Kurkushetra News : सेवा में समर्पित आयुष विश्वविद्यालय की जांबाज थैरेपिस्ट सुनंदा जांगड़ा

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Sunanda Jangra, a brave therapist of Ayush University dedicated to service
  • हादसे में थर्ड डिग्री तक झुलसी, जान जोखिम में डाल बचाई किशोरी की जान

(Kurkushetra News) कुरुक्षेत्र। श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय की महिला कर्मचारी सुनंदा जांगड़ा ने यह साबित कर दिया है कि नारी केवल संवेदना की प्रतीक नहीं,बल्कि साहस, समर्पण और सेवा का जीवंत उदाहरण भी है। विश्वविद्यालय के कौमारभृत्य विभाग में वर्ष 2022 से बतौर थैरेपिस्ट कार्यरत सुनंदा ने तीन महीने पहले एक हादसे में अपनी जान जोखिम में डालकर एक 16 वर्षीय किशोरी की जान बचाई।

ब्लास्ट के कारण थेरेपी रूम पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था

5 फरवरी 2025 की दोपहर करीब 2:15 बजे जब सुनंदा 16 वर्षीय किशोरी को स्टीम थेरेपी देने की तैयारी कर रही थीं, तभी अचानक से मशीन में ब्लास्ट हो गया। कमरे में धुआं भर गया और स्थिति गंभीर हो गई,लेकिन अपनी सूझबूझ और साहस का परिचय देते हुए सुनंदा ने किशोरी को धक्का देकर बाहर निकाल दिया, जिससे किशोरी झुलसने से बच गई। हालांकि इस हादसे में सुनंदा खुद थर्ड डिग्री तक झुलस गईं। सुनंदा का कहना है कि अगर कुछ सेकेंड की देरी हो जाती तो बड़ा हादसा हो सकता था। ब्लास्ट के कारण थेरेपी रूम पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था।

सुनंदा की हालत इतनी नाजुक थी कि उन्हें लगभग एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। मगर उनका सेवाभाव इतना दृढ़ था कि स्वस्थ होते ही उन्होंने फिर से ड्यूटी ज्वाइन की। आज भी वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं,लेकिन मरीजों की सेवा करने का जुनून उन्हें लगातार प्रेरित करता है।

बेटे की फ्लाइट से पहले हुआ हादसा

सुनंदा ने बताया कि जिस वक्त यह हादसा हुआ,उसी दिन उनके बेटे की फ्लाइट थी और उन्हें एयरपोर्ट तक छोड़ना था। लेकिन घटना की गंभीरता के कारण उनके बेटे को भी यात्रा स्थगित कर मां की सेवा करनी पड़ी। हादसे के बाद जब तक वह स्वस्थ नहीं हुई, तब तक विश्वविद्यालय प्रशासन और स्टाफ ने उन्हें एक परिवार की तरह सहयोग दिया। सुनंदा का कहना है कि-अगर आज मैं फिर से मरीजों की सेवा कर पा रही हूं तो इसका श्रेय विश्वविद्यालय की सहयोगी भावना और प्रोत्साहन को जाता है।

ऐसे कर्मयोगियों को मैं नमन करता हूं: प्रो.धीमान

श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि सुनंदा जांगड़ा की यह कहानी न केवल प्रेरणास्पद है,बल्कि यह समाज को यह संदेश देती है कि सच्चे कर्मयोगी विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धर्म नहीं छोड़ते।सुनंदा का साहस, सेवाभाव और कर्तव्यनिष्ठा विश्वविद्यालय परिवार के लिए गर्व और प्रेरणा का विषय है। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने जिस धैर्य और समर्पण का परिचय दिया,वह वास्तव में प्रशंसनीय है। यह विश्वविद्यालय अपने कर्मचारियों की ऐसी भावना और निष्ठा को सादर नमन करता है।

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