महेंद्रगढ़: शोध की प्रमाणिकता सुनिश्चित करना आवश्यक : आर.सी. कुहाड़

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State Level Awareness Program
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नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़

आधुनिक दौर में शोध के क्षेत्र में विशेषज्ञता के साथ उल्लेखनीय कार्य हेतु जरूरी है कि युवा पीढ़ी सही दिशा में आगे बढ़े। सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग में मौलिक अनुसंधान की पहचान व विकास हेतु जरूरी है कि हम विशेष रूप से सतर्क रहें और सही मार्ग पर आगे बढ़े। इस कार्य में शोध की प्रमाणिकता सुनिश्चित करना आवश्यक है, जिसमें शोध शुद्धि एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह विचार हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने इनफ्लिबिनेट सेन्टर, गुजरात के राज्य स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम में व्यक्त किए। हरियाणा व दिल्ली के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में करीब 80 संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने शोध की प्रमाणिकता हेतु आवश्यक नैतिक व तकनीकी पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित विभिन्न मानको की अनुपालना कर रहा है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय यूजीसी रेगुलेशन्स आन प्रमोशन आफ एकेडमिक इंटीग्रिटी एंड प्रीवेन्शन आॅफ प्लेग्रिज्म इन हॉयर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स को सैद्धांतिक रूप से अपना रहा है और हमारे यहां इंस्टीट्यूशनल एकेडमिक इंटीग्रिटी कमेटी व इंपार्टमेंटल इंटीग्रिटी कमेटी के विनियम अधिसूचित हैं। कुलपति ने बताया कि विश्वविद्यालय का केंद्रीय पुस्तकालय मौलिक शोध कार्य की पहचान हेतु सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों को उरकुंड व टर्नेटिन आदि उपलब्ध करा रहा है।

प्रो. कुहाड़ ने कहा कि विश्वविद्यालय नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को लेकर प्रतिबद्ध है और इसके लिए नीति में वर्णित नैतिक मानको पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालय रिसर्च एंड पब्लिकेशन एथिक्स नामक यूजीसी द्वारा प्रस्तुत दो क्रेडिट का अनिवार्य कोर्स करा रहा हैं। जिससे शैक्षणिक व शोध के स्तर पर प्रमाणिकता, उत्कृष्टता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। कुलपति ने इस अवसर पर शोध कार्यों की प्रमाणिकता की पहचान हेतु तकनीक व परम्परागत कार्यप्रणाली पर भी ध्यान आकर्षित किया। कुलपति ने प्लेग्रिज्म की पहचान हेतु उपलब्ध टूल्स के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह कम समय में उत्कृष्ट लेखन में मददगार है। इनकी मदद से व्याख्यात्मक कौशल की जांच में सहयोग मिलता है। यह आपके लेखन की नैतिकता को निर्धारित व स्थापित करने में मददगार होता है। कार्यक्रम में इनफ्लिबिनेट के वैज्ञानिक ई (सीएस) मनोज कुमार के, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो. संजीव कुमार, पुस्तकाल्याध्यक्ष डॉ. संतोष सहित विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधि आनलाइन माध्यम से उपस्थित रहे।

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