मानव का जन्म ही नित नवीनता के लिए हुआ

0
422
sudhansu ji
sudhansu ji

सुधांशु जी महाराज
नवीनता किसे प्रिय नहीं है, छोटे बच्चे नये खिलौने-नये कपड़ों की ओर आकर्षित होते हैं। पेड़-पौधे पतझड़ के सहारे अपने को नया कर लेते हैं। सांप केचुल छोड़कर नया हो लेता है। छोटे-छोटे पक्षी तक नवीनता की खोज के लिए एक छोर से दूसरे छोर तक भटकते हैं। स्थूल से लेकर सूक्ष्म पदार्थ तक प्रतिपल अपना रूप बदल कर नवीनता ही तो धारण करते हैं। पानी भाप बन, भाप बर्फ में बदलकर नवीन ही तो होती है।
पुराने को छोड़कर नया हो जाना ही परिवर्तन है। कोई बावला ही बासीपन को पसंद कर सकता है, वैसे भी परिवर्तन और नवीनता प्रकृति का विशिष्ट गुण है, यही इसकी जीवंतता भी है। इसीलिए जो नवीन नहीं हो पाता, उसके बासीपन को प्रकृति तोड़कर उसे भी नया कर लेती है। कहते हैं भगवान तक पुरानी प्रार्थना व भावनायें नहीं स्वीकार करते। वास्तव में इस नयेपन व बदलाव में ही आकर्षण, सुंदरता, मधुरता, चुम्बकत्व व खिचाव है।
इसीलिए मानव जीवन के लिए भी नवीनता आवश्यक है, ऋषिगण कहते हैं मानव का जन्म ही नित नवीनता के लिए हुआ है। स्वयं के जीवन में नवीनता, अपने आस-पास के वातावरण में नवीनता, घर-परिवार के परिवेश से लेकर समाज, देश-विश्व स्तर पर नवीनता स्थापित करना ही उसकी पहचान है। परन्तु इस सकारात्मक नवीन बदलाव के लिए व्यक्ति को स्वयं अपने में भी नवीनता व आकर्षण लाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए अपनी सोच खान-पान-रहन-सहन व संवेदना में नवीनता लाना, अपनी परम्पराओं में, संकल्प में, अहसासों में नवीनता लाना आवश्यक है। इससे व्यक्ति के स्वभाव में अन्दर तक बदलाव होगा, फिर आगे का मार्ग सहज प्रशस्त हो जायेगा। नवीनता से ही जीवन में खुशी-प्रसन्नता उतरती है, और तब वह दूसरों में नवीनता का अहसास जगा पाता है।
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:
हमारा वेद इसी नवीनता के लिए ही तो मानव से कहता है-आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत: अर्थात् विचारों की खिड़कियां खुली रखें और शुभ-उपयोगी-श्रेष्ठ विचारों को चारों ओर से आने दें। जीवन में नवीनता स्थापित हो इसके लिए केवल नया बनने के विचार ही न लायें, अपितु, अहसास करें कि हम श्रेष्ठ हो रहे हैं, हमारी भावनायें पवित्र, शुद्ध सकारात्मक हो रही हैं आदि-आदि। अंत:करण से उठने वाले इस नवीनता के संकल्प और अहसास के सहारे शरीर एवं मन के हर कोशों में परिवर्तन शुरू होगा और फिर जीवन शैली से लेकर भाग्य, प्रारब्ध, सौभाग्य, समृद्धि, प्रतिष्ठा तक सब कुछ बदल उठेगा। नये मन, नये प्राण, नई दृष्टि, नये विचारों, शब्दों के श्रवण की साधना यही तो है। तब नये जीवन का मार्ग प्रशस्त होगा और नया भाग्य जगेगा।
तो आइये हम परमात्मा से प्रार्थना करें कि हमें फिर से नया कर दें। साथ-साथ स्वयं भी बदलाव का अवसर तलाशें। जैसे घर की सेटिंग, मोबाइल की रिंगटोन, कपड़े का ढंग बदल कर देखें। यह चेष्टा बहुत कुछ बासीपन बदल देगी। आत्म सम्वाद में नवीन भाव लायें, इस नवीनता भरी सोच से नव प्राण ऊर्जा के साथ काम करने की आदत पड़ेगी। हजार तरह के डरों पर पांव रखकर बांसुरी बजाने की शक्ति जगेगी। वास्तव में ऐसे नये प्रयोगों के साथ चलने वाले जीवन लक्ष्य पाते हैं। तो आज से ही नवीनता की दिशा में कदम बढ़ायें, जीवन में नव उल्लास परक बदलाव लायें।

SHARE