Our Bapu is a symbol of truth and harmony! अग्रलेख-सत्य और सौहार्द के प्रतीक हमारे बापू! 

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आज हम राष्ट्रपिता मोहनदास करमचन्द गांधी का 150वां जन्मदिन मना रहे हैं। डेढ़ सौ साल बाद भी विश्व पटल पर बापू का नाम सर्वोच्च आदर से लिया जाता है। गांधी को उनके नाम से नहीं बल्कि महात्मा के संबोधन से पहचाना जाता है। उन्होंने निजी सुख-साधनों और एश्वर्यपूर्ण जीवन छोड़कर एक संत का जीवन जिया। उन्होंने देश, समाज और विश्व सभी के हित की बात की। अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद कराने के संघर्ष में भी उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा। महात्मा ने कहा जब तक देश के सभी लोगों के तन पर पूरे कपड़े नहीं होंगे, तब तक वह भी सिर्फ एक धोती में जीवन जिएंगे। आपके अखबार “आज समाज” ने महात्मा के 150वें जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि के लिए पिछले तीन महीने से उनकी यादों पर लेख श्रंखला चलाई। मध्य प्रदेश आवास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता गांधीवादी कनक तिवारी ने इसके लिए हमें तथ्य उपलब्ध कराने में मदद की।

गांधी ने बगैर किसी को नुकसान पहुंचाये अहिंसा के रास्ते अपनी लड़ाई लड़ी, जिसकी आज बेहद जरूरत है। इस लड़ाई के दौरान लोग रास्ते से भटके तो उन्होंने अपने आंदोलनों को विराम दे दिया, न कि जीत के लिए गलत रास्ते अपनाये। गांधी ने जाति प्रथा और धार्मिक भेदभाव का सदैव विरोध किया। वह सभी को ईश्वर की एक संतान के रूप में देखते थे। अहिंसा और सत्य के रास्ते चलने की शपथ को उन्होंने देश की आजादी के बाद भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कोई राजनीतिक या सरकारी पद भी नहीं लिया। काठियावाड़ की रियासत (पोरबंदर) के प्रधान मन्त्री के बेटे होने के बाद भी उन्होंने सार्वजनिक जीवन संत की तरह जिया। यही कारण था कि गांधी के वैचारिक विरोधी रहे सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें सबसे पहले रंगून रेडियो के प्रसारण में राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था, जबकि गांधी से असहमति के कारण ही बोस को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी।

गांधी को विश्व ने महान इसलिए माना क्योंकि उनका चिंतन महानता का था। वह कहते थे, जो जैसा सोचता है, बन जाता है। असल में क्षमा ताकतवर करता है, न कि कमजोर। शरीर से कोई शक्तिशाली नहीं बनता बल्कि अदम्य इच्छाशक्ति से बनता है। कायर कभी प्यार नहीं कर सकता है। यह बहादुर इंसान की पहचान है। उनके इन विचारों ने ही उन्हें विश्व का मार्गदर्शक बना दिया। गांधी ने कभी सत्या का रास्ता नहीं छोड़ा क्योंकि वह जानते थे कि सत्य को ज्यादा देर छिपाया नहीं जा सकता। उन्होंने अपना जीवन एक खुली किताब की तरह रखा। हालांकि उनकी आलोचना करने वाले लोग भी मौजूद हैं मगर वह वे लोग हैं, जो सच से अनभिज्ञ हैं। गांधी के विरोधी भी उनका सम्मान से नाम लेते हैं। ऐसे महात्मा की सोच और विचारधारा के साथ उनको नमन वंदन और विनम्र श्रद्धांजलि।

जय हिंद!  

अजय शुक्ल
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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