Leave the dogma, this movement is not a sacrifice! हठधर्मिता छोड़िये, यह आंदोलन नहीं यज्ञ है!

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चंडीगढ़ में रेस्टोरेंट संचालन करने वाले एक मित्र मिले, बोले भाई साहब किसान आंदोलन में जा रहा हूं। हमें अचरज हुआ, वह तो किसान नहीं हैं। वह बोले, किसानों के लिए खाने-पीने का सामान देने जा रहा हूं। उनकी उपज से ही हमारा व्यवसाय चलता है। आज वो संकट में आंदोलन पर हैं, तो हमारा भी फर्ज बनता है। हम उनकी उपज से बने व्यंजनों से ही तो रुपये और इज्जत कमाते हैं। हम रोपड़ के एक गांव में गए। गांव के 20 लोग आंदोलन में गये हुए हैं। हमने पूछा उनके परिवार को कौन संभालेगा, तो गांव वाले बोले, जब तक वो आंदोलन से नहीं लौटते, उनके परिवार और खेतों की जिम्मेदारी हमारी है। चंडीगढ़ के हर चौक पर शाम चार से पांच बजे युवा एकत्र होकर किसान आंदोलन के समर्थन में पोस्टर फहराते हैं। दिल्ली बार्डर से लगते गांववासी हजारों लीटर दूध आंदोलनकारियों को देकर आते हैं। हरियाणा में तमाम जगह मंत्रियों और भाजपा विधायकों को गांव वासियों ने खदेड़ दिया। मुख्यमंत्री को किसानों ने घेर लिया और शांतिपूर्ण ढंग से नारे लगाते हुए काले झंडे दिखाये। पुलिस ने उनके खिलाफ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज कर लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में किसान आंदोलन समर्थक नारों के बीच सांसदों ने जल्द चले जाने को मजबूर कर दिया। यह आंदोलन की एक बानगी मात्र है। पंजाब की 32 किसान जत्थेबदियों का धरना 85वें दिन भी जारी रहा। यह जत्थेबदियां पंजाब के सभी टोल प्लाजा, रिलायंस पंपों, कारपोरेट के मॉल और भाजपा नेताओं की रिहायशों समेत 60 अलग-अलग स्थानों पर पक्के धरने लगाये हुए हैं। एक माह से दिल्ली सीमा पर किसान डटे हुए हैं। आंदोलनरत किसानों पर राष्ट्रविरोधी होने का लांछन लगाने के बाद भी उनके हौसले कम नहीं पड़े हैं। अपने करीब 40 साथियों के आंदोलन में शहीद होने के बाद भी वह जोश के साथ आगे बढ़ रहे हैं। अब इस आंदोलन का दायरा देश के तमाम राज्यों से होते हुए, विदेशों में भी फैल चुका है। दो दर्जन देशों में इन कानूनों का विरोध हो रहा है। बावजूद इसके, प्रधानमंत्री मोदी किसानों को भ्रमित और सेल्फी वाला इवेंट, पिकनिक बताते हैं। यही कारण है कि आज किसान धिक्कार दिवस मना रहे हैं।

पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री ने डेढ़ दर्जन इवेंट्स में हिस्सा लिया है। वह कभी उद्योग संघों से बात करते हैं। कभी बनारस और गुजरात के चुनिंदा किसानों से। वह मन की बात भी करते हैं और टीवी पर प्रसारण के जरिए लोगों से कुछ लोगों से संवाद भी। दावा करते हैं कि वह किसानों के सबसे बड़े हितैषी हैं। वह किसानों के हित के लिए सुधार कर रहे हैं मगर अपने आवास से चंद किमी दूर दिल्ली सीमा पर बैठे किसानों से बात नहीं करते। वह किसानों का हितैषी बताकर कानून लादते हैं मगर जिनके लिए सुधार कर रहे हैं, उनकी बात नहीं सुनते। किसान उनके इन हितकारी कानूनों को कारपोरेट का हित साधक बताते हैं। प्रधानमंत्री जब अपनी ही कैबिनेट के मंत्री, कई सहयोगी और विरोधी दलों के सांसदों को इसमें किसान हित नहीं समझा सके, तो किसानों से उम्मीद कैसे करते हैं? किसानों के सवालों और आपत्तियों का न तो उनके मंत्री कोई विधिक जवाब देते हैं और न ही वह खुद भी। पढ़े लिखे और तकनीक से युक्त किसानों को भी समझ नहीं आ रहा कि कैसे यह कानून उनका हित करेंगे। किसान प्रधानमंत्री को ही भ्रमित मानते हैं। सरकार कानूनी संरक्षण देकर कारपोरेट को कृषि क्षेत्र में उतार रही है। मोदी-1 के पांच साल में सरकार ने पूंजीपतियों के कर्ज का 7.95 लाख करोड़ रुपये माफ कर दिया, जो ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। इसी दौरान उसने किसानों का कर्ज माफ करने के लिए राज्यों को कुछ नहीं दिया। देशभर की राज्य सरकारों ने अपने संसाधनों से किसानों का करीब ढाई लाख करोड़ रुपये का कर्ज जरूर माफ किया।

संविधान में लिखा है कि सरकार लोककल्याण की भावना से काम करेगी मगर सच यह है कि वह खुद को खुदा मान लेती हैं। किसानों का दर्द सुनने को अदालत के पास भी वक्त नहीं है जबकि वह सरकार के चहेतों की याचिकाओं पर रात में भी सुनवाई करने में देर नहीं लगाती। पंजाब संघर्ष में सदैव अगुआ रहा है। आपको याद होगा, देश की आजादी के वक्त पंजाब के किसानों ने महिनों आंदोलन कर अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था। एक माह से दिल्ली सीमा पर संघर्षरत किसानों का आंदोलन अब देश की सीमाओं के बाहर भी फैल चुका है। भारत के कोने कोने से किसान यहां आने की कोशिश कर रहे हैं मगर सरकारें पुलिस के जरिए उन्हें रोक रही हैं। पिछले 20 सालों में करीब 18 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। राष्ट्रीय किसान आयोग ने माना था कि देश में साढ़े चार लाख से अधिक किसान खुदकुशी कर चुके हैं। सरकार किसानों के आधार को मजबूत करने के नाम पर कारपोरेट को मजबूत दे रही है। बदहाल अर्थव्यवस्था के दौर में भी कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 फीसदी रही है, जिससे कारपोरेट की उस पर पैनी नजर है। सरकार किसानों की मदद के नाम पर रोजाना 16.32 रुपये एक किसान परिवार को देती है। इस योजना से देश का आधा किसान भी लाभांवित नहीं होता है। वहीं, किसानों के विदेशों में बसे परिजन जब उन्हें मदद भेजते हैं तो सरकार इसे विदेशी फंडिंग बताकर किसानों के घरों पर छापेमारी कर रही है। इससे साफ है कि सत्ता के लिए हमारे चुने गये नुमाइंदे अराजक हो गये हैं। वह आंदोलन को बदनाम करने के लिए वह हर काम कर रहे हैं, जिसे अनैतिक माना जाता है।

सरकार और अदालतों में बैठे लोगों को समझना चाहिए कि उनकी रईसी की जिंदगी, हमारे टैक्स से मिलती है। बावजूद इसके वह किसानों को रुलाते हैं। मजबूरन किसान यह कहने को विवश है कि “हमारी कोई नहीं सुनता, न सरकार सुनती है और न अदालत”। शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर किसानों का दर्द बढ़ा दिया कि किसान आंदोलन के इवेंट मैनेजमेंट है। वे सेल्फी और पिकनिक मनाने जमा हुए हैं। किसान अपने संसाधनों से पुलिस और सरकार से लड़ते हुए दिल्ली सीमा पर पहुंचे हैं। उन्हें अपनी दिल्ली में जंतर मंतर तक नहीं जाने दिया गया। प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों की फौज देशभर में लगाकर किसान सम्मान निधि देने का इवेंट आयोजित किया। करीब 300 करोड़ रुपये खर्च करके टीवी के सीधे प्रसारण को दिखाया गया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में किसान आंदोलन को इवेंट मैनेजमेंट बताते हुए कृषि कानूनों को भाग्य विधाता बताया। उन्होंने किसान सम्मान निधि और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का गुणगान किया। बंगाल की सरकार पर यह कहते हुए हमला बोला कि वह केंद्र की योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं दे रही हैं। उन्होंने केरल में मंडी न होने पर विपक्ष को घेरा मगर बिहार में मंडियां न होने का जिक्र भी नहीं किया। पहली बार संसद में सांसदों ने किसान हित में प्रधानमंत्री का विरोध किया। प्रधानमंत्री खुद यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि किसान दुर्दशा का शिकार है। बिहार, यूपी, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तराखंड में तो एक किसान परिवार की आय पांच हजार रुपये महीने से भी कम है। जबकि सरकार मोदी के भाषण के प्रसारण पर प्रति मिनट पांच लाख रुपये खर्च करती है।

आपको याद होगा किसान सम्मान निधि की पहली किस्त लोकसभा चुनाव के तुरंत पहले दी गई थी। दूसरी किस्त चुनाव के बीच में। वजह, चुनाव में किसान कैश वोट बना। आंकड़े बताते हैं कि किसान बीमा योजना के तहत बीमा कंपनियों को 7984 करोड़ रुपये प्रीमियम दिया गया और कंपनियों ने किसानों को सिर्फ 5373 करोड़ रुपये ही दिया। रिलायंस सहित कई निजी इंश्योरेंस कंपनियां इसका मुनाफा वसूल रही हैं, सरकारी कंपनियों को कुछ नहीं। मोदी सरकार किसानों के लिए सुधार के नाम पर स्वामीनाथन कमेटी की 201 में से सिर्फ 25 सिफारिशें ही लागू करती है। स्वामीनाथन ने जो बड़ी सिफारिशें की थीं, उनमें किसानों की आत्महत्या रोकने, भूमि सुधार करने, सिंचाई व्यवस्था बनाने, संस्थागत ऋण सुलभ कराने और किसानों को तकनीक मदद देने के लिए काम करने की थीं। सरकार ने इन पर काम नहीं किया। मोदी सरकार की दलवई कमेटी ने भी फसल और पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने, किसानों को संसाधन उपलब्ध कराने और फसलों की विभिदता और घनत्व बढ़ाने पर काम करने की सलाह दी थी। उसने गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देने की भी बात कही थी मगर कुछ नहीं हुआ। इससे यही लगता है कि सरकार के पास कोई विजन नहीं है। वह कारपोरेट के हाथ में सब सौंपकर सिर्फ टैक्स खाने और अपनी पार्टी को चंदा दिलाने पर काम कर रही है। यह बात सरकार के बजट से साबित होती है। इस वित्त वर्ष में 30.42 लाख करोड़ की आय का अनुमान पेश हुआ। इस आय में 24.22 लाख करोड़ सिर्फ टैक्स (आयकर, जीएसटी, कारपोरेशन टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, रोड इन्फ्रा सेस, अन्य सेस, कस्टम ड्यूटी, यूटी टैक्स) से मिलेंगे। इसके अलावा सेवा कर (संचार, ट्रांसपोर्ट, रेलवे, बस, सड़क और बिजली के सेवाकर) से साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये कमाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के डिवीडेंट, ब्याज, एनपीए आदि से कमाएगी। बजट में ऐसा कोई विजन नहीं दिखा, जिसमें नागरिकों की जेब खाली किये बगैर कमाई की जा सके।

केंद्र सरकार अपने मंत्रालयों और उनकी सुविधाओं पर पौने नौ लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है। बावजूद इसके वह हठधर्मिता पर उतरी हुई है। वह किसानों की बात न सुनना चाहती है और न समझना। वह अपनी शर्तों पर ही बात करना चाहती है। शायद कारपोरेट के हित उसके लिए सर्वोपरि हैं, किसान नहीं। उसकी यह सोच देश को बरबादी की ओर ले जाएगा।

जय हिंद!

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक मल्टीमीडिया हैं)  

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