अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव से कुरुक्षेत्र को मिल रही है अब शिल्प और लोक कला केंद्र के रूप में पहचान

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Craftsmen's art center of attraction of Geeta Mahotsav
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इशिका ठाकुर,कुरुक्षेत्र:
लघु भारत की छवि को देखा जा सकता है ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर, देश के कोने-कोने से पहुंचे श्रद्धालु और पर्यटक, 600 से ज्यादा शिल्पकार कर रहे है। यात्रियों को आकर्षित, प्रशासन की व्यवस्था से खुश नजर आ रहे है शिल्पकार और कलाकार। अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के कारण ही धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र को शिल्प और लोक कला केंद्र के रूप में एक अनोखी पहचान मिल रही है। इस गीता स्थली कुरुक्षेत्र की गोद में देश की लगभग सभी राज्यों की लोक कला और संस्कृति समा गई है। इस लोक कला और संस्कृति को देखने के लिए हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक नवंबर-दिसंबर माह में कुरुक्षेत्र पहुंच रहे है।

Craftsmen's art center of attraction of Geeta Mahotsav
Craftsmen’s art center of attraction of Geeta Mahotsav

शिल्पकारों की कला गीता महोत्सव का आकर्षण का केन्द्र

इस वर्ष भी अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के मंच पर देश के 23 राज्यों से 600 से ज्यादा शिल्पकार पहुंचे है और देश के 6 से ज्यादा राज्यों के लोक कलाकार अपने-अपने प्रदेश की संस्कृति की छटा बिखेर रहे थे। इस धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र को शिल्प और लोक कला केंद्र के रूप में पहचान दिलाने का सारा श्रेय मुख्यमंत्री मनोहर लाल को जाता है। धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर और आसपास के क्षेत्र को देखकर ऐसा लग रहा है मानों भारतवर्ष की संस्कृति व शिल्पकला एक लघु भारत के रूप में ब्रह्मसरोवर पर उमड़ आई हो। गीता महोत्सव में अनेक राज्यों से आए कलाकार अपनी हस्तकला के माध्यम से अपनी कला का हुनर दिखा रहे हैं। शिल्पकारों की कला गीता महोत्सव का आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बने हुए हैं। मेले को लगे हुए अभी पांचवां दिन ही हुआ है। लगातार दर्शकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। पर्यटकों को ब्रह्मसरोवर के घाटों पर जम्मू और कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित दक्षिण भारत के राज्यों की संस्कृति व शिल्पकारी की प्रस्तुतियां दी जा रही है।

अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के दौरान ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर सजी सदरियों में विभिन्न प्रदेशों के तरह-तरह के लजीज व्यंजन पर्यटकों खुब को लुभा रही है। इन व्यंजनों में राजस्थान की कचोरी, पंजाब की लस्सी, बिहार का लिटी चोखा, कश्मीर का कावा जैसे विभिन्न क्षेत्रों का स्वाद खुश होकर ले रहे हैं। इसके साथ-साथ पर्यटक विभिन्न प्रदेशों की शिल्पकला से सजे स्टॉलों पर भी जमकर खरीदारी कर रहे है और शिल्पकारों की शिल्पकला की भी जमकर प्रशंसा कर रहे है। उपायुक्त शांतनु शर्मा ने कहा कि सरकार और प्रशासन की तरफ से कलाकारों व शिल्पकारों के लिए तमाम व्यवस्था की गई है, प्रशासन का प्रयास है कि प्रत्येक कलाकार को सरकार के नियमानुसार तमाम सुविधाएं मिल सके।

माटी कला की प्रदर्शनी पर्यटकों का मन मोह रही है

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माटी से नए तरीके से वस्तुओं को बनाकर अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले संदीप बता रहे हैं, वह स्नातक पास है और यह उनका पुश्तैनी काम है। वह कहते है कि इस काम में उनके परिवार ने अलग ही आयाम हासिल किया है। उनके परिवार के अलग-अलग सदस्यों ने इसमें राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय व अन्य पुरस्कार अपने नाम किए है। वहीं संदीप कुमार बताते हैं, कि उनके पिता शोभा राम को आईफा ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की है। तो उनके फूफा हरि कृष्ण को पद्मश्री मिला है। सरकार ने भी हमारी कला को देखते हुए माटी कला बोर्ड के माध्यम से हमें सहायता प्रदान कर रही है।

मध्य प्रदेश की भील कला के बारे में जान रहे ब्रह्मसरोवर आए यात्री

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ब्रह्मसरोवर में मेला शुरू होते ही अनेक कलाओं का प्रदर्शन शुरू हो गया है। उनमें से एक कला भील कला भी जिसके बारे में मेले में पहुंचने वाले यात्रियों को नही है, परंतु यहां पहुंचने के बाद पर्यटक भील कला से अवगत हो रहे हैं। वही इस कला की प्रदर्शनी लगाने वाले सुभाष कटारा बताते है कि यह कला मध्य प्रदेश में आम तौर पर घरों में विवाह शादी में दीवारों पर कपड़ों करते थे। अब यह धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। वह बताता है कि वह आठ साल से अलग-अलग मेलों में अपनी कला का प्रदर्शन करके रोजी रोटी चला रहा है। लोग काफी पसंद कर रहे हैं। आप को बता दे भील कला कैनवास के कपड़े व दीवारों पर बिंदुओं के माध्यम से मनाई जाने वाली चित्रकारी है। वही सुभाष बता रहा है कि उसकी स्टाल पर 500 से लेकर 20000 तक की पेंटिंग है। यह शिल्पकला ब्रह्मसरोवर के उत्तरी तट पर स्टॉल नंबर 117 पर देखी जा सकती है।

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