India-Canada Conflict | राकेश शर्मा | जब नेता या सरकारें कमजोर होतीं हैं तब अपना अस्तितव बचाने के लिए तुष्टिकरण करने से परहेज नहीं करती, छोटे दलों की जायज-नाजायज मांगों और अपेक्षाओं के आगे नतमस्तक हो जाती है फिर वो चाहे देश, समाज के हित में हो या ना हो, इस पर ध्यान दिये बिना सिर्फ सत्ता में बना रहना ही उद्देश्य रह जाता है। आजकल कनाडा में आंतरिक और बाह्य द्वन्द जो चल रहा है उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Canada’s Prime Minister Justin Trudeau) के शासन काल का दूसरा टर्म शुरूआत से ही बैसाखियों पर टिका हुआ है। न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह जिनके 25 सांसद चुनकर आये थे उन्हीं की मदद से ट्रूडो दूसरी बार प्रधानमंत्री बन सके थे।
यहां यह बता दूं कि जगमीत सिंह खलिस्तान की मांग को खुला समर्थन करते है और ट्रूडो को सपोर्ट की एक शर्त यह भी थी कि कनाडा में खालिस्तानी (khalistani movement in canada) मूवमेंट पर कोई प्रतिबंध नहीं लगेगा।
ट्रूडो के सारे कार्यकलापों से उजागर है की उसने जगमीत सिंह (Jagmeet singh) को इसकी मौन स्वीकृति दी और इसके लिए भारत से रिश्ते खराब करने को भी तैयार हो गये। इधर कनाडा में घरेलू हालात लगातार बिगड़ने लगे, हर मोर्चे पर ट्रूडो सरकार की थू-थू होने लगी चाहे वह महंगाई हो, रोजगार हो, घर हों, स्वास्थ्य व्यवस्था हो।
सब फ्रंट पर कनाडा में त्राहि-त्राहि मची हुई है। ट्रूडो की पॉपुलैरिटी इस समय निम्न स्तर पर है और सर्वेक्षणों के अनुसार उनका अगले साल होने वाले चुनाव में जीतना बहुत मुश्किल है। यह भांपते हुए जगमीत सिंह ने ट्रूडो सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई।
इसका फायदा उठाते हुए विपक्ष के नेता पिएरे पॉलिवर (Pierre Poilievre) ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव ला दिया। ट्रूडो ने अपनी सरकार बचाने के लिए सभी छोटे-मोटे दलों और जगमीत सिंह के साथ क्या-क्या समझौते किए अब सामने आ रहा है। विएना संधि का उल्लंघन करते हुए कनाडा ने भारतीय उच्चायोग के शीर्षस्थ अधिकारियों की हरमीत सिंह निज्जर की हत्या के मामले में पुलिस जांच की मांग की।
ऐसा लगता है ठंडा पड़ रहे मुद्दे को जगमीत सिंह के कहने पर ही पुनर्जीवित किया गया। कनाडा के इस कृत्य के चलते भारत ने कनाडा उच्चायोग में कार्यरत छ: उच्चस्थ अधिकारियों को वापस बुला लिया और भारत स्थित कनाडा के उच्चाधिकारियों को 19 अक्तूबर तक भारत छोड़ने के निर्देश दे दिये हैं।
यह राजनयिक संबंधों की न्यूनतम स्थिति कहलाती है। आश्चर्य है कि अलगाववादियों खलिस्तानियों का समर्थन करने वालों के तुष्टिकरण करने के लिए ट्रूडो भारत के साथ संबंध खराब करने की हद तक जा सकते हैं।
सर्वेक्षणों के अनुसार दुबारा चुनकर आने के उम्मीद तो ट्रूडो को कम हैं, लेकिन जो बीज कनाडा-भारत संबंधों की कड़वाहट के बो रहे हैं उससे दोनों देशों की जनता, छात्र, व्यापारियों को भुगतना पड़ेगा। सिद्धांतहीन तुष्टिकरण सदैव, हर भौगोलिक परिवेश में अंतोत्गत्वा हानिकारक होता है।
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