नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करने से जाग उठती है सोई हुई किस्मत
Lord Surya Puja, (आज समाज), नई दिल्ली: रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा करने से सोई किस्मत जाग उठती है। सूर्य देव ब्रह्मांड के कर्ताधर्ता ही नहीं है बल्कि नवग्रहों के राजा भी है। इसलिए रोजाना सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में खुशियां ही खुशियां आती हैं। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

इसलिए सुबह-सुबह उगते हुए सूर्य को प्रणाम करने के साथ स्नान आदि करने के बाद अर्घ्य देना चाहिए, लेकिन कई बार बारिश के मौसम में बादल के कारण और सर्दी के मौसम में कोहरे के कारण सूर्यदेव न दिखाई दें तो हमें कैसे करनी चाहिए उनकी साधना, जानने के लिए पढ़ें ये लेख।

सूर्य की पूजा का धार्मिक महत्व

मान्यता है भगवान राम जो कि सूर्यवंशी थे वे खुद प्रतिदिन उगते हुए सूर्य की पूजा किया करते थे। मान्यता यह भी है कि उन्होंने रावण का वध करने से पहले सूर्य देव का ध्यान किया था।

भगवान कृष्ण के पुत्र सांब ने भी सूर्य की साधना-आराधना करके उनका आशीर्वाद लिया था। मान्यता है कि सूर्य देव के आशीर्वाद से ही सांब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी। महाभारत काल में भगवान सूर्य ने ही द्रापैदी की पूजा से प्रसन्न होकर उसे अक्षय पात्र दिया था।

अर्घ्य देते समय भगवान सूर्य के मंत्र का जप जरूर करना चाहिए

यदि खराब मौसम के कारण आपको सूर्यदेव के दर्शन न हो पाएं तो आपको बिलकुल भी निराश नहीं होना चाहिए और प्रतिदिन की भांति पूर्व दिशा की ओर मुख करके तांबे के बर्तन में रोली, लाल पुष्प, अक्षत और शुद्ध जल डालकर सूर्यदेव का ध्यान करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देते समय भगवान सूर्य के मंत्र का जप जरूर करते रहें।

सूर्य की कृपा पाने का उपाय

जीवन में सभी प्रकार के सुखों को पाने के लिए प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्नान-ध्यान करने के बाद उगते हुए सूर्य देव को तांबे के लोटे से जल देना चाहिए।

भगवान सूर्य की पूजा में विशेष रूप से गुड़ का भोग लगाना चाहिए। यदि आप चाहें तो सूर्य देवता को अर्घ्य के लिए दिए जाने वाले जल में ही गुड़ मिलाकर अर्पित कर सकते हैं। सूर्य देवता को अर्घ्य देने के बाद आदित्य हृदय स्तोत्र का तीन बार पाठ करना चाहिए।

सूर्य देव को कितनी बार चढ़ाएं जल

शास्त्रों के अनुसार, सूर्य देव को तीन बार जल चढ़ाने की परंपरा है। पहले एक बार अर्घ्य करें। इसके बार परिक्रमा करें। फिर अर्घ्य दें और फिर परिक्रमा करें और अर्घ्य दें। साधारण शब्दों में कहें तो तीन बार अर्घ्य देने के साथ तीन बार परिक्रमा करें।

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