अमेरिका की पिछले माह जारी टैरिफ नीति थी दोनों देशों के लिए घातक
Business News (आज समाज), बिजनेस डेस्क : अप्रैल में अमेरिका ने विश्व के सभी देशों जिनसे वह व्यापार कर रहा था के लिए नई टैरिफ नीति की घोषणा की थी। हालांकि अपनी इस नीति में कुछ परिवर्तन करते हुए अमेरिका ने एक सप्ताह के बाद ही विश्व के 75 देशों के साथ इस नीति पर रोक लगा दी थी लेकिन चीन के खिलाफ अपनी उच्च टैरिफ दरें जारी रखीं थी।
अमेरिका के इस फैसले के बाद दोनों आर्थिक महाशक्तियां एक दूसरे के सामने आ गई थी और टैरिफ वार की संभावना के चलते विश्व के सामने एक नई आर्थिक मंदी का खतरा मंडराने लगा था। एक तरफ जहां अमेरिका ने चीन के उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ की घोषणा की थी वहीं चीन ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ में असमान्य वृद्धि कर दी थी।
नई डील के बाद दोनों देशों ने की टैरिफ में कमी
दोनों देशों ने जेनेवा में ट्रेड डील की और 115% टैरिफ कटौती का ऐलान किया। दोनों के बीच यह समझौता फिलहाल 90 दिनों के लिए है। अमेरिका ने चीनी सामानों पर 145% और चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125% टैरिफ लगा रखा है। इस कटौती के बाद चीन पर अब 30% और अमेरिका पर 10% टैरिफ रह जाएगा।
इसलिए दोनों देश समझौते के लिए हुए मजबूर
चीनी आयात पर 145% अमेरिकी टैरिफ और चीन के 125% जवाबी टैरिफ ने दोनों के बीच सालाना एवरेज 610 बिलियन डॉलर के व्यापार पर काफी दबाव पड़ा। अमेरिका के रिटेल बिजनेस पर बढ़ती कीमतों का सीधा असर पड़ रहा था। इससे कंज्यूमर एक्सपेंडिचर कम हो रहा था। दूसरी ओर अमेरिका में मांग कम होने से चीनी फैक्ट्रीज में प्रोडक्शन धीमा हो गया था। टैरिफ कम करने के पीछे इन दबावों को कम करना और बाजारों को स्थिर करना है। वहीं बढ़ते ट्रेड वॉर से ग्लोबल मार्केट में काफी अनिश्चितता देखने को मिल रही थी। सप्लाई चेन में रुकावट और ट्रेड फ्लो में कमी ने दुनिया में मंदी की आशंका बढ़ा दी थी।
आर्थिक गिरावट कम करने के लिए जरूरी था समझौता
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में दोनों देशों पर बड़े आर्थिक गिरावट को रोकने के लिए आपस के तनाव को कम करने का प्रेशर दुनियाभर से था। अमेरिका ने चीन के साथ 1.2 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार घाटे को नेशनल इमरजेंसी घोषित कर दिया था। टैरिफ कटौती पर दोनों के बीच बातचीत इस असंतुलन को दूर करने की स्ट्रैटजी का हिस्सा है।
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