Nainam chindanti shstrani: नैनं छिद्यंति शस्त्राणि बनाम देहांत

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बाबू  रामभरोसे  की मृत्यु हो चुकी थी अब मृत्यु हो जाए और चौथा उठाला या तेहरवीं शोक सभा आयोजित होनी ही थी। शोक सभा में पंडित प्रवचनकर्ता आते ही हैं सो आये। पंडित आयें और प्रवचन न करें ऐसा नियम नहीं है, हो तो भी चलेगा नहीं। क्योंकि शोक सभा में तो उन लोगों को भी प्रवचन का मौका मिल जाता है, जिनके वचन उनकी पत्नी व बच्चे भी कभी नहीं सुनते। खैर अभी पंडित परमानंद शास्त्री जी तथाकथित व्यास पीठ पर बैठे मग्न हो बोल रहे हैं। पंडित जी हमारे शहर के शोक सभा एक्सपर्ट हैं। वे इतने लोगों की मौत पर प्रवचन कर चुके हैं कि अब लोगों को उनके प्रवचन बचपन में रटे पहाड़ों की तरह कंठस्थ हो चुके हैं।
वे सदा की तरह अपने अनूठे अंदाज में बोल रहे थे, दास का कहना े आप को बतला दूं कि भारत वर्ष देव भूमि है इसकी भाषा देवभाषा संस्कृत है संस्कृत की सलोनी से बेटी है हिन्दी हिन्दी को कुछ लोग खड़ी बोली कहते हैं। क्योंकि हिन्दी पतिव्रता नारी की तरह लेखक के सामने हाथ बांध एक पांव पर खड़ी रहती है। संस्कृत की बेटी है उसमें संस्कार कूट कूट कर  भरे हैं। दास बोल रहा है कह रहा है ध्यान से सुने। हमारा देश महान है इस में रहने वाले जन्म लेने वाले लोग बड़े भाग्य शाली है उनमे भी हिन्दू लोग तो और भी ज्यादा भाग्य शाली हैं जहां और देशों में और धर्मो में लोगों की डेथ होती है, इंतकाल होता है, मौत होती है यहां ऐसा बखेड़ा नही होता यहां सिर्फ देहांत होता है। वैसे इंतकाल भी हिन्दी के अंतकाल का बिगड़ारूप है। जैसे ब्राह्मण का बिरहमन। तो दास कह रहा था कि आर्यवर्त में डेथ या इंतकाल नहीं होते। यहां देहांत होता है  देहांत समझते हैं न आप! केवल देह का अन्त, मौत नहीं। हिन्दू ही ऐसा प्राणी है जीव है मनुष्य है जो मर कर भी नहीं मरता। तो हमारे बाबू राम भरोसे  मरे नहीं है दोस्तों उनका देहांत भर हुआ है यानी देह भर मरी है वे नहीं मरे हैं। जैसा किसी नूर नाम के शायर ने कहा है। अपनी गजलों में जिन्दा है / नूर दुनिया से गया ही नहीं, बाबू राम भरोसे के इकलौते बेटा सुनील जो बेमन से लोगों के दबाव में सर घुटवाये बैठा था सुन रहा था। वह सोचने लगा  देहांत? तो क्या उसके पिता सचमुच जिंदा हैं? अगर ऐसा तो बड़ा बुरा होगा  पिता ने जीते जागते पूरे परिवार को क्या कम दु:ख दिए हैं जो बकौल पंडित जी वे मरे नहीं हैं केवल देहांत हुआ है। बाबू राम भरोसे ने केवल परिवार को ही दुख नहीं दिया उन्होंने अपने सहकर्मियों, पड़ोसियों को भी कभी नहीं छोड़ा था। वे पैदाइशी झगडालू व   अहंकारी थे। तो वे म्नुसपेलिटी में  लोअर डिविजन कलर्क लेकिन खुद को दुनिया का सबसे समझदार आदमी, विद्वान समझते थे। किसी का काम बिना रिश्वत लिए नहीं किया। रिश्वत लेकर भी चक्कर पे चक्कर कटवाकर ही काम करते थे। शायद इस तरह वे अपनी हीन भावना पर काबू पा जाते थे ेअगर वह खुद इन्कमटेक्स में इंस्पेक्टर  न होता और उसकी पोस्टिंग इसी  जिला मुख्यालय पर न होती तो आज बाबू राम भरोसे की शोक सभा में कौन आता ? कोई थूकने भी न आता। वह सोच रहा था कि पंडित जी क्यों खामखा देहांत पर अड़े हैं क्यों नहीं पिताजी को चुपचाप मर जाने देते। उसे लगा की उसने पंडित जी को बुला कर नाहक मुसीबत मोल लेली है। पंडित जी कह रहे थे। नैनं छिद्य्ंती शस्त्राणि नैनं दाहती पावक: तभी  अचानक उसे लगा कि पंडित जी की आवाज गुम हो गई है और खुद उसके पिता राम भरोसे बोल रहे हैं। हा हा! हा हा! जला डालो इस नश्वर शरीर को सालो! लेकिन तुम केवल इस देह को जला सकते  हो, मुझे नहीं, मैं तो जिंदा हूं, मरा नहीं हूं केवल देहांत हुआ है। हा हा हा लेकिन मैं अब भी तुम्हारी जिन्दगी में बहुत दिन मौजूद रहूंगा उम्र भर। अंश अवतार की तरह मैं तुम्हारी छाती अवतरित रहूंगा। कैसे? लो सुनो तुम्हारी मां मेरी पत्नी बड़ी खुश हो रही है कि अब हर महीने उसके हाथ में अब मेरी पेंशन के कड़कड़ाते नोट आया करेंगे। हां उस हाथ में जिस पर मैंने उम्र भर कभी धेला भी नहीं धरा  था। लेकिन मैंने अपने दफ्तर में अपने कर्मों के ऐसे खूंटे गाड़ रखे हैं कि मेरी पेंशन, भविष्य निधि, व  ग्रेचुइटी रिलीज करवाने में दांतों पसीने आ जायेंगे। भला हो सरकार के पे कमिशनों का लाखों रुपए हैं ग्रेचुएटी में, इसलिए तुम लोग छोड़ भी नहीं पाओगे और तुम्हारी दशा सांप के मुहं में छुछुन्दर जैसी हो जाएगी यानी न तू जी सकेगा न तुझे मौत आएगी। मेरी प्रापर्टी बैंक डिपाजिट लेने के लिए, लॉकर  का स्वामित्व  पाने में भी कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते तुम्हारे जूते घिस जाएंगे ेक्योंकि मैंने कहीं कोई नोमिनेशन नहीं दिया हुआ। अत: तुन्हें कोर्ट से उतराधिकारी  सर्टिफिकेट प्राप्त करना होगा। और जमीन जायदाद क्या तुम यूहीं हथिया लोगे अरे तुम्हारी तीन बहने तुम्हारा खून पी जाएंगी। उन्हें सदा से शिकायत रही है की उन्हें न दहेज ठीक मिला न ही किसी तीज त्यौहार पर कुछ दिया गया अपना हिस्सा लेकर मानेंगी। तो साफ साफ सुन लो अपनी मां को भी बता दो  ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है   पंडित जी सच  कह रहे हैं मैं मरा नहीं हूं मेरा सिर्फ देहांत हुआ है। नैनं छिद्यंति शस्त्राणि नैनं दाहती पावक:

श्याम सखा ‘श्याम’
(लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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