Corona k khilaf yogi ka Shanknaad: कोरोना के खिलाफ योगी का शंखनाद

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वैश्विक महामारी कोरोना ने मानव सभ्यता के सामने बड़ी चुनौती पेश की है। पूरी मानव सभ्यता और जीवन के अस्तित्व पर संकट खड़ा है। विज्ञान के सामने जीवन बचाने की बड़ी चुनौती है। तीसरी दुनिया की महाशक्तियां भी हाथ खड़े कर दिए हैं। दो लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। 20 लाख से अधिक संक्रमित हैं। लॉकडाउन की वजह से वैश्विक मंदी है। उद्योग ठप पड़े हैं। वर्क फ्राम होम की संस्कृति विकसित हुई है। लाखों लोगों के सामने भूखमरी के हालात हैं। भारत में काफी संख्या में प्रवासी मजदूर सैकडों मील पैदल चलकर अपने घर और गांव पहुंचने को बेताब हैं। इस यात्रा में भूख- प्यास की वजह से कई लोगों की मौत हो चुकी है। हर दिन सरकारों के सामने नई समस्या और चुनौतियां उभर रहीं हैं। इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। यह स्थिति सरकारों के राजधर्म के परीक्षण का है। जनता का भी दायित्व अपने देश और समाज के साथ बढ़ गया है। लेकिन इस परीक्षा काल में देश का एक योगी अपने लोकतांत्रिक दायित्व के प्रति बेहद खरा साबित हो रहा है। समाज के हर वर्ग की उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास कर रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी की कार्यनीति राज्य की जनता और प्रवासी मजदूरों एवं छात्रों के लिए संकटमोचक की बन गई हैं। राज्य की जनसेवा का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि पिता के स्वर्गवासी होंने के बाद भी अंतिम दर्शन को नहीं पहुंच पाए।
आज से तीन वर्ष पूर्व जब देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी जा रहीं थीं तो  सियासी पंडितों ने बेहद तल्ख टिप्पणियां की थीं। मीडिया और प्रतिपक्ष ने इस बात को बेहद गम्भीरता से उठाया था कि सन्यासी सरकार नहीं चला सकता। योगी की कट्टरवादी हिंदू छवि की वजह से यह कयास भी लगाए गए कि उनके सियासी फैसले राज्य का साम्प्रदायिक तानाबाना बिगड़ सकता है। हिंदू- मूसलमान आमने- सामने हो सकते हैं। योगी अपनी भगवा छवि की वजह से राज्य को दंगे की आग में धकेल सकते हैं। लेकिन सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। योगी को राज्य की कमान सौंपे जाने पर यह तर्क भी दिया गया कि केंद्रीय नेतृत्व पार्टी की राज्य इकाई में फूट से बचने के लिए ऐसा निर्णय लिया है। तकरीबन यह बात अंतिम सत्य मान लिया गया था कि राज्य की कमान तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को सौंपा जा सकती है। लेकिन अंतिम समय में योगी को कमान सौंप केंद्रीय नेतृत्व ने सबको चौंका दिया। राज्य में तमाम चुनौतियां के बावजूद भी भगवा संत ने जिस सिद्दत से अपनी जिम्मेदारी निभाई है वह काबिले तारीफ है। योगी के बारे में यह कहना गलत होगा कि उन्हें राजनीतिक अनुभव नहीं है। वह गोरखपुर से छह बार सांसद रह चुके हैं। यह बात दीगर है कि उन्होंने मुख्यमंत्री का दायित्व पहली बार निभाया है। लेकिन उन्होंने एक अनुशासित संत के रुप में कुशल प्रशासनिक छमता का जो परिचय दिया है वह अपने आप में प्रशंसनीय है। योगी के फैसले गैर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए मुशीबत बन रहें हैं।  उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनना किसी चुनौती से कम नहीं है। क्योंकि यह राज्य राजनीतिक रुप से बेहद जागरूक और प्रौढ़ है। यहां सरकारों के हर फैसले को सियासी चश्मे से देखा जाता है। छोटा सा मसला भी राष्ट्रीय मीडिया में बहस का मुद्दा बन जाता है। यह बात तब और संवेदनशील हो जाती है जब राज्य की कमान एक हिंदुत्व विचारवादी संत के हाथ में हो। लेकिन कोरोना संकटकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस संयम और कुशल नेतृत्व का परिचय दिया वह राष्ट्रीय मीडिया में बहस का मुद्दा बन गया है। प्रवासी मजदूरों और छात्रों को लेकर योगी के फैसले दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कदम उठाने के लिए बाध्य कर दिया। योगी के इस कार्य की पूरे देश में चर्चा है। इस संकटकाल में योगी ने सरकार के स्तर पर जो निर्णय लिए हैं वह बेहद खास हैं।
दिल्ली की वह तस्वीर आपको याद होगी जब लॉकडाउन होंने के बाद भी हजारों बिहार और यूपी के प्रवासी मजदूर आनंद बिहार में जमा हुए। योगी ने खुद राज्य परिवहन निगम की बसों को भेज कर उन्हें वापस लाया। ऐसे लोगों के लिए क्वांरटीन सेंटर बनाए गए जहां उनकी जांच के बाद उन्हें रखा गया। इस दौरान उनके खानेपीने और दूसरी सुविधाओं का भी खयाल रखा गया। यहीं नहीं राज्य की सीमा में बिहार और झारखंड के मजदूरों को भी क्वांरटीन में रखा गया। कोचिंग हब कोटा में फंसे हजारों प्रवासी छात्रों को राज्य परिवहन निगम की 300 बसें भेज कर उन्हें लाया गया। अब प्रयागराज में सिविल और दूसरी सेवाओं के साथ वहां शिक्षाग्रहण कर रहे छात्रों को भेजने का फैसला सरकार ने किया है। कोटा से छात्रों की वापसी पर सियासत भी हो रहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार योगी के फैसले पर सवाल भी उठा चुके हैं। पटना में छात्रों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर कोटा में फंसे छात्रों को लाने की मांग की है, लेकिन नीतीश सरकार कम्यूनिटी संक्रमण फैलने की दलील देकर आपने दायित्व से बचना चाहती है या फिर उसके पास लाखों मजदूरों और छात्रों की घर वापसी के लिए संसाधन ही उपलब्ध नहीं है जिसकी वजह से वह संक्रमण का बहाना ले रहीं है।  योगी सरकार प्रवासी मजदूरों को लेकर काफी संजीदा है।
हरियाणा से मजदूरों की खेप आनी शुरू हो गई है। सरकार ने महाराष्ट्र, आसाम और गुजरात के मुख्यमंत्रियों से भी बात की है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भी कोटा से छात्रों को मंगाना पड़ा है। पंजाब सरकार को भी सीख श्रद्धलुओं को लाना पड़ा है। योगी सरकार राज्य परिवहन निगम की बसों को भेज कर लोगों को वापस ला रहीं है। हालांकि सरकार का यह फैसला बेहद चुनौती भरा है। क्योंकि राज्य में 70 फीसदी कोरोना संक्रमण जमातियों से फैला है,  जिसकी कीमत राज्य को चुकानी पड़ी है। यूपी में तेजी से संक्रमण फैल रहा है। दूसरी बात मुरादाबाद और अलीगढ़ जैसे पत्थरबाजों से निपटना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन सरकार इस हरकतों से बेहद अच्छे तरीके से निप रहीं है और बड़ी सिद्दत अपना दायित्व भी निभा रहीं है।  सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए सभी जिलों में क्वांरटीन केंद्र बनाने का आदेश दिया है। यह सेंटर 15 से 25 हजार बेड के होंगे। यूपी में 11 हजार लोगों को क्वांरटीन में रखा गया है। अब तक तकरीबन दो हजार कोरोना संक्रमित मिले हैं। 31 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 335 लोग स्वस्थ हो चुके हैं। 1700 लोगों को आइसोलेश में रखा गया है। 1500 मरीज एक्टिव हैं। 15 लोगों को जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है। राज्य के 59 जिले संक्रमित हैं। 17 जिलों में कोई संक्रमण नहीं है। नौ जिले कोरोना संक्रमण मुक्त हैं। सरकार का दावा है कि दस लाख की आबादी पर संक्रमण और मृत्युदर दूसरे राज्यों के मुकाबले कम है।
सरकार दूसरे राज्यों से आए कामगारों पर भी विशेष ख्याल रख रहीं है। किसी कि भूख से मौत न हो, इस तरह के लोगों का सर्वे करा भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार जरूरतमंदों को मुफ्त राशन उपलब्ध करा रहीं है। राज्य में 03 करोड़ 50 लाख लोगों को पहली मई से मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जाएगा। हालांकि सरकार के फैसले उसकी मुश्किल बढ़ा सकते हैं। गैर राज्यों से आने वाले लोग कम्यूनिटी संक्रमण फैला सकते हैं। लेकिन सरकार अपनी जिम्मेदारियों से मुंह भी नहीं चुरा सकती है। अब भगवा छवि पर सवाल उठाने वाले आलोचकों को सौ बार सोचना होगा। क्योंकि एक योगी अपने दायित्व पर पूरी तरह तप कर इस कोरोना संक्रमण काल में अपने दायित्व पर खरा उतरा है। योगी ने कोरोना के खिलाफ अपनी जंग का शंखनाद कर दिया हैं।

-प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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