Distribute Amrit, not poison! अमृत बांटिये, जहर नहीं!

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सनातन धर्म में शिव आदर्श देव हैं। दुनिया का कोई जीव विष का शिकार न हो जाये इसलिए वह स्वयं जहर पीकर दूसरों को अमृत देते हैं। उनका यही गुण उन्हें महादेव बनाता है। महाकाल होते हुए भी वह अकाल से विश्व को बचाते हैं। वह जो स्थान देवगुरू को देते हैं, वही स्थान असुर गुरु शुक्राचार्य को भी। वह प्राणी मात्र में भेद नहीं करते, तभी सुर और असुर दोनों उनके आगे नतमस्तक होते हैं।शिव सादाजीवन उच्चविचार को अपनाकर यह संदेश देते हैं कि सर्वश्रेष्ठ बनो। खुद प्रकृति के बीच अभावों में जीते हैं मगर जनमानस को वह सब देते हैं, जिसकी उसे जरूरत है। यही कारण है कि शिव को सर्वत्र पूजा जाता है। हम शिव के चरित्र की चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने हमें जीवनशैली सिखाई। इस वक्त देश जिस काल परिस्थिति से गुजर रहा है, उसमें शिव के संदेश हमारे लिए बेहद आवश्यक हैं। सृष्टि का संहार करने की शक्ति रखने वाले शिव सृजन को अपने जीवन में समेटते हैं। वह अपने दर्द और गुरबत से परेशान नहीं होते बल्कि जनमानस के कष्ट उन्हें विचलित करते हैं। कई बार वह असुरों को सम्मान देते हैं और देवताओं को उनके कृत्यों के लिए लज्जित करते हैं।सत्ता सिंहासन पर काबिज लोगों को उनसे सीखने की बेहद जरूरत है, क्योंकि यही वास्तविक सत्ता है।
हाल ही में दिल्ली विधानसभा के लिए हुए चुनाव में खुद को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा के अध्यक्ष से लेकर सैकड़ों सांसदों और मंत्रियों ने पूरा दम लगाया। प्रधानमंत्री से लेकर आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों ने और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सेना ने वहां डेरा डाले रखा। मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्र जैसों ने तो हर मयार्दा को धूल धूसरित करते हुए जहर उगला।सीएए और एनआरसी के खिलाफ शाहीनबाग में प्रदर्शन कर रही महिलाओं का चरित्रहनन करके सत्ता हासिल करने की कोशिशें हुईं।जनता ने भाजपा के लोकलुभावन चुनावी घोषणा पत्र में केजरीवाल के मुफ्त बिजली-पानी और किराये से अधिक मुफ्त सेवाएं देने का वादा किया मगर जनता ने उनकी बर बात को नकार दिया।इस चुनाव में भाजपा को 2015 के मुकाबले करीब 6 फीसदी अधिक38.51 वोट मिले हैं जबकि पिछले साल लोकसभा चुनाव में उसने यहां से56.86फीसदी वोट लिये थे। वहीं आम आदमी पार्टी को इस बार 53.57 फीसदी मत मिले, जिसने 2015 में 54.34 फीसदी वोटहासिल किये थे।लोकसभा चुनाव में उसको दिल्ली ने सिर्फ 18.2 फीसदी वोट दिये थे।2013 में कांग्रेस 24.55 फीसदी के साथ आठ सीटें जीत पाई थी, तो वही कांग्रेस 2015 में 9.65 फीसदी वोट पाकर वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 22.63 फीसदी वोट मिले थे मगर इस विधानसभा चुनाव में वह केवल 4.26फीसदी वोट ही ले सकी। साफ है कि जनता ने नकारात्मकता को नहीं सकारात्मकता का चयन किया।
दिल्ली असल में मिनी हिंदुस्तान है क्योंकि यहां हर राज्य और क्षेत्र के लोग रहते हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने केंद्र शासित राज्य दिल्ली में काबिज होने के लिए नफरत और राष्ट्रवाद की चाल चली थी। आम आदमी पार्टी ने सिर्फ अपने चार कामों पर ही बात की। अरविंद केजरीवाल ने नफरत पर प्रतिक्रिया भी नहीं दी। कांग्रेस न अपने किये को बता सकी और न भविष्य समझा सकी। उसने खुद को सत्ता के करीब न पाते देख, नफरत और विकास की लड़ाई में विकास का साथ दिया। नतीजतन आम आदमी पार्टी ने इतिहास रच दिया। यह पूरे देश के लिए एक नजीर है। शिव बनकर खुद जहर पीजिए मगर दूसरों को जहर से बचाइये। वैसे तो यह उम्मीद शीर्ष सत्ता से की जाती है कि वह शिव की शक्ति होते हुए भी उसको विध्वंस के लिए नहीं, सृजन के लिए प्रयोग करे। देश गंभीर समस्याओं और दुराभि से जूझ रहा है। मौजूदा सत्ता की जिम्मेदारी है कि वह देश और उसके भविष्य को इन संकटों से उबारे। लोकसभा में जनता ने भरपूर जनादेश देकर केंद्र और तमाम राज्यों में भाजपा को सत्ता सौंपी है। उनका धर्म सभी का कल्याण और खुशहाल सुरक्षित जीवन होना चाहिए। यह करने के बजाय वह सियासी गोटें बिछाने में ही वक्त निकल रहे हैं। सत्ता पाने के लिए गोली मारने से लेकर जनादोलनों को देशद्रोही करार दिया जा रहा है। दिल्ली की जनता ने इस जहर को सिरे से नकार दिया। जिन प्रत्याशियों का प्रचार इस नफरत के भाषण से किया गया, वे सभीबुरी तरह हारे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा की पूरी फौज राष्ट्र निमार्ता प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए जहर उगलते दिखते हैं। नेहरू-गांधी परिवार पर हमला करके वह कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं। शायद यह उनका एजेंडा है। इस नफरत के चलते उनकी सरकार नेहरू की बनाई हर चीज खत्म कर देना चाहते हैं, चाहें सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनियां हों या चंडीगढ़ जैसा पहला सुव्यवस्थित स्मार्ट सिटी। पता नहीं वह यह क्यों नहीं सोचते कि इन सभी में रहने और काम करने वालों ने ही उन्हें यहां तक पहुंचाया है। दिलों में भरे गये इस जहर का नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों बच्चों की जान बचाने वाले गोरखपुर मेडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. कफील को पहले बच्चों की मौत का दोषी बताकर जेल में डाल दिया जाता है। वह जब बाहर आते हैं तो एएमयू में उनके भाषण को बहाना बनाकर जेल भेज दिया जाता है। अदालत जब उनको जमानत दे देती है तो उन पर एनएसए लगा दिया जाता है। एक काबिल डाक्टर का बीमारी से मरते बच्चों को सेहतमंद बनाने की जिम्मेदारी देने के बजाय जेल में सड़ाना कौन सा राष्ट्र निर्माण है? देश की अर्थव्यवस्था सुधारकर देश को मजबूत बनाने के बजाय आंकड़ों का खेल चल रहा है। नौकरशाहों पर लगाम लगा भ्रष्टाचार के जहर को खत्म करने के बजाय उसे बढ़ाने की नीति बन रही हैं। पारदर्शिता से तो शायद सरकार को डर लगता है।
सियासी जहर बोने के खिलाफ एक महिला पत्रकार सहित 10 सत्याग्राहियों को गोरखपुर के चौरी चौरा से दिल्ली तकपैदल मार्च करने पर गिरफ्तार कर लिया गया। जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की यात्रा के दौरान आरा में उन पर हमला कर दिया गया। नफरत रूपी इसी जहर का नतीजा है कि इतिहास को बदनुमा बनाने की कोशिश की जाती है। पूर्व नौकरशाह जो अब विदेश मंत्री हैं, उस झूठ को आगे बढ़ाते हैं। किसी के सियासी एजेंडे से किसी को तकलीफ नहीं है मगर वह देश, समाज और नागरिकों में जहर भरने वाला नहीं होना चाहिए। हम कल्याणकारी संवैधानिक गणराज्य के वासी हैं, तो उम्मीद की जाती है कि सियासी दल और सत्तारूढ़ नेता सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक श्रेष्ठ समाज बनाने की बात करेंगे। वह ऐसा अमृत बांटेंगे कि कोई किसी को गोली मारने की बात न करे। पाकिस्तान से बराबरी करके हम खुद को उससे भी छोटा कर देते हैं। जरूरत है, वैदिक सिद्धांतों के अनुसार सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय पर काम करने की। सरकार को चाहिए कि वह शिव बनकर सारा जहर पी जाए और नागरिकों को अमृतपान कराये।

जयहिंद

अजय शुक्ल

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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