lockdown is boon for earth: लॉकडाउन पृथ्वी के लिए वरदान

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22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है। यह दिवस हम इसलिए मानते है ताकि पृथ्वी साफ सुथरी हो और मानव सुखपूर्वक पृथ्वी पर अपना जीवन यापन कर सके। लगभग हर दिवस के पीछे मानव कल्याण की भावना रहती है। पृथ्वी दिवस भी इससे अछूता नहीं है। कहते है पृथ्वी संरक्षित होगी तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा। लॉकडाउन पृथ्वी  के लिए वरदान साबित हो रहा है। लॉकडाउन के चलते सड़कें खाली पड़ी हैं, हर दिन धुंआ उगलने वाली फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं जिसका सकारात्मक परिणाम धरती पर अब साफ नजर आने लगा हैं। जन जीवन के वीरान होने से से पृथ्वी खुद में सुधार कर रही है।  लॉकडान के दौरान धरती पर 24 घंटे होने वाली गतिविधियां बंद पड़ी हैं। लॉकडाउन के चलते धरती का कंपन 30 से 50 प्रतिशत तक कम हुआ। यातायत, मशीन, ध्वनि, वायु और जल प्रदूषण सहित सड़क दुर्घटनाएं आदि सभी तरह की मानवीय गतिविधियों के चलते धरती कंपकंपाती रहती थी। इसके चलते  वर्तमान में पृथ्वी पर छाई शांति के कारण इसे बाहर से भी उतनी ही अच्छी तरह सुना जा रहा है जितनी अच्छी तरह ये नीचे सुनाई देती हैं। इसके अलावा ओजोन परत में सुधार, प्रदूषण और नदियों के स्तर पर व्यापक सुधर होने से पृथ्वी को बहुत लाभ हुआ है। यह हमारे लिए बेहद खुशी की बात है। इस दौरान पूरी दुनिया घर पर बैठी है वहीँ धरती मुस्करा रही है और पेड़ पौधे खिलखिला उठे है। प्रति के घाव कम हुए है।  जब तक देश-दुनिया में कोरोना का असर कम होगा, तब तक प्रकृति और भी ज्यादा साफ-सुथरी, खिली-खिली और अधिक महकी-महकी नजर आएगी। कोरोना की वजह से  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पृथ्वी को  बहुत फायदा हुआ।  सबसे साफ हुई धरती की आबोहवा।
प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है। जिससे वन्य जन्तुओं और मानव के जीवन पर बुरा प्रभाव पडता है। इसमें कोई दो राय नहीं है प्लास्टिक निर्मित वस्तुएं गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति एवं  रोजी रोटी में सहायक है। लेकिन हम  इसके लगातार उपयोग के खतरे से अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी उपभोग की चीज है जो घर में चैके चूल्हे से लेकर हर स्थान के कार्य के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते, मसाले, कॉपी, किताबे, दवाएं, रेडीमेड सामान, प्रेस किये कपडेÞ ,तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग करते  है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉलीथीन में ही दिया जाता है। आज हम पॉलीथिन के इतने अधिक आदी हो गए है कि  कपड़े, कागज और जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गए है। हमारी आदतों से वाकिफ दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए है क्योंकि वे सस्ते होने के साथ आसानी से उपयोगमें लिए जाते है। यही पॉलीथिन उपयोग के बाद हम सड़क, गली, नुक्कड़ और धरती पर जहां जगह मिले फेंक देते है। इससे पर्यावरण तो प्रदूषित होता ही है अपितु जिसकी हम पूजा अर्चना करते नहीं थकते और मां का दर्जा देते है यह निरीह गाय जैसी पशु इसे खाकर अकाल काल का ग्रास बन जाते है। हमारी नालियां अवरुद्ध होजाती है। पानी का बहाव रुक जाता है। यत्र-तत्र सर्वत्र पॉलीथिन ही पॉलीथिन दिखाइ देती है जो सम्पूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है। पृथ्वी पर सर्वत्र अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जन्म से मरण तक हम पृथ्वी की गोद में रहते है। यह धरती हमें क्या नहीं देती। आज हमारी धरती अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहां देखों वहां कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौंदर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृध्दि के साथ-साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है।: पृथ्वी अनमोल है। इसी पर आकाश है, जल, अग्नि, और हवा है। इन सबके मेल से सुंदर प्रकृति है। आज हमारी पृथ्वी पर जो इतना बड़ा संकट आ खड़ा है यदि समय रहते इसका निदान-निराकरण नहीं हुआ तो हमें बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। अपने-अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर अत्याचार किया जाता है और उनके परिणामों के बारे में कोई नहीं सोचता। अगर हमें पृथ्वी को बचाना है तो हमें विश्व पृथ्वी दिवस पर संकल्प लेना चाहिए कि हम पृथ्वी और उसके वातावरण को बचाने का प्रयास करेंगे। हम पर्यावरण के प्रति न सिर्फ जागरूक हों, बल्कि उसके लिए कुछ करें भी। पृथ्वी को संकट से बचाने के लिए स्वयं अपनी ओर से हमें शुरूआत करनी चाहिए। पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। अपने परिवेश को साफ-स्वच्छ रखना चाहिए। पृथ्वी के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेना चाहिए।

-बाल मुकुन्द ओझा
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