‘Movements’ revive Gandhi’s values! ‘आंदोलनों’ से मिला गांधी के मूल्यों को पुनर्जीवन!

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अब न पूछो ये, किसका गम मना रहा हूं मैं ।
दुनिया से नहीं खुद से धोखा खा रहा हूं मैं।।
गांधी अगर जीवित होते तो मौजूदा सियासत और सत्ता की नीति रीति को देखकर निश्चित रूप से यही सोचते। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे की मानसिकता वाले एक युवक ‘रामभक्त गोपाल’ ने शांतिमार्च निकाल रहे जामिया के विद्यार्थियों पर गोली चलाई मगर किसी भी प्रदर्शनकारी ने उसको हाथ तक नहीं लगाया। फरवरी के पहले दिन शाहीनबाग में चल रहे अनोखे विरोध प्रदर्शन में महिलाओं पर एक युवक ने गोली चलाई मगर भीड़ ने उसको न पीटा और न जलील किया। बुधवार को अपनी पहचान छिपाकर शाहीनबाग के प्रदर्शनकारियों के बीच बुरके में बैठी संदिग्ध युवती के पकड़े जाने पर किसी ने भी उससे कोई अभद्रता नहीं की। पूछताछ में कोरा झूठ बोलने के बाद भी उसको जलील नहीं किया। यह सच सामने आने के बाद कि पकड़ी गई युवती गुंजा कपूर न केवल संघी विचारधारा की है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व के जिन 2379 लोगों को अपने ट्वीटर हैंडल से फॉलो करते हैं, उनमें से एक है। यह युवती उनके आंदोलन के खिलाफ पिछले काफी दिनों से सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल रही थी, फिर भी उन्होंने उसके साथ कुछ ऐसा नहीं किया जिसे गलत कहा जाये। आंदोलनकारी महिलाओं के चरित्र को लांछित करने वाली उस युवती को महिलाओं ने सुरक्षित दिल्ली पुलिस को सौंप दिया, मॉब लिंचिंग नहीं की।
हिंदू धर्मशास्त्र के व्यासभाष्य, योगसूत्र में स्पष्ट लिखा है ‘सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानामनभिद्रोह’ अर्थात सदैव यानी मनसा, वाचा, कर्मणा सभी प्राणियों के साथ द्रोह का अभाव होना जरूरी है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, इन पांच गुणों को किसी भी देश, काल और परिस्थिति में पालन करने को महाव्रत माना गया है। जैन धर्म में सब जीवों के प्रति संयमपूर्ण व्यवहार अहिंसा है। बौद्ध और ईसाई धर्मों में भी अहिंसा को सबसे महान माना गया है। इससे यह सिद्ध है कि वही सच्चा हिंदुस्तानी है जो सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाता है। गांधी सच्चे हिंदू थे और उनका जीवन संत। यही कारण है कि उन्होंने सफलता के करीब पहुंचे अपने तमाम आंदोलनों को बीच में ही छोड़ दिये क्योंकि कुछ लोग सत्य अहिंसा के मार्ग से भटकने लगे थे। उन्होंने कहा ‘जब मैं निराश होता हूं, तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हत्यारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजेय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है। इसका सदैव विचार करें’। निश्चित रूप से गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘द स्टोरी आॅफ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ’ में तब जो लिखा, वह आज भी अकाट्य है। गांधी ने जीसस क्राइस्ट के इन शब्दों को सदैव आत्मसात किया कि ‘कोई तुम्हारे एक गाल पर मारे तो तुम दूसरा भी आगे कर दो’, और वो दुनिया के पहले ऐसे सियासी नेता बने जिसने सत्य-अहिंसा के बूते विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की नीव रखी। उन्होंने खुद सत्ता का कोई सुख नहीं लिया बल्कि सुयोग्य हाथों में देश की सत्ता सौंपी।
अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजादी दिलाने के बाद फांसीवादी सत्तात्मक विचारधारा से देश को आजादी दिलाने के दौरान महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में दावा किया कि वह नागरिकता संशोधन अधिनियम, गांधी की इच्छा और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सोच पूरी करने के लिए लाये हैं। इसके लिए उन्होंने 1950 के नेहरू-लियाकत समझौते का सहारा लिया। बहराल, इस कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने के विरोध में दिल्ली के शाहीनबाग में चार महिलाओं ने जिस आंदोलन की शुरूआत की थी, वह दो माह पूरे कर रहा है। बगैर किसी सियासी बैनर के मोदी सरकार की नीति और व्यवहार के खिलाफ देश की आजादी के बाद यह पहला ऐसा आंदोलन है, जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मूल्यों पर आधारित है। दिल्ली के एक कोने से शुरू हुआ यह आंदोलन देश के कोने-कोने तक पहुंच गया है, जो गांधी के मूल्यों को पुनर्जीवित कर रहा है। न कहीं जिंदाबाद-मुदार्बाद का शोर है और न ही कहीं हिंसा का। सत्य-अहिंसा को अपनाने वाले आंदोलनकारी संकल्प दोहराते हैं ‘तुम आंशू गैस के गोले उछालोगो, तुम जहर की चाय उबालोगे, हम प्यार की शक्कर घोल के पी जाएंगे, तुम पुलिस से लठ्ठ पड़ा दोगे, तुम मैट्रो बंद करा दोगे, हम पैदल पैदल आएंगे’। जनगण मन गाते और संविधान की प्रस्तावना पढ़कर सबके साथ मिलकर प्यार से रहने की बात करते हैं। उनके इन शब्दों में हिंदू धर्मशास्त्रों से लेकर बाइबल तक का सार मिलता है मगर भाजपा सरकारों को इसमें देशद्रोह नजर आता है। शायद तभी उनके खिलाफ दर्जनों देशद्रोह के मुकदमें दर्ज किये जा रहे हैं।
हमें बचपन की याद आती है, जब हम कोई गलत या अभद्र भाषा प्रयोग करते तो शिष्ट लोग कहते संसदीय भाषा में बात करो। हमें लगता था कि संसद में क्या भाषा बोली जाएगी, यह कोई लिस्ट होगी। युवा दिनों में एक दिन हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से मिलना हुआ, तो हमने पूछ लिया कि यह संसदीय भाषा क्या होती है और इसका शब्दकोष कहां मिलेगा? अटलजी जोर से हंसे और उन्होंने कहा कि संसदीय भाषा का मतलब लखनऊ की तहजीब होती है। जी-जनाब के साथ पूरा गुस्सा दिखाया जाता है। जो शब्द और टिप्पणी खुद के लिए बुरी लगे, वह दूसरे के लिए इस्तेमाल नहीं की जाती, यही तो है संसदीय भाषा। उनकी बात सुनने के बाद हमारे 15 साल पुराने सवाल का जवाब मिल गया था मगर अब तो उनका जवाब संसद में उनके उत्तराधिकारी ही झूठा साबित कर रहे हैं। संवैधानिक इतिहास में दूसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ असंसदीय वाक्यों को संसद की गरिमा के लिए हटा दिया गया। गांधी की इच्छा और नेहरू की सोच को पूरा करने की बात करने वाले मोदी उनसे कुछ सीख नहीं सके मगर सुखद है कि वह लोग सीख गये हैं, जिनके बारे में उग्र और बलवाई होने का आरोप लगता था।
यही वजह है कि शाहीनबाग में अब सिर्फ मुस्लिम महिलायें ही नहीं हैं बल्कि हिंदुओं की बेटियां भी हैं। सिख, ईसाई और बौद्ध भी पहुंच रहे हैं। मनोबल बढ़ाने पंजाब से लोग आते हैं तो महाराष्ट्र और बंगाल से भी। यहां हिंदू हवन करते हैं तो मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी आहुति डालते हैं। यहां महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस नहीं करती। वह किसी भी धर्म के भाई से बेहिचक कुछ भी कह लेती हैं। उन्हें नहीं पता होता कि जिससे वह मदद मांग रही हैं, वो किस प्रदेश और जाति-धर्म से है।  महत्मा गांधी भी तो यही चाहते थे, कि सभी एक हों। दुनिया में किसी से कोई भेद न किया जाये। हिंदुस्तान एक आदर्श गणराज्य बने। केंद्रीयकृत सरकार नहीं बल्कि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो। भले ही उनकी सोच और मर्जी का सत्ता ख्याल न रख रही हो, भले ही तेजस्वी सूर्या और प्रवेश वर्मा जैसे असंसदीय भड़काऊ बातें करने वाले संसद पहुंच जाते हैं मगर प्रो. मनोज झा और विप्लव ठाकुर जैसे सभ्य सांसद भी हैं। इस एक्ट के आने से जो सबसे अच्छी बात हुई है, वह यह कि विरोध होगा मगर लोकतांत्रिक परंपराओं से। विरोध होगा मगर गांधी के मूल्यों पर। छात्र आंदोलन होगा मगर किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि सबको बनाने के लिए। किसी का हक मारने की बात नहीं होगी बल्कि सभी को समान हक देने के लिए लड़ेंगे। अच्छा है कि इस आंदोलन ने गांधी के विचारों की प्रासंगिकता सिद्ध कर दी है। यह जितना बढ़ेगा, गांधी उतने ही जीवंत होंगे।
जय हिंद!

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

 

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