नई दिल्ली। कृषि कानूनों और किसान आंदोलन को लेकर संसद में हंगामा हुआ। विपक्ष किसानों की मांगों को मान लेने का दबाव सरकार पर बना हैं। राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद गुलाम नबी आजाद ने किसानों के संबंध में पीएम केसामनेबहुत सी बातेंकहीं। राज्यसभा में पीएम मोदी के सामनेही गुलाम नबी आजाद ने राकेश टिकैत के पिता महेंद्र टिकैत केबारे मेंबात की। उन्होंने कांग्रेस के टकराव वाली स्थिति का वर्णन किया और कहा कि किसानों के साथ लड़ाई लड़ने का कोई फायदा नहीं। किसानों और सरकार के बीच जो गतिरोध बना हुआ है, यह पहली दफा नहीं हुआ है। किसान ने सैकड़ों सालों तक लड़ाई लड़ी है। संघर्ष किया है। किसान ने कभी जमीनदारी के खिलाफ, कभी सामंतवाद के खिलाफ लड़ई लड़ी। उन्होंने कहा कि मैं कुछ अहम आंदोलनों का जिक्र करना चाहता हूं, जिसमें आखिर में सरकार को अंग्रेजों के जमाने में किसानो के सामने झुकना पड़ा। उन्होंने कहा कि किसानों की ताकत हिन्दुस्तान में सबसे बड़ी ताकत है और उनसे लड़ाई कर हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते हैं। मैं इतिहास के कुछ पन्ने रखता हूं। उन्होंने इस दौरान गांधी जी के सत्याग्रह का भी जिक्र किया। गुलाम नबी आजाद ने राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत के द्वारा किए गए किसान आंदोलन को याद करते हुए कहा कि अक्टूबर 1988 में कांग्रेस पार्टी बोट क्लब में एक रैली करना चाहती थी। उन दिनों उसमें पब्लिक मीटिंग करने की इजाजत थी। उस वक्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और मैं संगठन मंत्री, यूपी का प्रभारी और रैली का इंचार्ज था। रैली के लिए पूरे देश से ट्रेनें आने वाली थीं और कई दिनों से उत्तर प्रदेश में महेंद्र टिकैत का आंदोलन चल रहा था। लेकिन जब पेपरों में आया कि बोट क्लब में कांग्रेस की रैली होने वाली है, तभी महेंद्र टिकैत जी ने दिल्ली कूच कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि रैली से एक दिन पहले महेंद्र टिकैत जी 50 हजार लोगों के साथ बिस्तरें, खाट, हुक्के और अनाज लेकर बोट क्लब में बैठे थे। हम चकित रह गए। मैं प्रधानमंत्री जी के पास बैठा था और उन्होंने कहा कि इन सबको निकाला जाए, मगर मैंने कहा कि हमें किसानों के साथ लड़ाई नहीं करनी है। हमने अपना रैली स्थल बदल कर लाल किले में कर दिया। हमने घोषणा नहीं की। जहां ट्रेनें आनी थीं और लोग आने वाले थे, वहां सैकड़ों लोगों को लगा दिया ताकि लोगों को बोट क्लब के बदले लाल किला लाया जा सके। हमने लड़ाई नहीं लड़ी, हम खुद को पीछे कर लिए और नतीजा यह हुआ कि दो-तीन दिन बाद महेंद्र टिकैत जी खुद वापस लौट गए। किसान एक सौ तीस करोड़ लोगों का अन्नदाता है। इनके बगैर कुछ भी नहीं हो सकता। इंसान को जिंदा रहने के लिए दो वक्त की रोटी ये किसान ही देते हैं। इनसे हमें क्या लड़ाई लड़नी है। इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करता हूं कि तीनों कानूनों को वापस ले लिया जाए और कुछ लोग जो गुम हो गए हैं उनके लिए कमेटी बनाई जाए। मैं पीएम मोदी से अनुरोध करता हूं कि हमें किसानों के साथ लड़ाई नहीं लड़नी है। मेरी सरकार से यह गुहार है कि इन तीनों कानूनों को वापस ले लें और कुछ लोग गुम हो गए हैं, उनके लिए एक कमेटी बनाएं। हम 26 जनवरी की घटना की निंदा करते हैं। जो भी लाल किले पर हुआ वह नहीं होना चाहिए था। यह लोकतंत्र और लॉ एंड आॅर्डर के खिलाफ है। राष्ट्रीय ध्वज का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। दोषी के खिलाफ कार्रवाई हो, मगर निर्दोष को फंसाया न जाए।
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