Bhya binu hohi n priti: भय बिन होय न प्रीत’ के जरिए कड़ा संदेश

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राम चरित मानस के सुंदरकांड के एक दोहे के अंश भयबिन होय न प्रीत को दोहराते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या से संदेश दिया कि भारत जितना ताकतवर होगा, उतनी ही शांति बनीरहेगी। चीन को अयोध्या के मंच से जवाब देना जरूरी भी था।
प्रधानमंत्री  मोदी ने जिस दोहे के अंश का उच्चारण किया, वह पूरा दोहा यूं है, विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीत। बोले राम सकोप तबभय बिन होय न प्रीत। राम चरित मानस के सुंदरकांड में यहदोहा उस प्रसंग से जुड़ा है, जब भगवान राम लंका जाने के लिएसमुद्र से रास्ता देने की विनती कर रहे थे। पिछले कई दिनों सेचीन से शांतिवार्ता के बावजूद चीन लगातार भारत के सब्र कीपरीक्षा ले रहा है। दोनों सेनाए पीछे हटी बावजूद इसके चीनलगातार आंखें दिखा रहा है।
चीन को ऐसे में कड़ा संदेश देकरविश्व में अपनी बात भी सरल शब्दों में कह दी। उन्होंने कहा,श्रीराम जी की नीति है- भय बिन होय न प्रीत। इसलिए हमारा देशजितना ताकतवर होगा, उतनी ही प्रीति और शांति बनी रहेगी।राम की यही रीति सदियों से चली आ रही है। हालिया समय में चीन सीमा पर चल रहे तनाव के बीचप्रधानमंत्री मोदी का यह बयान काफी अहम माना जा रहा है। जिसतरह से उन्होंने भारत के ताकतवर होने पर ही शांति होने कीबात कही, उससे माना जा रहा है कि चीन और पाकिस्तानदोनों केलिए इसमें कड़े संदेश छिपे हैं। चीन के साथ विवादों को बातचीतके जरिए सुलझाना हमेशा से ही भारत का मूल मंत्र रहा है।
1962में धोखा खाने के बावजूद हमने कभी भी युद्ध को भड़काने कीकोशिश नहीं की। 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से भारतीयप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीचपिछले 6 सालों में 18 बार मुलाकात हो चुकी है। कई बार दोनोंनेताओं के बीच वन टू वन की मुलाकात हुई है तो कई बारमहत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी दोनों नेताओं के बीचचर्चा हुई।
बातचीत में हर बार चीन शांति का राग ही अलापतानजर आया लेकिन कोई यह नहीं जानता था कि इस बार भी चीन केमन में वही नापाक इरादें पनप रहे हैं जो वह 1962 में दिखा चुकाहै। चीन की नापाक मंशा पर भारत ने साफ कर दिया है कि इसबार करारा जवाब दिया जाएगा और यह जरूरी भी है। इस बार चीन कोसबक सिखाना ही चाहिए। कोरोना वायरस को दुनियाभर में फैलानेके लिए जिम्मेदार चीन वैश्विक स्तर पर विलेन बन चुका है।अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया सहित तमाम यूरोपीय देशचीन की भूमिका को लेकर क्षुब्ध है और कार्रवाई चाहते हैं।
चीन अपनी विश्वसनियता, अंतर्राष्ट्रीयता मान्यता और व्यापारिक दृष्टि सेअपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। यह सही वक्त है जब चीनको सबक सिखाया जा सकता है।चीन को यह बताने का वक्त तो आ ही गया है कि यह 1962का भारत नहीं है। इस बार सीमा पर भारतीय सेना चीनी सेनाके दांत तो खट्टे करेगी ही और साथ ही समुद्र से लेकर आकाश तकचीन को करारा जवाब दिया जाएगा। भारत को यह संकेत साफ-साफचीन को देना होगा कि उसकी हरकतें जारी रहने पर भारत अपनीएकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए चीनी कंपनियों को बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है। वर्तमान माहौलमें अमेरिका समेत दुनिया का हर देश भारत का साथ देगा।
तिब्बत की स्वतंत्रता की लड़ाई को भी अब खुलकर समर्थन देने कावक्त आ गया है और इसके लिए दलाई लामा को भी सक्रिय होनाचाहिए। इसके साथ ही भारत को संयुक्त राष्ट्र के अन्य स्थायीसदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस के साथ मिलकर चीनको सुरक्षा परिषद से बाहर करने की कवायद भी शुरू करनीचाहिए। जाहिर-सी बात है कि अब अंतर्राष्ट्रीय माहौल तेजी से बदलरहा है और इसका लाभ उठाते हुए चीन को हर मोर्चे परअलग-थलग करने का प्रयास करना चाहिए। 1962 से 2020 तक चीन ने धोखा देने की अपनी नीति बिलकुलनहीं बदली। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन पीठ पर छूराघोंप रहा है।
चीन ने एक बार फिर से भारत को धोखा दिया है।चीन ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि यह देश भरोसेके लायक कतई नहीं है। 50 के दशक में हिंदी चीनी भाई भाई कानारा देकर 1962 में हमारे पीठ में खंजर घोंपने वाले चीन ने एकबार फिर से अपने नापाक इरादों को दिखा दिया है। हालांकि 1962 सेलेकर 2020 तक सब कुछ बदल गया है। आज का भारत न तो 1962 काभारत है और न ही आज की दुनिया 1962 की दुनिया है। हालांकि यहभी एक कड़वी सच्चाई है कि इस बीच सिर्फ एक चीज नहीं बदली हैऔर वो है चीन की नापाक हरकत। चीन आज भी 50-60 के दशक केमुगालते में जी रहा है और इसलिए वो लगातार भारत की पीठ में खंजर भोंकने का प्रयास कर रहा है।


राकेश शर्मा
(लेखक आज समाज के कार्यकारी निदेशक हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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