स्कूली शिक्षा में समावेशी उत्कृष्टता लाना ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ की आकांक्षा

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राजीव रंजन रॉय

गत दिवस घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी-2020) का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण, सस्ती व समावेशी शिक्षा प्रदान करते हुए स्कूल-शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करना है तथा इस बीच समाज के सामाजिक व शैक्षणिक पक्ष से वंचित रहे समूहों के बच्चों पर विशेष बल दिया गया है। यह एक भारत श्रेष्ठ भारत के निर्माण की ओर एक भविष्यमुखी उद्यम है।
विगत शिक्षा नीतियों का अधिकतर ध्यान स्कूल शिक्षा देने में पहुंच व समानता के मुद्दों पर केन्द्रित किया जाता रहा था, जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 एक जीवंत भारत की नींव रखने का संकल्प लेती है, जहां कोई भी स्कूल शिक्षा से वंचित न रहे, जिस से प्रत्येक विद्यार्थी को सच्चे अर्थों में राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाने में सहायता मिल सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986, जिस में 1992 में संशोधन किया गया था, के अपूर्ण एजेन्डे को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्रभावशाली ढंग से संपन्न किया गया है तथा इसके द्वारा नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के पीछे की अंतर्दृष्टि के द्वारा व्यापक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने हेतु कानूनी मदद मिली। राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की अविवादित भूमिका के कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 विद्यालय की आधारभूत संरचना व अध्यापकों की गुणवत्ता व मान्यता पर पूरी तरह सही ढंग से बल देती है क्योंकि जवाबदेह, पारदर्शी व उसका किफायती होना समय की आवश्यकता है तथा इसी लिए स्कूलों व अध्यापकों को विश्वास के साथ अधिकार देने, उन्हें उत्कृष्ट बनाने हेतु प्रयास करने व अपना बहुत बढ़िया कार्य-निष्पादन प्रस्तुत करने योग्य बनाने के साथ-साथ इसे पूरी तरह पारदर्शिता से क्रियान्वित करके प्रणाली की अखंडता को सुनिश्चित करने व सभी वित्तीय स्थितियों, कार्य-विधियों व परिणामों को जनता के समक्ष पूरी तरह उजागर करना आवश्यक है।
स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में क्योंकि निजी क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण मौजूदगी है, अत: लाभ के लिए नहीं इकाईयों को उत्साहित करने का विचार इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की एक विल्क्षण विशेषता है, जो इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु निजी कल्याणकारी प्रयत्नों को भी उत्साहित करती है, ऐसे जनता हेतु शिक्षा की बढ़िया प्रकृति दृढ़ होती है तथा अभिभावकों व सामाजिक समुदाय को ट्यूशन फीसों में आदेशपूर्ण बढ़ोतरी से भी बचाती है। एक इतना ही महत्तवपूर्ण क्षेत्र, जिस की ओर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है, यह है कि स्कूल परिसरों व समूहों के द्वारा कार्यकुशल ढंग से स्रोत इकट्ठे करने व प्रभावी शासन की आवश्यकता है जो कि एक महत्त्वपूर्ण पहल है क्योंकि इस तथ्य से सभी भलीभांति वाकिफ हैं कि भारत के 28 प्रतिशत सरकारी प्राइमरी स्कूलों व 14.8 प्रतिशत अपर प्राइमरी स्कूलों में 30 से कम विद्यार्थी हैं। वर्ष 2016-17 में प्राइमरी स्कूलिंग प्रणाली में प्रति ग्रेड विद्यार्थियों की औसत संख्या – ग्रेड 1 से 8 तक – लगभग 14 थी तथा छ: से कम विद्यार्थियों का वणर्नीय अनुपात था, उसी वर्ष 1,08,017 स्कूल केवल एक ही अध्यापक के सहारे चल रहे थे तथा उनमें से अधिकतर – 85,743  – प्राइमरी स्कूल थे, जो ग्रेड्स 1-5 तक के बच्चों को ही पढ़ा रहे थे।
इस प्रकार समूह अर्थात स्कूल परिसरों में ताना-बाना स्थपित करने हेतु एक प्रबन्ध विकसित करने की अत्यधिक आवश्यकता है, जहां एक सैकण्डरी स्कूल व अन्य सभी स्कूल होते हैं, इस प्रकार समूह (क्लस्टर) में अधिक स्रोत कार्यकुशलता व कार्य, तालमेल, नेतृत्त्व, शासन व स्कूलों का प्रबन्ध अधिक प्रभावशाली होता है। इससे न केवल स्रोतों की अधिक से अधिक उपयोगिता सुनिश्चित होगी, अपितु राष्ट्र के भविष्य स्कूल के बच्चों में एकता व एकजुटता की भावना भी विकसित होगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सभी के लिए एकसमान व समावेशी शिक्षा के संकल्प के कारण भी विलक्ष्ण व विशेष है तथा सभी संस्थापत पितामहों का महान सपना भी था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 शिक्षा को पूरी तरह सही ढंग से सामाजिक न्याय व गुणवत्ता हासिल करने के एकल महानतम औजार के तौर पर देखती है। समावेशी व न्यायपूर्ण शिक्षा सचमुच अपने-आप में ही एक आवश्यक लक्ष्य है तथा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था प्राप्त करने हेतु भी महत्त्वपूर्ण है, जहां प्रत्येक नागरिक के लिए सपना लेने, प्रफुलित होने व राष्ट्र में योगदान डालने का एक सुअवसर होता है। सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण, किफायती व नैतिक शिक्षा के पथ में आने वाले विविध सामाजिक व आर्थिक अवरोध दूर करने की ओर प्रथम कदम है तथा यही अवरोध ही विभिन्न संकीर्ण विचारधाराओं वाले हमारे अपने लोगों में पृथक्करण, पक्षपात व शोषण के बीज बीजते रहे हैं। यहां यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पहले भी सामाजिक व शिक्षा के पक्ष से वंचित रहे समूहों व चोटी के सामाजिक वर्गों के बच्चों के मध्य खाई पाटने के प्रयास तो हुए थे परन्तु उनके ऐच्छित परिणाम नहीं मिल पाए थे। देश में सामाजिक व शिक्षा के पक्ष से वंचित रहे समूहों की जनसंख्या बहुत अधिक है परन्तु उन कई वर्षों के दौरान उनके बच्चों हेतु गुणवत्तापूर्ण स्कुल शिक्षा संस्थान केवल नाम को ही उपलब्ध रहे हैं। प्रारंभिक बचपन के दौरान देखभाल व शिक्षा (ईसीसीई – एउउए) के साथ और भी व्यापक तौर पर निपटने की आवश्यकता है। शिक्षा हेतु एकीकृत-जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई झ्र व-ऊकरए) के वर्ष 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार प्राइमरी स्तर पर अनुसूचित जातियों से संबंधित लगभग 19.6 प्रतिशत विद्यार्थी थे परन्तु उच्चतर माध्यमिक स्तर पर आकर यह आंकड़ा गिर कर 17.3 प्रतिशत पर आ गया।
पढ़ाई को बीच में ही छोड़ने वालों की संख्या अनुसूचित जनजातियों (एसटी) में अधिक गंभीर (10.6 प्रतिशत से लेकर 6.8 प्रतिशत तक) व दिव्यांग बच्चें हेतु (1.1 प्रतिशत से 0.25 प्रतिशत) थी तथा इन प्रत्येक वर्गों में विद्यार्थियों की संख्या में और भी कमी आई थी। अत: सरकार की ओर से किसी संतुष्टि की कोई गुंजायश नहीं थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में बेहतर सुविधाएं, और अधिक छात्रावासों, छात्रवृत्तियों व अन्य योग्य सहायता हेतु कई प्रकार के हस्तक्षेप की व्यवस्था रखी गई है, ताकि सब के लिए सीखने के विचार को अधिक व्यापक रूप से क्रियान्वित किया जा सके। किसी शैक्षणिक प्रणाली में अध्यापक अटूट अंग ही नहीं होते, अपितु इस सब में वे एक महत्त्वपूर्ण पक्ष बने रहते हैं।

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