Human’s role in corona virus genesis: कोरोना वायरस उत्पत्ति  में मानव की भूमिका

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राष्ट्रपति ट्रम्प ने कोरोनोवायरस को ‘चीनी वायरस’ कहा ही था कि दुनिया भर में जो आरोप प्रत्यारोप की अंताक्षरी सी आरम्भ हो गई। इसके तुरन्त बाद एक चीनी खबर उछली कि वुहान में कोरोना की शुरूआत अमेरिका से आई एक महिला द्वारा हुई और खबरें आनी शुरू हुई कि कहीं यह पेंटागन की करतूत तो नहीं है लेकिन यह खबर ज्याद न चली और इसे वुहान की अजीबोगरीब एनिमल मार्किट से जोड़ दिया गया । कोरोनोवायरस प्रकोप से निपटने के लिए उस देश के लिए मिसौरी राज्य चीन पर मुकदमा कर रहा है। किसी राज्य द्वारा लाया गया यह पहला ऐसा मुकदमा हैजो कोई भी नया रअफर कोरोनवायरस कहलाता है, वह वुहान में एक वायरोलॉजी रिसर्च लैब से बाहर आ सकता है, जोश रोजिन, जिन्हें वॉशिंगटन पोस्ट स्तंभकार के रूप में विदेश विभाग में प्लग किया जाता है, को 2015 के लिए डेटिंग के दस्तावेज दिखाए गए थे, जिसमें खुलासा किया गया था कि कैसे अमेरिकी सरकार उस वुहान लैब में सुरक्षा मानकों के बारे में चिंतित थी। वास्तव में, वे चिंतित थे कि एक दिन, इनमें से एक प्रयोग – जिसमें बैट कोरोनवीरस पर एक भी शामिल है – बच सकता है और एक वैश्विक दु:स्वप्न बन सकता है।
उडश्कऊ-19 के कई शुरूआती मामलों को वुहान 1,2 में हुनान बाजार से जोड़ा गया था, यह संभव है कि इस स्थान पर एक पशु स्रोत मौजूद था। एसएआरएस-सीओवी -2 की समानता एसएआरएस – सीओवी – जैसे कोरोना वायरस 2 की चमगादड़ के वायरस से मिलती जुलती है देखते हुए, यह संभावना है कि चमगादड़ ही इसके हमारे तक पहुंचने का जरिया है। चाहे वह वुहान के खाद्य बाजार से लैब से गलती से निकल कर आ गया। लेकिन मैं अपने इस खूबसूरत धरा पर बिताये लगभग पचहत्तर वर्ष के अनुभव से कह सकता हूं कि यह भेद भी अन्य कई रहस्यों यथा राष्ट्रपति केनेडी की हत्या या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के रहस्य की तरह सरकारों की क्लासीफाइड फाइल्स में दबा रह जाएगा। लेकिन आइये आम आदमी वा मेरे पचास वर्षीय चिकित्सीय अनुभव के सहारे इस के रहस्य को कुछ समझने समझाने का प्रयास करें। 1 -पहली बात तो यह कि कोरोना की पहचान 196 0 में हो चुकी थी कोविड 19 मात्र उसी का नवीन संस्करण है कोई नया वायरस नहीं है। रअफर-उङ्मश्-2 मनुष्यों को संक्रमित करने के लिए जाना जाने वाला सातवां कोरोनवायरस है, रअफर-उङ्मश्, टएफर-उङ्मश् और रअफर-उङ्मश्-2 गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं, जबकि ऌङव1, ठछ63, डउ43 और 229ए हल्के लक्षण से जुड़े हैं। यह भी अब तक जान गए हैं की कोरोना वायरस हम तक चमगादड़ के माध्यम से पहुंचा है। चमगादड़ एक मात्र स्तनधारी जीव है जो उड़ सकता है।
चमगादड़ वायरस का एक सामान्य स्रोत हैं: एुङ्म’ं, रअफर, टएफर, और ठ्रस्रंँ इन सभी का पता लगाया जा सकता है चमगादड़ उड़ने की क्षमता वाले एकमात्र स्तनपायी हैं, जो उनके शरीर के तापमान और चयापचय (बीएमआर) दर को बढ़ाते हैं, और उनके शरीर को स्थिर करते हैं। ‘बुखार’ की स्थिति। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि चमगादड़ों ने अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को सामना करने के लिए बदल दिया है, जो उन्हें अधिक वायरस को सहन करने की अनुमति देता है। वुहान के विचित्र जंतु बाजार में अनेक दुर्लभ  व विचित्र जंतु बिकने आते हैं जिन्हे विचित्र गुण स्वभाव के मानव डेलिकेसी कहते हैं व इनका स्वाद पाने के लिए इन्हे मारते हैं पकाते हैं खाते हैं यह कोई छुपी बात नहीं अपितु एक सर्वविदित तथ्य है। वैज्ञानिकों ने एक और स्तनधारी जीव की पहचान की है इस वायरस शृंखला को हम तक पहुंचाने के लिए। वह है ग्वांगडोंग प्रांत में अवैध रूप से आयात किए जाने वाले मलायन पैंगोलिंस (जवनिका) में रअफर-उङ्मश्-221 के समान कोरोनवीरस होते हैं। हालांकि फंळॠ13 बैट वायरस जीनोम 1 के पार रअफर-उङ्मश्-2 के सबसे करीब है, कुछ पैंगोलिन कोरोनवायरस फइऊ में रअफर-उङ्मश्-2 के लिए मजबूत समानता प्रदर्शित करते हैं, जिसमें सभी छह फइऊ  अवशेषों 21 भी शामिल हैं। कोविड 19 को या किसी भी जीव को  जन्म देने में तो मानव अभी तक सफल नहीं हुआ है संभवत होगा भी नहीं, लेकिन जेनेटिक मोडिफिकेशन संभवत कर सकता है, ठीक वैसे ही जैसे हम ने अधिक उत्पाद हेतु  तथाकथित उन्नत बीज बनाए. उदाहरणार्थ  बी टी कॉटन लेकिन मानव् ने चीन या अमेरिका ने बनाया हो या नहीं हम सब कोविड 19 जैसी बीमारियों के लिए दोषी अवश्य हैं। आइये अपने दोष जानने की कोशिश करें अगर लैब से नही आया तो  मिलियन डॉलर सवाल उठता है कि ये वायरस अपना घर छोड़कर पराए घर में क्यों आ जाते हैं। दूसरा सवाल है कि े४३ं३्रङ्मल्ल में मनुष्य का क्या योगदान है अगर है तो क्या योग दान है।
अस्ल में ये बेचारे आते नहीं हम इन्हे मजबूर करते हैं। जैसे हिटलर ने यहूदियों को, 194 7 के विभाजन ने हिन्दू मुस्लिमों को शरणार्थी बनने पर मजबूर किया था वैसे ही हम प्रकृति के सभी जीवों को उजाड़कर मजबूर कर आरहे हैं शरणार्थी बनाने को। हम इंसानो ने जंगल काट दिए वहां रहने वाले अनेक जीव जो जंगल की घास फूस से पेट भरते थे या तो मार दिए गए या भूख से मर गए तो शेर चीते खाने की तलाश में गांव आकार भेड़ बकरियां चुराने लगे जब वे भी सुरक्षित जगह पहुंचा दी गईं, तो वे भूखे शेर बच्चो आदमियों पर हमला करने को मजबूर हो जाते हैं ना। तो बस जब हमने चमगादड़ो तक से अपनी उदरपूर्ति शुरू कर दी तो अपने घर चमगादड़ को उजड़ा पाकर वायरस  भी जो सामने आया हम उसी के हो लिए अर्थात वे मनुष्य में आ गए। अब मनुष्य चमगादड़ जैसी प्रतिरोध शक्ति न होने से असहाय हो कर मर रहा है। प्रकृति का नियम है जल्द ही आदमी  भी इसके लिए प्रतिरोध क्षमता बना लेगा जैसे पहले जुकाम आदि के लिए बनाई है। प्रकृति का हर जीव प्रतिरोध क्षमता बनाने में सक्षम होता है। आपको याद दिला दूं कि मलेरिया उन्मूलन हेतु डीडीटी स्प्रे होता था मच्छर  शुरूआत में तो मर जाते थे। दीवारों पर नारे पोते गए न रहेगा मच्छर न रहेगा मलेरिया।
लेकिन कुछ दिनों में मच्छर ने अपनी प्रतिरोध क्षमता पैदा कर ली वह डी डी टी से नहीं मरता। तो नारा बना ‘मच्छर रहेगा मलेरिया नहीं’। आपको  खुद भी अनुभव होगा की अब मच्छर पर गुड नाइट या हिट का पहले जैसा असर नहीं होता। तो डरें नहीं मानव जाति खत्म नहीं होगी मानव भी जल्द प्रतिरोध क्षमता पैदा कर ही लेगा महामारी आई गई भी महामारी हस्ती मिटती नहीं हमारी, #ट४३ं३्रङ्मल्ल में मानव का योगदान दोस्तों एक छोटा सा तथ्य जब ेुु२ के थर्ड ईयर में हमारी ड्यूटी ७-१ं८ विभाग में लगी तो हमे १ं्िरं३्रङ्मल्ल  विकिरण के प्रभाव के बारे में बताते हुए नागासा की हिरोसीमा का उदाहरण देकर बताया गया था कि विकिरण के क्या प्रभाव होते हैं अत: हमें ’ी िया शीशे ( जस्ते) के एप्रन पहनने को देते थे आज भी सी टी स्केन आदि में भी प्रयोग होते हैं।  मगर कभी सोचा आपने हमने अपने घरों को माइक्रो हिरोसीमा बना रखा है छएऊ बल्ब से लेकर सेल फोन, ३५ े्रू१ङ्म ६ं५ी. फ्रिज एसी , वाई फाई क्या नहीं है जो विकिरण नहीं देता ऊपर से बन्द कमरे घर आफिस में, प्रोसेस फूड, एक ओर ये हमारी प्रतिरोधक क्षमता को इम्युनिटी को घटाते हैं दूसरी ओर इन वायरस को भी खुद को  बचाने के लिये खुद को म्युटेट करने को मजबूर करते हैं।  लेकिन क्या हम मानव इस विपदा से जिसने सारे विश्व को हॉउस अरेस्ट कर दिया कोई सबक लेंगे पुराने अनुभव से ऐसा लगता नहीं। दो विश्व युद्ध हमें नहीं समझा सके की शांतिसे रहें , हीरोशिमा नागासाकी पर बम वर्षा करने वाला पायलट तो पागल होकर मर गया लेकिन नेताओं का पागलपन बम बनाने की होड़ लगा है आज भी । प्रदूषण से ओजोन तक में छेड़ हो गया लेकिन काया हमने सबक लिया ? जब इस लॉक डाउन में थोड़े में गुजर हो रहा है तो क्यों नहीं सीखते हम ? हथियारों की दौड़ में फिजूल खर्ची बंद कर पैसा बचाकर हम धरती से भुखमरी , मलेरिया टीबी आदि अनेक बीमारियों के उन्मूलन पर ध्यान क्यों नहीं देते।

श्याम सखा श्याम
(लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व डायरेक्टर हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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