Education has to be saved from becoming Chinese …शिक्षा को चाइनीज होने से बचाना होगा…

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दुनिया की सबसे महान शक्ति बनने के लिए चीन कोई मौका नही छोड रहा। सभी देशों में हर छोडे-बडे क्षेत्र में अपना वर्चस्व बनाने के लिए चीन एक बहुत बडी रणनीति के तहत किसी भी कीमत पर अपने पैर पसार रहा है। अब चीन की निगाह उन देशों व क्षेत्रों में जो कोरोना के चलते आर्थिक संकट से झूझ रहे हैं। हाल ही में ब्रिटेन को चीन को अपना निशाना बनाया है। चीनी कंपनियों ने ब्रिटेन के करीब डेढ़ दर्जन स्कूलों को खरीदा है और आगे भी यह प्रक्रिया जारी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में पिछले एक साल से स्कूल बंद है जिस कारण से स्कूल प्रबंधकों को जबरदस्त घाटा हो रहा है। इस वजह से परेशान होकर कई स्कूल प्रबंधक स्कूलों को बेच रहे हैं। इनमें से नौ स्कूलों के मालिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय मेंबर हैं। ब्रिटेन सरकार के लिए सबसे दुख की बात यह है कि ब्रिटेन के सबसे बडे व पुराने स्कूल प्रिंसेस डायना प्रीप्रेटोरी स्कूल को भी चीन ने खरीद लिया।
कोरोना संकट से अभी तक पूरी दुनिया परेशान है लेकिन यहां दुनिया के सभी देशों को यह समझना होगा कि अपने स्तर पर भी स्थिति को सुधारने का प्रयास करें चूंकि यदि परेशान होकर अपने देश की विरासत या धरोहरों को बेच देंगे तो उस देश का भविष्य निश्चित तौर पर अच्छा नही होगा। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तब माना जाता है जब शिक्षा के क्षेत्र में कोई डाका डाले। इसके अलावा दुनिया को यह भी समझना होगा कि चीन जैसे देश की मंशा बिल्कुल सही नही है चूंकि वह महान शक्ति बनने के लिए किसी हद तक जा सकता है और जा भी रहा है। चीनी कंपनी के एक डायरेक्टर ने स्पष्ट कहा है कि हमारा उद्देश्य है कि हम चीन समर्थक विचारधारा को आगे बढ़ाना चाहते हैं और स्कूलों में इस तरह की शिक्षा देंगे जिससे ब्रिटेन के बच्चे बचपन से ही चीन समर्थक बनने शुरू हो जाएंगे।
इस वाक्य से स्पष्ट हो जाता है कि चीन कितनी गंदी व घटिया सोच के साथ दुनिया को अपने कब्जे में करना चाहता है। यदि चीन अपने विस्तार व प्रभाव को बढ़ाने के लिए यहां तक सोच बैठा है तो यह दुनिया के लिए अच्छे संकेत नही हैं। इस मामले में दुनियाभर से आलोचना झेल रहे ब्रिटेन के लिए विशेषज्ञों ने कहा है कि शिक्षा के मंदिर को बेचने का अर्थ यह होता है कि आपने अपने घर पर वार करवा लिया हो । संकट के समय पर देश को संचालित करने के लिए कर्ज लिया जा सकता है या अन्य किसी रणनीति तहत देशहित में कदम उठाया जा सकता है व इसके अलावा कुछ और चीजों की खरीद-फिरोत की जा सकती है लेकिन शिक्षा के मंदिरो को बेचना व गिरवी रखना बहुत घटिया हरकत है।
दरअसल कुछ देशों में प्राइवेट संस्थानों का अपने देश की सरकार से इस तरह का करार होता है कि वह सरकार की बिना दखलअंदाजी के वह अपनी संपत्ति किसी भी बाहरी व्यक्ति व देश को बेच सकते हैं। इस तरह का कानून ब्रिटेन में भी लागू है। ब्रिटेन के तमाम स्कूल संचालकों ने अपनी सरकार से कई बार मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई मदद न मिलते देख उन्होनें यह कदम उठाया वहीं दूसरी ओर इस मामले में ब्रिटेन में चीन के पैर पसरते देख बोरिस जॉनसन सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है।
जॉनसन ने कहा कि वह अपने देश के लोगों से अपील कर रहे हैं कि वह कुछ समय और निकालें,सरकार आर्थिक संकट को खत्म करने के लिए प्रयासरत हैं। ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमीनीक रॉब ने कहा है कि चीन की नियत कई पश्चिमी देशों पर है और वह इस तरह के कार्य करके घिनौनी हरकत कर रहा है। ब्रिटेन के अलावा भी कुछ और देशों पर वह अपना शिकंजा बनाना चाहता है लेकिन अब समय आ चुका है सभी पश्चिमी देश मिलकर इसका विरोध करें। दुनिया जानती है कि कोरोना चीन से आया व जिससे पूरी मानवजाति पर संकट आया और परेशानी में मदद की बजाय लोगों की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है। ज्ञात हो कि कोरोना की प्रारंभिकता में जब सबसे पहले चीन में कोरोना संकट आया था तब दुनिया के तमाम देशों ने चीन को दान के रुप में मास्क व सैनिटाइजर दिए थे लेकिन जब पूरी दुनिया में कोरोना आया और उन देशों ने चीन से मदद मांगी तो मास्क और सैनिटाइजर की कीमत वसूली जिसके वजह से चीन कू पूरी दुनिया में थू-थू हुई। ऐसी तमाम घटनाओं की लेंबी फेहरिस्त है लेकिन वह अपने ठीटपने के व्यवहार से कभी बाज नही आ सकता। उसकी हर मंशा पर शंका पूरी दुनिया को है फिर भी उसको अपने घर में घुसने दे रहे हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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