Correct ur Mistakes Be Creative, Not Nerative! गलतियां सुधार क्रिएटिव बनें, नेरेटिव नहीं!

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तेरे हिस्से का भी फर्ज निभाना पड़ता है, तू जो चुप है, तभी हमें चिल्लाना पड़ता है। किसी की यह पंक्तियां हमें आइना दिखाती हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और प्रिंस चार्ल्स जब लोगों के साथ काम करते कोरोना संक्रमित हुए तो उन्होंने कोरेंटाइन में जाते हुए कहा कि वहां भी वह अपने कर्तव्य पूरे करते रहेंगे। कोविड-19 से बिगड़ते हालात देख मिस इंग्लैंड भाषा मुखर्जी ने फैसला किया कि इस कठिन वक्त में वो अपना क्राउन उतारकर चिकित्सा क्षेत्र में सक्रिय योगदान देंगी। मिस इंग्लैंड चुने जाने से पहले भाषा बॉस्टन के पिलग्रिम हॉस्पिटल में डॉक्टर थीं। वह श्वसन रोगों की विशेषज्ञ हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिर्फ दफ्तर या घर बैठकर कोरोना से निपटने के बजाय बचाव और राहत के उपायों का भौतिक पर्यवेक्षण करने का फैसला लिया। चंडीगढ़ में हमारे फिजीशियन मित्र डा. केके शर्मा ने परिवार के विरोध के बावजूद महामारी के प्रकोप के वक्त भी क्लीनिक खोलने और जरूरतमंदों को मुफ्त इलाज का फैसला लिया। वहीं हमारे देश में मंत्रियों से लेकर विधायक-सांसद तक घरों में छिपे हुए हैं। प्रधानमंत्री सहित तमाम मुख्यमंत्री पहले ही आमजन से सीधे नहीं मिलते। असल में देश, बड़े बाबुओं के हाथ में है, जो मनमुताबिक नीतियां बनाते और क्रियान्वित करते हैं। उनका कितना लाभ आमजन को मिल रहा है, बचाव और राहत में लगे लोगों की जरूरतें कितनी पूरी हो रही हैं? इसका कोई फीडबैक नहीं है। मीडिया के हाल यह हैं कि अधिकतर संवाददाता हकीकत देखने की बजाय घरों में दुबके नौकरी कर रहे हैं। पंजाब की स्वास्थ मंत्री रहीं प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने इन हालात सवाल किया कि महामारी के संकट के वक्त हमारे जनप्रतिनिधि और साधु-संत कहां हैं, वो आवश्यक सेवाओं के लिए सामने क्यों नहीं आ रहे? क्या नुमाइंदे सिर्फ मलाई खाने के लिए हैं?

सुखद है कि सिविल सोसाइटी और संवेदनशील लोग महामारी के इस संकट में पीड़ितों की मदद को बाहर आ रहे हैं। ऐसे लोग और संस्थायें न सिर्फ भूखों को खाना खिला रही हैं बल्कि उन्हें सुरक्षा के साधन और जागरुकता भी दे रहे हैं। वहीं, कुछ सियासी दल और उनसे जुड़े लोग सिर्फ एक धर्म के लोगों को दोषी बताकर अपनी राजनीति और विचारधारा को मजबूत करने में लगे हैं। हमारे एक मित्र हाजी सलीम का फोन आया कि आप दोषी मरकज जमातियों की हरकतों के खिलाफ बड़ी डिबेट कराइये। इनकी जाहिली से पूरी मुस्लिम कौम बदनाम हुई। कौम के लोगों में संक्रमण इन्हीं जमातियों ने फैलाया है। हालांकि हम उनकी बात से इत्तेफाक नहीं रखते। मुख्यधारा के मीडिया ने कोरोना फैलने की खामियों पर चर्चा के बजाय एक सियासी विचारधारा का नेरेटिव सेट करने का काम किया है। अर्धसत्य ने देश भर में नफरत का माहौल बना दिया है। नेरेटिव सेट करने के लिए झूठी खबरें चलाने का काम किया गया, जिसका प्रशासन और पुलिस ने सार्वजनिक रूप से खंडन भी किया। सहारनपुर, फिरोजाबाद, नोयडा और प्रयागराज में तब्लिकी जमात से जुड़ी झूठी खबर अखबारों तथा कुछ चैनलों पर चलीं, नतीजतन सामाजिक हमलों की घटनाएं बढ़ीं। अरुणाचल के डीजीपी ने एक चैनल की उस खबर का खंडन किया कि जिसमें कहा गया कि राज्य में 11 लोगों को जमातियों ने संक्रमित कर दिया। कुछ सरकारों ने मीडिया बुलेटिन में अलग से जमातियों के कारण संक्रमित मरीजों का कालम बनाया। आधे-अधूरे सच के कारण जो नेरेटिव बना, उसके चलते मुस्लिम समुदाय के लोगों का सामाजिक बहिष्कार शुरू हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के गांव में लाउडस्पीकर से मुस्लिमों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान हुआ। हिमाचल में एक युवक को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। नफरत से भरे लोगों ने यूपी, गुजरात, बिहार, हरियाणा और कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय के लोगों पर जानलेवा हमले किये।

विश्व स्वास्थ संगठन ने इस नफरत के खेल पर चिंता जताई है। संगठन के कार्यकारी निदेशक रॊयन ने कहा कि संक्रमित व्यक्ति स्वयं में पीड़ित है, वह दोषी नहीं है। बहुत बार उसे वक्त पर खुद नहीं पता चल पाता और वह डर जाता है। ऐसे लोगों को धार्मिक या किसी अन्य आधार पर दोषी ठहराना अपराध है। अर्धसत्य और अधूरे ज्ञान ने आमजन में भी डर बढ़ा दिया है। जिन डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को सलाम करने के नाम पर तालियां-थालियां बजीं, दीप जले, उन पर हमलों की घटनाएं हमारे स्वार्थी चरित्र को दर्शाता है। सूरत में कोरोना मरीजों का इलाज कर रही डाक्टर पर उसके पड़ोसी ने ही हमला कर दिया। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के सामने दो महिला डाक्टरों को आधी अधूरी जानकारी वाले एक व्यक्ति ने पहले अभद्र शब्द बोले और उनके परिचय देने पर उन पर हमला कर दिया। कोरोना योद्धाओं के पास न तो पर्याप्त एन-95 मास्क हैं और न ही पीपीई किट। हम कल पंजाब के कोरोना हॊट स्पाट जवाहरपुर गये, वहां देखा, गांव सील था मगर उसे सील करने और ड्यूटी देने वाले किसी एक भी मुलाजिम के पास न पीपीई किट था और न मास्क। मास्क के नाम पर या तो रूमाल था या सर्जिकल मास्क। हमने जब अफसरों से बात की तो उन्होंने बताया कि हम सभी जरूरी सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं मगर केंद्र सरकार से राजस्व के हिस्से का भुगतान नहीं आने से खरीद में संकट है। कुछ कंपनियों और संस्थाओं से मदद ली जा रही है। केंद्र सरकार ने मदद के नाम पर राज्यों के लिए 15 हजार करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया जो ऊंट के मुंह में जीरा है। शनिवार को प्रधानमंत्री ने सिर्फ यही आश्वासन दिया कि वह फोन पर मुख्यमंत्रियों के लिए 24 घंटे उपलब्ध हैं।

हम जब कोरोना से लड़ रहे देशों को नजीर के तौर पर लेते हैं, तो पाते हैं कि तमाम देशों ने अपनी जीडीपी का 10 से 25 फीसदी धन इस महामारी से निपटने के लिए खर्च करने का फैसला किया। भारत ऐसी स्थिति में सबसे निचले पायदान पर खड़ा है। असल में कोरोना से लड़ाई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लड़नी है, क्योंकि वही नीतियों के क्रियान्वयन के लिए मैदान में हैं। वास्तविक सेनापति भी वही हैं। जरूरत उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की है, जो अब तक नहीं हो पाया है। राष्ट्रीय बंदी से कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। देश की आर्थिक दशा और बेरोजगारी पहले ही गंभीर हालात में थी, अब कोरोना संकट के आने से हालात बदतर हो गये हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश में बेरोज़गारी 23 प्रतिशत हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने स्पष्ट किया कोरोना संकट से निपटने के बाद विश्व की आर्थिक दशा 1930 के संकट से भी बुरी होगी। भारत में मंदी का बड़ा खतरा पैदा हो गया है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। गरीबों को भुखमरी के संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में राज्यों को राजस्व कहां से आएगा? वहीं, महामारी से पैदा हुआ आर्थिक संकट भी भारत के लिए एक मौका हो सकता है। संकट को एक अवसर के रूप में बदल कर बीमार क्षेत्रों को सेहतमंद बना, विदेशी निवेश को आकर्षित कर सुधार किया जा सकता है। इसके लिए भारत को अपने वित्तीय बाजारों को उदार और बैंकिंग एवं कृषि क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए नीतिगत फैसले लेने होंगे।

इस महामारी ने दो बड़े संदेश दिये हैं कि सांसारिक रिश्ते स्वार्थ पर अधिक आधारित हैं। इसका उदाहरण, लुधियाना में पूर्व अपर आयुक्त, पटियाला में मां, करनाल और यूपी में पिता की कोरोना से मृत्यु के बाद परिजनों ने शव भी लेने से इंकार कर दिया। प्रशासन को मजबूरन खुद ही अंतिम संस्कार कराना पड़ा। इससे समझा जा सकता है कि जिस परिवार के सुख के नाम पर आप गलत तरीके से धन संपदा एकत्र करते हैं, वह सिर्फ तब तक आपके हैं, जब तक आप देने योग्य हैं। दूसरा संदेश, ईश्वर प्रकृति में बसता है, न कि किसी धार्मिक इमारत या मूर्ति में। प्रकृति को स्वच्छ और समृद्ध रखेंगे तो वही आपकी रक्षा करेगी और आपूर्ति भी। जाति-धर्म और उसके व्यवहार कोई मायने नहीं रखते, मानवता सबसे बड़ा धर्म है। हम किसी सियासी नेरेटिव में फंसने के बजाय इस संकट से कुछ सीख कर गलतियां सुधार सकें तो सभी के लिए सुखद होगा।

जयहिंद!

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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