गृहमंत्री से मिले कैप्टन अमरिंदर सिंह

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कृषि कानून रद करने पर जोर दिया
आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली/चंडीगढ़ :
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीते लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन के सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा के लिहाज से पड़ने वाले प्रभाव का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को कृषि कानून तुरंत रद करने के लिए जोर दिया है, क्योंकि इन कानूनों के कारण पंजाब और अन्य राज्यों के किसानों के दरमियान बड़े स्तर पर बेचैनी पाई जा रही है। सरहद पार से विरोधी ताकतों द्वारा सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़काने के लिए की जा रही कोशिशों के खतरे पर चिंता जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री ने किसानों की चिंताओं के जल्द हल की मांग की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जून, 2020 में लाए गए अध्यादेश के समय से लेकर पंजाब में प्रदर्शन चल रहे हैं। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, चाहे अब तक यह प्रदर्शन बड़े स्तर पर शांतमयी रहे हैं परंतु इससे लोगों में बढ़ रहा गुस्सा प्रकट होता है, खासकर उस समय पर, जब राज्य वर्ष 2022 के आरंभ में हो रही विधान सभा चुनावों की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि पंजाब में लंबे समय से चल रहे आंदोलन के कारण न सिर्फ आर्थिक गतिविधियां बल्कि इसका सामाजिक स्तर पर भी असर होने की संभावना है। विशेष तौर पर उस समय, जब राजनीतिक पार्टियां और अन्य समूह अपने-अपने स्टैंड पर अड़े हुए हैं। रिपोर्टों का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि किसान आंदोलन के दिल्ली की सरहदों की तरफ कूच करने के समय से लेकर अब तक 400 किसानों और किसान कामगारों ने अपने हकों के लिए लड़ते हुए जान गंवा दी। मुख्यमंत्री ने याद करते हुए कहा कि उन्होंने इससे पहले शाह से पंजाब से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मिलने के लिए समय मांगा था।
पराली प्रबंधन के लिए 100 रुपए क्विंटल मुआवजे की मांग रखी: कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों को धान की पराली के प्रबंधन के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल मुआवजा देने और डीएपी की कमी की बढ़ रही शंकाओं को दूर करने के मामले भी सुलझाने की मांग की, क्योंकि डीएपी की कमी से किसानों की समस्याएं और बढ़ेंगी। वहीं शाह से अपील की कि वह खाद संबंधी विभाग को पंजाब के लिए संशोधित मांग के मुताबिक डीएपी का स्टॉक बढ़ाने के लिए तुरंत सलाह दें और समय पर उचित सप्लाई सुनिश्चित बनाने के लिए सप्लायरों को आदेश देने के लिए कहा। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आगे कहा कि डीएपी समय पर उपलब्ध होने से उसे खरीदने के लिए पैदा होने वाले डर को घटाने और ब्लैक मार्केटिंग को रोकने में बहुत सहायक सिद्ध होगी, क्योंकि इससे राज्य और केंद्र सरकारों के अक्स को चोट लगती है। राज्य में कुल जरूरत की लगभग 50 प्रतिशत खाद सहकारी सभाओं के द्वारा सप्लाई होती है। डीएपी का उपभोग अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से लेकर नवंबर के तीसरे हफ़्ते तक के कम समय सीमा तक होता है, जबकि 80 प्रतिशत क्षेत्रफल गेहंू की बिजाई अधीन लाना होता है। इस कारण अक्टूबर के मध्य तक राज्य के विभिन्न हिस्सों में डीएपी की आगामी जरूरत होती है, जिससे बिल्कुल मौके पर खाद की कमी से बचा जा सके, जिससे बिजाई पर कोई प्रभाव न पड़े। मुख्यमंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मार्केट में डीएपी की कीमतों में स्थिरता और सब्सिडी की सीमा संबंधी अनिश्चितता आने वाले रबी सीजन में डीएपी की संभावित कमी के डर बढ़ाने का कारण बनती जा रही है।

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