JNU students got relief, High court ordered to register only on old fees, late fees will not be imposed: जेएनयू छात्रों को मिली राहत, हाईकोर्ट ने पुरानी फीस पर ही रजिस्ट्रेशन कराने का दिया आदेश, नहीं लगेगी लेट फीस

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नई दिल्ली। जेएनयू में लगातार फीस वृद्धि का विरोध हो रहा था। छात्रों ने विश्वविद्यालय से लेकर सड़क तक जेएनयू में हुई फीस वृद्धि के लिए आंदोलन किया था। इसी क्रम में छात्रसंघ ने विवि प्रशासन के हॉस्टल फीस बढ़ोतरी के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिस पर हाई कोर्ट की ओर से विद्यार्थियों को अंतरिम राहत दे दी गई है। कोर्ट ने आज छात्रसंघ की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें राहत दी और कहा कि जहां तक रजिस्ट्रेशन करने से बचे 10 प्रतिशत छात्रों की बात है तो उन्हें एक हफ्ते के अंदर पुरानी फीस पर ही अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इन छात्रों से कोई लेट फीस भी नहीं ली जाएगी। इस मामले पर कोर्ट अगली सुनवाई 28 फरवरी को करेगा। इससे पहले जब सुनवाई की शुरूआत हुई तो छात्रसंघ के वकील ने अदालत को बताया कि कुछ बच्चे जो बढ़ी हुई फीस जमा कर रहे हैं, वह विश्वविद्यालय प्रशासन के डर से कर रहे हैं क्योंकि प्रशासन ने उनसे कहा है कि अगर वो बढ़ी हुई फीस नहीं भरते तो उनकी सेवाएं वापस ले ली जाएंगी। इस पर कोर्ट ने छात्रों को अंतरिम राहत देते हुए फैसला सुनाया। इसके अलाला, हाईकोर्ट ने छात्रावास की नई नियमावली को चुनौती देने वाली जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष की याचिका पर विश्वविद्यालय को नोटिस जारी किया है। अदालत ने नई जेएनयू छात्रावास नियमावली को चुनौती देने के मामले में पक्षकार बनाए गए एचआरडी मंत्रालय और यूजीसी को भी नोटिस जारी किया है। जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि पंजीकरण प्रक्रिया से दूर रहने वाले लगभग 10 प्रतिशत छात्रों को अगले एक सप्ताह के भीतर पंजीकरण कराना चाहिए।

बता दें कि जेएनयू छात्रसंघ ने कोर्ट में याचिका दायर की थी कि विंटर सेमेस्टर रजिस्ट्रेशन में देरी पर विलंब शुल्क वसूली के निर्णय पर रोक लागई जाए। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष, उपाध्यक्ष साकेत मून और अन्य पदाधिकारियों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी कि चर्चा के बिना अक्टूबर में पारित इंटर हॉस्टल मैनेजमेंट मैनुअल अवैध है और इससे छात्र समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। छात्रसंघ ने याचिका में कहा कि संशोधित हॉस्टल मैनुअल में हॉस्टल फीस में बढ़ोतरी, हॉस्टल के कमरों के आवंटन में आरक्षित श्रेणियों के अधिकार प्रभावित करने और इसमें छात्रसंघ प्रतिनिधियों की संख्या घटाने के प्रस्ताव शामिल हैं।

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