आदि शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में 6 मठों की स्थापना कर धर्म संस्कृति व नव चेतना का किया जागरण

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aadi shankaracharya ji
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भगवान शंकर के अवतार धर्मगुरु एवं हिन्दू दार्शनिक आदि गुरु शंकराचार्य जी है। हिन्दू धर्म में आदि गुरु शंकराचार्य जी को भगवान शिव शंकर का अवतार माना जाता है, जो अद्वैत वेदान्त के संस्थापक और हिन्दू धर्म  प्रचारक थे। आदि शंकराचार्य जी जीवनपर्यंत सनातन धर्म के जीर्णोद्धार में लगे रहे उनके प्रयासों ने हिंदू धर्म को नव चेतना प्रदान की।
देव भूमि भारत की चारों दिशाओं 4 मठ पीठों की स्थापना
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भारद देश के चारों कोनों में अद्वैत वेदांत मत का प्रचार करने के साथ-साथ- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इन चारों दिशाओं में मठों की स्थापना धर्म की रक्षार्थ की थी।
8 1- आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सबसे पहले दक्षिण भारत में “वेदांत मठ” की स्थापना श्रंगेरी (रामेश्वरम) में की। जिसे प्रथम मठ ‘ज्ञानमठ’ भी कहा जाता है।
8 2- आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पूर्वी भारत (जगन्नाथपुरी) में दूसरे मठ “गोवर्धन मठ” की स्थापना की।
8 3- आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पश्चिम भारत (द्वारकापुरी) में आपने तीसरे मठ “शारदा मठ” की स्थापना की। इस मठ को कलिका मठ भी कहा जाता है।
8 4- आदि गुरु शंकराचार्य जी ने उत्तर भारत में चौथे मठ “बद्रीकाश्रम” की स्थापना की, जिसे “ज्योतिपीठ मठ” भी कहा जाता है।
   इस प्रकार आदि गुरु शंकराचार्य जी ने चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर धर्म का प्रचार पूरे देश में किया। शंकराचार्य जी जहां भी जाते वहां शास्त्रार्थ कर लोगों को उचित दृष्टांतों के माध्यम से तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर अपने विचारों को सिद्ध करते रहे। हर साल आदि गुरु शंकराचार्य जी की पावन जयन्ती के उपल्क्ष में सभी चारों शंकराचार्य मठों में के अलावा पूरे देश में जप, तप, पूजन हवन का आयोजन कर शंकराचार्य जी के बताये गये मार्गों पर चलने का शुभ संकल्प लिया जाता है।

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