Indian state amid global epidemic: वैश्विक महामारी के बीच भारतीय राज्य

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26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर देश के लोगों से ‘मन की बात’ करी। इस दौरान उन्होंने ूङ्म५्र६िं११्रङ्म१२.ॅङ्म५.्रल्ल नाम के एक डिजिटल प्लेटफार्म का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने बताया कि यह डिजिटल प्लेटफार्म उनके कोविड मैनेजमेंट प्लान का हिस्सा है। इसी साईट के हवाले से हमें कुछ महत्वपूर्ण चीजें पता चलीं। उस विवरण पर जाने से पहले हमें एक पूर्व के उपलब्ध विवरण पर चलना होगा। यह विवरण किसी निजी संस्था का नहीं बल्कि नीति आयोग का है। साल 2019 में नीति आयोग ने एक स्वास्थय इंडेक्स तैयार किया जिसे वर्ल्ड बैंक की तकनिकी सहायता और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के परामर्श से बनाया गया। इस इंडेक्स में बड़े राज्यों, छोटे राज्यों और केंद्र शासित राज्यों को अलग-अलग, स्वास्थ्य से जुड़े 23 मानकों पर रखा गया। इन मानकों में मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर और लिंग अनुपात को प्रमुखता दी गई। इसमें सबसे अच्छा प्रदर्शन केरल ने किया और आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। इसके अलावा हरियाणा, राजस्थान और झारखंड में सबसे अधिक सुधार देखा गया। इस इंडेक्स में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड रहे।
केंद्र शासित राज्यों में चंडीगढ़ ने स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे बेहतर प्रदर्शन किया और छोटे राज्यों में मिजोरम ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। केरल का स्कोर जो 2015-16 में 76.55 था वो 2017-18 में 74.01 रहा लेकिन राज्य निरंतर प्रथम स्थान (1) पर ही रहा। वहीं उत्तर प्रदेश के हालात सबसे खराब थे। जहां 2015-16 में राज्य का स्कोर 33.69 था वहीं 2017-18 में यह गिरकर 28.61 रह गया। उत्तर प्रदेश इस रैंकिंग में सबसे निचले पायदान (21) पर रहा। ध्यान देने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश 2017-18 में एक मात्र ऐसा बड़ा राज्य रहा जिसका स्कोर 30 से भी कम रहा। उत्तर प्रदेश से ठीक एक पायदान ऊपर रहने वाले बिहार का स्कोर 32.11 रहा।
यह इंडेक्स तब आया था जब ऐसे अप्रत्याशित समय की कोई कल्पना नहीं थी, इसलिए इस इंडेक्स को कोविड-19 से नहीं जोड़ा जा सकता है। हां, लेकिन ये इंडेक्स सोचने के लिए कई सवाल खड़े कर देता है जैसे कि- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तराखंड और बिहार जैसे राज्य स्वास्थ्य के क्षेत्र में केरल से सबक क्यों नहीं लेते?, क्यों हर साल सबसे नीचे पायदान पर होने के बावजूद ये राज्य सुधार लाने की कोशिश तक नहीं करते?, क्यों इन राज्यों को ये नहीं समझ आता कि विकास का सबसे महत्वपूर्ण मानक मानव-विकास है?, क्यों ये राज्य दिल्ली की तरह अपने राज्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा मानव-विकास के क्षेत्र जैसे शिक्षा और स्वास्थ पर खर्च नहीं करते?, क्यों ये राज्य इन सब विषयों पर चर्चा आखिरी समय के लिए छोड़ देते हैं? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्यों इन राज्यों की सरकारों से इस विषय पर सवाल नहीं किया जाता?
नीति आयोग के इस इंडेक्स के जिक्र करने के पीछे का मेरा मकसद आगे के लेख में स्पष्ट हो जाएगा। इस लेख की शुरूआत में मैंने एक डिजिटल प्लेटफार्म का जिक्र किया था। इस साईट पर उपलब्ध आंकड़ों का एक विश्लेषण दिया गया है। इस विश्लेषण के मुताबिक देश में प्रति 1 लाख की जनसंख्या पर मात्र 333 स्वास्थ्य कर्मी (डॉक्टर, नर्स और फार्मासिस्ट) उपलब्ध हैं। कुछ राज्यों में स्थितियां और भी गंभीर हैं। सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की है, जहां प्रति 1 लाख आबादी पर मात्र 133 स्वास्थ्य कर्मी हैं। उत्तर प्रदेश के बाद क्रमश: बिहार (157), जम्मू और कश्मीर (167), पश्चिम बंगाल (256), मध्य प्रदेश (281), तेलंगाना (283) और राजस्थान (322) इस अनुपात में राष्ट्रीय औसत से कम वाले राज्य हैं। इन सभी राज्यों में 1000 से ज्यादा कोविड केस दर्ज किए जा चुके हैं। इनके अलावा जिन राज्यों में संक्रमितों की संख्या 1000 से ऊपर है, वे राष्ट्रीय औसत से कुछ बेहतर हैं, जैसे- गुजरात (416), महाराष्ट्र (524), तमिलनाडु (527), कर्नाटका (564), पंजाब (583), दिल्ली (593) और आंध्र प्रदेश (616) अन्य राज्यों से अच्छी स्थिति में हैं। जिस साईट का यह विवरण है उसमें तकरीबन 45.81 लाख स्वास्थय कर्मी जुड़े हैं जिनमें 9.27 लाख एमबीबीएस डॉक्टर और तकरीबन 17.48 लाख नर्स भी जुड़ी हुई हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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