Government is not ashamed even seeing daughter’s getting clothes off : बेटियों के कपड़े उतरते देख भी शर्मसार नहीं सरकार!

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हम बुधवार को यूपी में थे। हमें तब बड़ी खुशी हुई, जब वहां के डीजीपी से पता चला कि राज्य में बलात्कार की घटनाओं में 28 फीसदी की कमी आई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बेहतरीन प्रयास किये गये हैं। उनके आंकड़ों और अनुभूति से साबित हो रहा था कि यूपी रामराज की दिशा मे बढ़ रहा है मगर हमारी खुशी अधिक देर नहीं टिक सकी। पता चला कि मैनपुरी में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक बेटी ने आत्महत्या कर ली क्योंकि कुछ लड़के उसको लगातार परेशान कर रहे थे। शिकायत थाने में भी की गई थी। कन्नौज जिले के छिबरामऊ इलाके से एक अल्पसंख्यक समुदाय की बच्ची को कुछ युवक उठा ले गये और पुलिस 25 दिनों बाद भी रटा रटाया जवाब देती है कि हम कार्रवाई कर रहे हैं। गुरुवार सुबह एक बलात्कार पीड़ित लड़की से पुन: सामूहिक बलात्कार होता है और फिर उसे जलाकर मार देने की कोशिश। 90 फीसदी जली यह लड़की शुक्रवार रात मौत के मुंह में चली जाती है। पुलिस का फिर वही बयान कि हम सतर्क हैं। इसी बीच सीतापुर के तालगांव इलाके में एक किशोरी से गैंगरेप हो गया। बुलंदशहर में 14 साल की एक बच्ची के साथ किशोरों ने गैंगरेप किया। आगरा में चार युवकों ने छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया। कानपुर से एक रेप पीड़िता के न्याय न मिलने पर खुदकुशी की खबर ने एकबार फिर झकझोरा। हालात तब और भी शर्मनाक हो जाते हैं जब सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी इस तरह के मामलों में मजाक बना दिया जाता है। उन्नाव बलात्कार के आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर दर्ज मामलों की तफ्तीश और अदालती कार्यवाही की समय सीमा सुप्रीम कोर्ट ने तय की, मगर सब धरा रह गया।
एक राज्य में डीजीपी रामराज आने की बात करता है तो दूसरी तरफ हैदराबाद में हमारी एक होनहार बेटी से सामूहिक बलात्कार के बाद उसे जलाकर मार डाला जाता है। तेलंगाना सरकार के गृह मंत्री मो. महमूद अली शर्मनाक बयान देते हैं। भाजपा का आईटी सेल इसमें भी हिंदू मुस्लिम खोज लेता है। भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद मामले में भी यही हुआ। सरकार की उनपर इतनी कृपा रही कि उनको भारी दबाव में जब गिरफ्तार करना पड़ा तो पीड़िता के खिलाफ भी केस बनाकर जेल में डाल दिया गया, जिससे समझौते की गुंजाइश बनी रहे। कठुआ में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जहां एक आठ साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में आरोपियों को बचाने के लिए भाजपा के उपमुख्यमंत्री तक सड़क पर आ गये थे। दुख तब होता है जब चाल-चरित्र-चेहरे की बात करने वाले ही इसकी हत्या करते हैं। सवाल वहीं ठहर जाता है कि क्या बेटियों की आबरू भी सियासी और सांप्रदायिक चश्मे से देखी जानी चाहिए? इस नजरिये ने न केवल हमारी बेटियों को बेइज्जत और असुरक्षित बनाया है बल्कि विश्व स्तर पर भी हमें शर्मिंदा किया है। एक तरफ तो हम बेटियों को देवी कहकर सम्मान देने की बात करते हैं, दूसरी तरफ उसकी इज्जत उतारने वालों को बचाने के लिए उस पर ही लांछन लगाते हैं। बीते साल हरियाणा में एक टॉपर लड़की के साथ सेना के जवान सहित कुछ युवकों ने गैंगरेप किया था, तब बचाव में सरकार से जुड़े लोगों ने लड़की के चरित्र को ही संदिग्ध बना दिया था। रांची में एक छात्रा का अपहरण करके एक दर्जन लोगों ने गैंगरेप किया और सियासी लोग चुनावी नारों में मस्त दिखे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया था मगर अब तक उस दिशा में कोई ऐसा कदम नहीं उठाया कि बेटियां गर्व महसूस कर सकें। हम राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर यकीन करें तो देश में तीन वर्षों में महिलाओं के प्रति अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। बच्चों तक को नहीं बख्शा जा रहा है। जमशेदपुर में तीन साल की बच्ची की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई तो उन्नाव में भी तीन साल की मासूम हवस का शिकार बन गई। हैरान करने वाली बात तो यह है कि जिन राज्यों में रामराज लाने की बात होती है, वहां ऐसी घटनायें सबसे अधिक हो रही हैं। हमारे प्रधानमंत्री बेहतर कल की बात करते हैं मगर वर्तमान में जो घट रहा है, उसमें सुधार के लिए उनके पास सिर्फ बातें ही हैं। हैदराबाद में तेलंगाना पुलिस ने गैंगरेप के आरोपियों को मार डाला। पुलिस का दावा है कि उनकी अभिरक्षा में आरोपियों ने उसके हथियार छीनकर भागने की कोशिश की थी। उसकी कहानी वैसी ही हैं, जैसी मूर्खों की जमात में एक बड़ा अपनी वाहवाही का बखान करता है। शनिवार को इसी मुद्दे पर सीजेआई जस्टिस बोबडे का भी बयान आया। जिसमें उन्होंने कहा कि बदले की भावना से की गई कार्रवाई को न्याय नहीं कहा जा सकता। यह हैदराबाद प्रकरण को आईना दिखाता है। वहीं दूसरी तरफ उन्नाव में भी गैंगरेप का शिकार युवती को जलाकर मारने की कोशिश हुई तो वह एक किमी तक बचने के लिए घायल हालत में भागी मगर कोई उसकी मदद को नहीं आया। इन घटनाओं से साफ है कि महिलाओं की चिंता न समाज को है और न सरकार को। शायद तभी कोई उनकी मदद को वक्त रहते सामने नहीं आता।
ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण हमारे पास मौजूद हैं। हैदराबाद गैंगरेप में भी आरोपियों के खिलाफ सबूत जुटाने के लिए ही रीक्रिएशन किया जा रहा था, और मार दिया गया। इन तमाम मामलों में वकालत का पेशा भी दागदार हुआ कि वकीलों ने आरोपियों का केस लड़ने से मना कर दिया था। भले ही यह लोग निर्दोष साबित हो गये हों मगर पुलिस ने तो इन पर जीवन भर का दाग लगा दिया। मोहल्ले में इनके परिवारों को जिल्लत झेलनी पड़ती है। उसका भुगतान कौन करेगा। यही वजह है कि स्पॉट जस्टिस समाधान नहीं बल्कि समस्याओं की जननी है। न्याय तो विधि अनुकूल परीक्षण के बाद ही हो सकता है। सरकार को विधिक व्यवस्था को मजबूत बनाकर उसके अनुकूल तीव्र गति से काम करने वाला तंत्र बनाना चाहिए, न कि लंबित रखने वाला। हमारी विडंबना है कि जब घटनायें हो जाती हैं तब लोग जागते हैं। अदालतों और पुलिस पर भड़ास निकालते हैं। सियासी लोग एक दूसरे पर नाकामी के आरोप लगाते हैं।
अपनी नाकामी का दाग लिये घूम रही तेलंगाना पुलिस ने हैदराबाद में एनकाउंटर में चार आरोपियों को मार दिया तो समाज के एक बड़े वर्ग ने पुलिस को हीरो बना दिया। उनका हीरो बनना आपराधिक न्यायिक व्यवस्था से लोगों का यकीन खत्म होने का संकेत है, जो भविष्य में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को बढ़ावा देने वाला है। पुलिस की कार्रवाई हिंसक होते समाज और मानसिकता का परिचय दे रहा है। निर्भया की गैंगरेप के बाद हत्या के आरोपियों को अब तक फांसी न होने पर न्यायालयों को दोषी ठहरा रहे हैं जबकि न्यायालयों ने बहुत तेजी से फैसले दिये, देरी सरकार और पुलिस की तरफ से हुई है। असल में हमारे देश के अधिकतर लोग कायर और मूर्ख हैं, जो दूसरों के सेट किये गये विचारों पर झूमते हैं। वह भूल जाते हैं कि अगर तेलंगाना पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की होती तो शायद वह बेटी बच जाती। हमें समझना होगा कि हमारा देश, उसकी सरकार और समाज तीनों गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं। जो खुद को शिक्षित समझते हैं मगर उनका ज्ञान और व्यवहार जाहिलों से बदतर है। यही कारण है कि वो अपनी सोच को सही साबित करने के लिए जंगलराज को जायज ठहराते हैं। ऐसे समाज, देश और नागरिकों से बेहतर तो वह अक्षित हमारे पूर्वज थे, जिन्होंने गलत, सही और वहशीपन को सदैव पहचाना। वो किसी के बहकावे में नहीं आते थे और नैतिकता को सर्वोपरि मानते थे। आज हालात इतर हैं और सरकार बेटियों के कपड़े उतरने पर भी शमिंर्दा नहीं होती, क्योंकि वह वोटबैंक नहीं है।
जयहिंद

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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