Florence Nightingale was a symbol of kindness and service: दया और सेवा की प्रतिमूर्ति थी फ्लोरेंस नाइटिंगेल

0
463

पूरी दुनिया पिछले सवा साल से भी अधिक समय से कोरोना संक्रमण से जूझ रही है। अभी तक दुनियाभर में 33 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 9 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के प्राण बचाने में भी सफलता मिली है। भारत में भी अभी तक 2.4 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि करीब 1.9 करोड़ लोग ठीक भी हो चुके हैं। इन करोड़ों लोगों की जान बचाने में सबसे बड़ा योगदान रहा है नर्सों का, जो खुद के संक्रमित होने के खतरे के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाने में जुटी हैं। 12 मई को मनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर इन तमाम नर्सों के इसी योगदान को नमन करना बेहद जरूरी है। इसीलिए वर्ष 2020 को अंतर्राष्ट्रीय नर्स वर्ष के रूप में मनाया गया था और वर्ष 2021 की अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस की थीम नर्स: ए वॉयस टू लीड- भविष्य की स्वास्थ्य सेवा के लिए एक दृष्टि रखी गई है।
यह समय भारत सहित पूरी दुनिया के नर्सिंग समुदाय के लिए परीक्षा की घड़ी है और उम्मीद की जानी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जानें बचाकर इस कठिन परीक्षा में यह समुदाय सफल होगा। दया और सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिंग की जन्मदाता माना जाता हैं, जिनकी आज हम 201 वीं जयंती मना रहे हैं। लेडी विद द लैंप (दीपक वाली महिला) के नाम से विख्यात नाइटिंगेल का जन्म आज से ठीक 200 वर्ष पहले 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1973 में नर्सों द्वारा किए गए अनुकरणीय कार्यों को सम्मानित करने के लिए उन्हीं के नाम से फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार की स्थापना की गई थी, जो प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर प्रदान किए जाते हैं।
फ्लोरेंस कहती थी कि रोगी का बुद्धिमान और मानवीय प्रबंधन ही संक्रमण के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली में रह रहे एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था लेकिन वह इंग्लैंड में पली-बढ़ी। वह एक बेहद खूबसूरत, पढ़ी-लिखी और समझदार युवती थी। उन्होंने अंग्रेजी, इटेलियन, लैटिन, जर्मनी, फ्रैंच, इतिहास और दर्शन शास्त्र सीखा था तथा अपनी बहन और माता-पिता के साथ कई देशों की यात्रा की थी।
मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्हें अहसास हो गया था कि उनका जन्म सेवा कार्यों के लिए ही हुआ है। 1837 में नाइटिंगेल परिवार अपनी बेटियों को यूरोप के सफर पर लेकर गया, जो उस समय बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए जरूरी माना जाता था। उसी सफर के दौरान फ्लोरेंस ने माता-पिता से कहा था कि ईश्वर ने उसे मानवता की सेवा का आदेश दिया है लेकिन यह नहीं बताया कि सेवा किस तरह से करनी है। यह सुनकर उनके माता-पिता बेहद परेशान हो गए थे। फ्लोरेंस ने अपने माता-पिता को बताया कि वह एक ऐसी नर्स बनना चाहती है, जो अपने मरीजों की अच्छी तरह सेवा और देखभाल कर सके। इस पर उनके माता-पिता बेहद नाराज हुए थे क्योंकि विक्टोरिया काल में ब्रिटेन में अमीर घरानों की महिलाएं कोई काम नहीं करती थी। उस दौर में नर्सिंग को एक सम्मानित व्यवसाय भी नहीं माना जाता था, इसलिए भी माता-पिता का मानना था कि धनी परिवार की लड़की के लिए वह पेशा बिल्कुल सही नहीं है।
वह ऐसा समय था, जब अस्पताल बेहद गंदी जगह पर होते थे और वहां बीमार लोगों की मौत के बाद काफी भयावह माहौल हो जाता था। परिवार के पुरजोर विरोध और गुस्से के बाद भी फ्लोरेंस अपनी जिद पर अड़ गई और वर्ष 1845 में अभावग्रस्त लोगों की सेवा का प्रण लिया। वर्ष 1849 में उन्होंने शादी करने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था और परिजनों से दृढ़तापूर्वक कहा था कि वह ईश्वर के आदेश का पालन करेगी तथा एक नर्स ही बनेगी। वर्ष 1850 में उन्होंने जर्मनी में प्रोटेस्टेंट डेकोनेसिस संस्थान में दो सप्ताह की अवधि में एक नर्स के रूप में अपना प्रारम्भिक प्रशिक्षण पूरा किया।
मरीजों, गरीबों और पीड़ितों के प्रति उनके सेवाभाव को देखते हुए आखिरकार उनके माता-पिता द्वारा वर्ष 1851 में उन्हें नर्सिंग की आगे की पढ़ाई के लिए अनुमति दे दी गई, जिसके बाद उन्होंने जर्मनी में महिलाओं के लिए एक क्रिश्चियन स्कूल में नर्सिंग की पढ़ाई शुरू की, जहां उन्होंने मरीजों की देखभाल के तरीकों और अस्पतालों को साफ रखने के महत्व के बारे में जाना। वर्ष 1853 में उन्होंने लंदन में महिलाओं के लिए एक अस्पताल इंस्टीच्यूट फॉर द केयर आॅफ सिंक जेंटलवुमेन खोला, जहां उन्होंने मरीजों की देखभाल के लिए बहुत सारी बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध कराई और नर्सों के लिए कार्य करने की स्थिति में भी सुधार किया।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

SHARE