा इकठ्ठा न करता तो उसके पास भारत के डेढ़ सौ परमाणु हथियारों के मुकाबले 160 न्यूक्लियर विपन न होते। चीन के पास 320 न्यूक्लियर वारहेड हैं, तो उत्तर कोरिया के पास 30 से 40। कुछ तथ्यों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए कि चीन नाभकिीय हथियारों से संपन्न रातभर में नहीं हुआ, उसे 1958 से 1960 के बीच रूस ने परमाणु तकनीक ट्रांसफर किये थे। मैथ्यु क्रोनिग ने अपनी पुस्तक ‘एक्सपोर्टिंग द बॉम : टेक्नोलॉजी ट्रांस्फर एंड द स्प्रेड ऑफ  न्यूक्लिर विपन’ में विस्तार से बताया है कि इजराइल को फ्रांस ने 1950 से 1960 के बीच नाभकिीय जानकारी कैसे बेची थी। भारत, नेक्स्ट जेनरेशन नाभकिीय हथियार तकनीक संभवत: फ्रांस व रूस से हासिल करने की दिशा में अग्रसर है।

यह दिलचस्प है कि कोरोना संकट के समय जिस देश में टेस्ट किट और वेंटीलेटर का टोटा पड़ा हुआ है, उस दौर में इजराइल से 16,479 अदद नेगेव लाइट मशीनगन खरीदे जा रहे हैं। इससे पहले इजराइल राफेल विमानों के वास्ते 240 अदद एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) और 12 लांचर का सौदा 2019 में भारत से कर चुका था। लद्दाख जैसी दुर्गम सीमा पर 24 घंटे निगाहें रखने के लिए इजराइली हेरोन टीपी मल्टी सेंसर ड्रोन के साझा उत्पादन का काम 2020 में एचएएल के साथ शुरू होने वाला है। इस ड्रोन को पहले से जर्मन और ताइवानी सेना इस्तेमाल कर रही है। मिसाइलों से लैस हेरोन टीपी ड्रोन 45 हजार फीट की ऊंचाई से ईरान तक की दूरी वाले इलाक़े पर निगाहें रखने में सक्षम है। गलवान में तनाव को देखते हुए भारत अमेरकिा से अपाचे, चिनोक और पी-81 मेरीटाइम हेलीकॉप्टरों को जल्द से जल्द हासिल करना चाहेगा।

मगर, भारत सिर्फ बाजार नहीं रहा। उसके बरक्स, भारत रक्षा सामग्री वकि्रेता के रूप में उभरने के प्रयास में है। म्यांमार, मारीशस, श्रीलंका समेत 42 देशों में भारत रक्षा सामग्री एक्सपोर्ट करने लगा है, जो 17 हजार करोड़ के आसपास है। चीन ने गलवान में जो धोखे की करतूत की, उसके पीछे भारत को कमजोर देश साबित करना भी है। ताकि जो देश भारत से सैन्य साजो-सामान ख़रीद  रहे हैं, उनपर इसका दुष्प्रभाव पड़े। लखनऊ में आहूत, 2020 के डिफेंस एक्सपो में 38 अफ्रीक़ी देशों की हिस्सेदारी से चीन चौकन्ना हो चुका था।

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