- कांग्रेस के लिए बड़े खतरे की घंटी
अजीत मेंदोला । नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयं संघ यानि आरएसएस ने हरियाणा के बाद महाराष्ट्र को जितवाने में अहम भूमिका निभा साबित कर दिया कि उनसे पार पाना विपक्ष के लिए अब आसान नहीं रहा। सूत्रों की माने तो संघ ने महाराष्ट्र में छोटी छोटी 66 हजार बैठकें की।
हरियाणा से दो गुनी। लोकसभा चुनाव के बाद संघ जिस तरह से ताकतवर हुआ है इसके बाद विपक्ष के सत्ता में वापस लौटने के मंसूबे शायद ही आने वाले बीस तीस साल में कभी पूरे होंगे। हिंदी भाषी राज्यों में तो विपक्ष पहले ही बहुत कमजोर हो चुका है। विपक्ष में सबसे प्रमुख दल कांग्रेस दोनों तरफ से कमजोर हो गई है।
दस साल से ज्यादा समय से केंद्र की सत्ता से बाहर है,तीन राज्यों में सिमट कर रह गई है। संगठनात्मक रूप से भी इतना कमजोर हो गई है कि उसके पास अब पहले जैसे समर्पित कार्यकर्ता ही नहीं रहे।केवल वो नेता रह गए हैं जो गांधी परिवार को गुमराह कर पार्टी में जमे हुए हैं।
कांग्रेस पार्टी के मुख्य संगठन की हालत ऐसी हो गई है कि सालों से जमे हुए पदाधिकारियों पर कोई जिम्मेदारी तय नहीं होने से उनके हौसले बढ़ गए है। अग्रिम संगठनों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सेवा दल और महिला कांग्रेस जैसे संगठन ना मात्र के रह गए हैं। इसलिए कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है।राहुल गांधी संगठन पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं।
कांग्रेस को कमजोर हालत से निकलने के लिए संघ जैसा संगठन कांग्रेस को तैयार करना ही होगा। जिसमें नेता नहीं पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ता हों। उस संगठन में काम करने वालों को ही आगे बढ़ाया जाए।
पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा का संगठन हो रहा मजबूत
बीजेपी आज के दिन दुनिया की सबसे ताकतवर पार्टी इसलिए बन गई है क्योंकि उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के रूप में सशक्त केंद्रीय नेतृत्व और निस्वार्थ भाव से काम करने वाला संघ जैसे संगठन हैं।
और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ अपने आप हिंदुत्व का ऐसा चेहरा बन गए हैं जो हवा बदलने में माहिर बनते जा रहे हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र ने साबित कर दिया है कि योगी हिंदुत्व के ऐसे चेहरे बन गए हैं जो जीत में अहम भूमिका निभा रहे। उत्तर प्रदेश उप चुनाव में योगी ने लोकसभा का बदला ले लिया।
विपक्ष को फिर से वहीं ला खड़ा कर दिया जहां पहले से था। इन तीनों नेताओं की तिकड़ी का तोड़ फिलहाल विपक्ष के पास दूर-दूर तक नहीं दिखता है। प्रधानमंत्री मोदी की बेदाग छवि, अमित शाह चुनावी रणनीति की विशेषज्ञ और योगी माहौल की नब्ज पकड़ने वाले। सब की विचारधार स्पष्ट है हिंदुत्व और राष्ट्रवाद। संघ के कार्यकर्ता आम आदमी की तरह जब इलाके में फैलते हैं तो उनका एक ही एजेंडा होता है राष्ट्रवाद और हिंदुत्व।
संघ ने हरियाणा में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को घर-घर तक समझाया और बीजेपी को जितवा दिया। वह भी तब जब कोई सोच ही नहीं रहा था कि बीजेपी जीतेगी। लेकिन इतना बड़ा उलटफेर किया कि विपक्ष सकते में आ गया।
इसके बाद महाराष्ट्र को अपने कब्जे में लिया तो पूरा सीन ही बदल दिया। चार महीने पहले लगता था कि महाराष्ट्र में बीजेपी का गठबंधन फंस गया है, लेकिन जैसे जैसे चुनाव करीब आता गया पूरा सीन ही बदल गया। लोकसभा चुनाव के परिणामों को देख लगता था बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में सरकार रिपीट कराना बड़ा मुश्किल होगा।
लेकिन संघ ने गुपचुप तरीके से काम कर मुश्किल जीत को आसानी में बदल दिया। हालांकि इस जीत में बीजेपी की रणनीति और एकनाथ शिंदे सरकार के लोकप्रिय फैसलों ने भी अहम भूमिका निभाई। जिसके पीछे बीजेपी का दिमाग था।
लेकिन जो अहम बात है वह है गलतियों से सबक लेना। संघ और बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के समय हुई गलतियों से सबक ले आगे के चुनावों पर पूरा ध्यान दिया और 4 माह में बाजी पलट दी।
कांग्रेस अगर बीजेपी और संघ से सीख ले गलतियों से सबक लेती तो देश के पास आज कम से कम मजबूत विपक्ष तो होता। लेकिन कांग्रेस आज ऐसे लोगों से घिर गई है जो शायद जानबूझकर कांग्रेस को खत्म करने के रास्ते पर ले जा रहे हैं। कांग्रेस गलतियों से कोई सबक लेने को तैयार नहीं है।
कड़े फैसले लेकर ही कांग्रेस कर सकती है वापिसी
कांग्रेस को भले ही गांधी परिवार ने एक जुट रखा हुआ, लेकिन आज परिवार ही सवालों के घेरे में आ गया। गांधी परिवार जब तक कड़क फैसले कर जिम्मेदारी तय नहीं करेगा, पार्टी कमजोर होती जाएगी। गांधी परिवार को उन नेताओं पर करवाई करनी चाहिए जो बार-बार असफल हो रहे हैं।
कुर्सी में बैठे जिम्मेदार लोग अगर बार-बार असफल हो रहे हैं तो उन्हें जिम्मेदारी से मुक्त कर नए लोगों को मौका दिया जाना चाहिए।
क्योंकि जब तक नेताओं में पद खोने का डर नहीं होगा पार्टी इसी तरह हारती रहेगी। गांधी परिवार खुद तो जिम्मेदारी लेगा नहीं। क्योंकि परिवार की पार्टी है। देश में वैसे भी बीजेपी,आम आदमी पार्टी और वामदलों को छोड़ अधिकांश सभी परिवार की पार्टियां रह गई हैं।
भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद ‘आप’ पर छाया संकट
आप के संस्थापक अरविंद केजरीवाल जब से भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं उनकी उभरती पार्टी पर ही संकट आ गया है।वामदल केरल तक सीमित हैं। बाकी कांग्रेस, सपा, राजद, टीएमसी, डीएमके, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पंवार की एनसीपी, अकाली दल,बीजेडी, बीआरएस, टीडीपी, वाई एस आर, जेजेपी, इनेलो, लोकदल, बसपा और जेडीयू परिवार की पार्टियां हैं।
परिवार का सदस्य ही हमेशा मुखिया ही रहता है। बाकी दूसरा इन्हें चला भी नहीं सकता। कांग्रेस को छोड़ सभी रीजनल पार्टियां हैं। कांग्रेस को कमजोर कर ही यह रीजनल पार्टियां मजबूत हुई हैं। यह अलग बात है कांग्रेस ने बीजेपी को कमजोर करने और सत्ता के लालच में इन्हें मजबूती दी जिसके चलते राज्यों में कांग्रेस खुद खत्म सी हो गई।
आज कांग्रेस पूरी तरह से रीजनल पार्टियों पर निर्भर हो गई। जिसका परिणाम यह है कि कांग्रेस बहुत कमजोर हो गई। लगातार हार और परिवारबाद के आरोपों से बचने के लिए कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी ने गैर कांग्रेसी मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष तो बना दिया,लेकिन कहने भर के लिए। राहुल खुद सक्रिय रहे और सारी ताकतें और फैसले के अधिकार अपने पास रखे जिससे आम जन में कोई संदेश नहीं गया।
अब जिस तरह से पार्टी लगातार हार रही है कांग्रेस के लिए बड़े खतरे की घंटी है। राहुल गांधी अभी भी नहीं चेते तो केरल जैसे राज्य में कांग्रेस तीसरी बार भी चुनाव हार सकती है। बाकी राज्यों में तो कोई उम्मीद ही नहीं दिख रही है। अगले साल बिहार,दिल्ली जैसे अहम राज्य हैं तो फिर 2026 में केरल का चुनाव है।
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