High Label Weddings and Current Society: हाई लेबल शादियां और मौजूदा समाज

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हाई लेबल की शादियां क्यों टूट रही हैं? इस तरह के सवाल आजकल मध्यमवर्गीय परिवारों में भी पूछे जाने लगे हैं। ताजा मामला टीना डाबी और अतहर अमीर खान का है। 2016 बैच के आईएएस अधिकारियों टीना डाबी और अतहर अमीर खान के अलगाव ने हाई लेबल की शादियों को फिर से फोकस में ला दिया है। दरअसल, डाबी और खान की शादी जिन्होंने 2016 के यूपीएससी इम्तिहान में क्रमश: पहली और दूसरी रैंक हासिल की थी, सबसे चर्चित थी, जिसमें उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, और केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, 2018 में उनके विवाद में शरीक हुए थे। लेकिन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के अधिकारियों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में ही अधिकारियों के बीच 70 से अधिक शादियां हो चुकी हैं।
एक वरिष्ठ डीओपीटी अधिकारी के मुताबिक पिछले कुछ सालों में अधिकारियों के बीच, शादियों की संख्या भले ही बढ़ गई हो, लेकिन निश्चित रूप से ये कोई नया रुझान नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में सिविल सर्विसेज में, महिलाएं भी ज्यादा आ रही हैं, इसलिए ऐसी शादियों की संख्या बढ़ गई है लेकिन अफसरों के बीच शादियां दशकों से होती आ रही हैं।
सामाजिक प्रतिष्ठा से लेकर समान प्रोफेशनल अनुभव और तनाव, ताकत को मजबूत करने से लेकर अच्छे कार्ड्स तक, सिविल सर्वेंट्स के जीवन साथी के रूप में सहकर्मियों को चुनने के कई कारण होते हैं। लेकिन जो लोग मैदान में हैं, उनका कहना है कि आगे का रास्ता बिल्कुल भी सुगम नहीं होता। आपसी समझ की जगह तनाव पैदा कर देते हैं, और समान अनुभव तथा करियर की संभावनाएं, अहंकार की लड़ाई में बदल सकती हैं। और समान काडर का वादा भी, बरसों की लंबी-दूरी या ह्यवीक-एंड शादियोंह्ण से छुटकारा नहीं दिलाता, चूंकि एक ही राज्य में रहते हुए भी, अधिकारी मुश्किल से ही एक जिÞले में रह सकते हैं। आधिकारियों के बीच शादियों के बारे में द प्रिंट से बात करते हुए 1982 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एसपी सिंह ने कहा कि एलबीएसएनएए में आने वालों की औसत उम्र 27 से 30 के बीच होती है. यही वो समय होता है जब ज्यादातर लोग अपना मैच तलाश रहे होते हैं। एलबीएसएनएए में लोगों को लगता है कि उनके करियर का मार्ग स्पष्ट है, पेशेवर रूप से वो स्थापित हो गए हैं और उनकी उम्र भी सही है, इसलिए वो अकेडमी में ही जीवन साथी तलाशते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें एक फैक्टर ये भी होता है कि साथी अधिकारी को कमोबेश बराबर रूप से ही सक्षम माना जाता है, इसलिए पेशेवर रूप से एक तरह की समानता होती है।
कर्नाटक काडर की आईपीएस अधिकारी डी रूपा ने जिनकी शादी आईएएस अधिकारी मनीष मौदगिल से हुई है, सिंह की दलील में एक और पहलू जोड़ा। उन्होंने कहा कि ये सही है कि लोगों को कमोबेश बराबर सक्षम माना जाता है, इसलिए एक समानता होती है, लेकिन महिलाओं के लिए खासकर और फायदा हो जाता है, अगर उनके पति सिविल सर्विस से होते हैं, क्योंकि इससे कम से कम काम के दबाव की कुछ समझ रहती है, जिससे उनके ऊपर से सामाजिक अपेक्षाएं कम हो जाती हैं। फिर भी, रूपा ने आगे कहा कि सिविल सर्विस में भी ऐसा पाया जाता है कि महिलाएं ऐसे पति पाना चाहती हैं, जो पेशेवर और आर्थिक रूप से उनसे बेहतर स्थिति में हों। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले ऐसे होते हैं, जिनमें रेलवे जैसी सेवाओं की महिलाएं, आईएएस-आईपीएस लोगों से शादियां करती हैं, चूंकि बेहतर जीवन साथी की चाह, उनमें अंदर तक बैठी हुई होती हैङ्घलेकिन इसका विपरीत आपको मुश्किल से ही देखने को मिलेगा। उहोंने कहा कि सिविल सर्वेंट्स के भीतर भी, अन्नदाता वाली मानसिकता उतनी ही है, जितनी औरों में है। कहा कि शादियों में ज्यादा जटिलता तब आ जाती है, जब वो आईएएस अधिकारियों के बीच या, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बीच होती हैं। कई दूसरे अधिकारियों ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि अलग जिÞलों में तैनाती और भारी दबाव से भी कलह पैदा हो जाती है।
ऐसी शादियां सरकार के लिए भी थोड़ा सिरदर्द ही रहती हैं, जिसे आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के आपस में शादी करने के बाद, काडर आवंटन का मेहनती काम फिर से करना पड़ता है, ताकि जोड़ा एक ही राज्य में रह सके। डीओपीटी नियमों के अनुसार, शादी के आधार पर अखिल भारतीय सेवाओं के इंटर-काडर तबादले किए जा सकते हैं. तीन साल पहले तक, आपस में शादी करने वाले दो अधिकारियों को, ऐसा कॉमन काडर दिया जाता था, जो उनमें से किसी का होम काडर न हो। लेकिन, 2017 में, केंद्र सरकार ने नियमों में और ढील देते हुए ऐसे काडर के आवंटन की अनुमति दे दी, जो दोनों अधिकारियों में से किसी एक का होम स्टेट हो सकता है। सभी सेवाओं के अधिकारियों ने एलबीएसएनएए शादियों के रुझान को माना, लेकिन ज्यादातर ने कहा कि ये जोड़ियां काडर आधारित होती हैं। डाबी और खान के एक बैचमेट ने कहा कि सब जानते हैं कि एलबीएसएनएए में शादियां ज्यादातर काडर्स के लिए होती हैं। उन्होंने आगे कहा कि जो लोग उत्तर-पूर्व या जम्मू-कश्मीर नहीं जाना चाहते, वो अक्सर यूपी, महाराष्ट्र, बिहार जैसे ज्यादा सुरक्षित काडर्स से जीवन साथी चुनते हैं। सरकार उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकती, इसलिए सब कुछ अच्छे से हो जाता है। लेकिन अधिकतर शादियां सुविधा के लिए की गई होती हैं।
दूसरे अधिकारी भी इससे सहमत थे। 2016 बैच के एक रेलवे सर्विसेज आॅफिसर ने कहा, ह्यसिविल सर्विसेज को ताकत हासिल करने का रास्ता माना जाता है। और सिविल सर्वेंट्स के बीच शादियां, उसी ताकत को मजबूत करने का एक तरीका हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी अधिकांश शादियां एक सोची-समझी व्यवस्था होती हैं। इसलिए, जैसा कुछ अधिकारियों ने कहा, इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि अधिकारियों के बीच तलाक की दर ऊंची है। 2016 बैच के आईएएस अधिकारी ने कहा कि ऐसी बहुत सी शादियां ज्यादा लंबी नहीं चलतीं। व्यक्तिगत मामलों पर टिप्पणी करना उचित नहीं है, लेकिन मेरे अपने बैच में ही, पिछले दो सालों में चार तलाक हो चुका है। इसके पीछे कई कारण हैं। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों में अहंकार बहुत होता है। अगर आप देखें, तो एक आईपीएस पति और एक आईएएस पत्नी के बीच शादी, मुश्किल से ही चलती है चूंकि पति, पत्नी की तरक़्की और उसके करियर के ज्यादा तेजी से आगे बढ़ने को सहन नहीं कर पाता। इसके अलावा, एक वास्तविकता ये भी है कि पति-पत्नी दोनों पेशे और आर्थिक स्थिति के हिसाब से आत्मनिर्भर होते हैं, इसलिए दुखी रिश्तों के साथ बने रहने की उनकी जरूरत कम हो जाती है। खैर, जो भी हो, पर टीना डाबी और अतहर अमीर की शादी और तलाक के चर्चे खूब हैं। देखना है कि आगे क्या होता है?
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