Aaj Samaj (आज समाज),Gurudev Shri Shri Ravi Shankar, पानीपत : कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर चमकने वाले अर्द्ध चंद्रमा का एक सुंदर अभिप्राय है कि यह वास्तविकता के व्यक्त और अव्यक्त दोनों आयामों, दृश्य भौतिक क्षेत्र और अदृश्य आध्यात्मिक क्षेत्र के मध्य सही संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है, जो भगवान कृष्ण के दोनों लोकों के स्वामित्व को दर्शाता है। हम जिस युग में रह रहे हैं उसके लिए उनकी शिक्षाएँ अद्वितीय और अति प्रासंगिक हैं। वे न तो आपको भौतिक गतिविधियों में डूबने देती हैं और न ही आपको पूरी तरह से उदासीनता की ओर ले जाती हैं। जब हम यह उत्सव मनाते हैं, तो हम प्रकृति में बिल्कुल विपरीत लेकिन पूरक गुणों को आत्मसात करते हैं और उन्हें प्रकट करते हैं। यह एक ऐसा कौशल है जो हमें उस कमल की तरह बनाता है जो कीचड़ में उगता तो है फिर भी जिसकी पत्तियाँ शुद्ध और कीचड़ से अछूती रहती हैं।
मक्खन अर्थात हमारे भीतर की पवित्रता
कृष्ण का अर्थ है, वह जो सबसे मोहक और आकर्षक है, अर्थात स्वयं आत्मा। राधे-श्याम, व्यक्ति के अनंत से मिलन का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक प्राणी की आत्मा ही कृष्ण है। जब हम अपने अपने वास्तविक स्वरूप में बस जाते हैं, तो हमारा व्यक्तित्व खिल उठता है, हमारे भीतर कौशल विकसित है और जीवन में प्रचुरता आती है। कृष्ण को माखन चुराने के लिए जाना जाता है। इस रूपक का क्या अर्थ है? मक्खन वह है जो आपको किसी प्रक्रिया के अंत में मिलता है; दूध पहले दही बनता है, फिर उसे मथकर मक्खन प्राप्त किया जाता है। इसी तरह, जीवन में कई घटनाओं के माध्यम से मंथन की प्रक्रिया होती है। लेकिन अंत में जब मंथन समाप्त हो जाता है, तो हमें मक्खन अर्थात हमारे भीतर की पवित्रता प्राप्त होती है।
बस समर्पण करने की आवश्यकता
भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाने का पूरा सार, प्रतिकूल और अनुकूल दोनों परिस्थितियों में संतुलन बनाये रहना, प्रसन्न, केंद्रित और आनंदित रहना है। जब जीवन में सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा हो तो आप एक बड़ी मुस्कान रख सकते हैं, लेकिन यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप अपनी मुस्कान बनाए रख सकते हैं, तो आपको समझना चाहिए कि आपने जीवन में कुछ अद्भुत प्राप्त कर लिया है। यह तो हम कृष्ण के दृष्टिकोण से ही सीखते हैं! वे एक पैर धरती पर टिकाकर और दूसरा पैर धरती से ऊपर उठाकर खड़े हैं, जीवन में नृत्य तभी घटित हो सकता है। यदि आपके दोनों पैर भूमि पर टिके हुए हैं तो नृत्य नहीं हो सकता। यदि आपका मन हर समय सांसारिक चिंताओं में डूबा रहता है, तो आप नृत्य कैसे कर सकते हैं? साक्षी बनें। जब आप बिना लालसा या द्वेष के मन में अशांति को देख पाते हैं, तो आप उससे ऊपर उठ सकते हैं। इसलिए जब आप पछतावे और चिंताओं से परेशान हों, तो यह सोचने के बजाय कि यह कैसे नहीं होना चाहिए था, आपको बस समर्पण करने की आवश्यकता है। तब आप कृष्ण की तरह जीवन के उतार-चढ़ाव में नृत्य करने में सक्षम हों जाएंगे।
इतने सारे लोग कृष्ण तक क्यों नहीं पहुँच पाते?
कृष्ण कहते हैं, इसका कारण यह है कि उनका मन राग-द्वेष में डूबा हुआ है। जो व्यक्ति तीव्र लालसा रखता है या बहुत अधिक घृणा करता है वह मोह या आसक्ति के जाल में फंस जाता है। जब ऐसे व्यक्तियों को जीवन में धन या संबंधों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो उनका मस्तिष्क इससे ग्रस्त हो जाता है, वे अनगिनत घंटे, महीने या वर्ष चिंता में ही बिता देते हैं, इससे उबरने में सक्षम नहीं हो पाते, यह नहीं जान पाते कि भगवान कृष्ण कौन हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं, जिनके पाप नष्ट नहीं होते वे अज्ञान और भ्रम में फंसे रहते हैं लेकिन जिनके पुण्य फल देने लगते हैं, वे अपने सभी दुखों से मुक्त हो जाते हैं और मेरी ओर आकर्षित होने लगते हैं।
पाप हमें इस यात्रा का आरंभ नहीं करने देता
जब आप प्रबुद्धि की ओर चलना शुरू करते हैं, तो अज्ञानता का अंधकार नहीं रह सकता। पाप हमें इस यात्रा का आरंभ नहीं करने देता। यही वह बात है जो हमें दुख, पीड़ा और कष्ट देती है। लेकिन जब आप समझ जाते हैं कि आप यह शरीर नहीं बल्कि शुद्ध चेतना हैं, तो आपके भीतर अपार शक्ति का उदय होता है। एक बार जब परमात्मा में विश्वास पैदा हो जाता है या अनुभव हो जाता है, तो आपको और कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती। अपने विश्वास पर रत्ती भर भी संदेह न करें. ईश्वर को वास्तव में जानने और उसके प्रकाश में चलने का यही अर्थ है। कृष्ण सभी संभावनाओं; मनुष्य और ईश्वर होने के प्रत्येक पहलू के पूर्ण विकसित होने के प्रतीक हैं। जन्माष्टमी वह दिन है जब आप कृष्ण के विराट स्वरूप को एक बार फिर से इस चेतना में याद करते हैं और उनकी अनुभूति करते हैं। अपने वास्तविक स्वरूप को अपने दैनिक जीवन में प्रकट करना ही कृष्ण के जन्म का वास्तविक रहस्य है।
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