Election Analysis by Ajay Shukla-चुनाव विश्लेषण अजय शुक्ल – बिहार चुनाव : मोदी बनाम तेजस्वी

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फंसा है सबका पेंचमहागठबंधन खेमे में उत्साह

कोरोना काल में बिहार चुनाव पर देश-विदेश के लोगों की नजरें टिकी हुई हैं। यह चुनाव सिर्फ बिहार में नहीं हो रहा बल्कि हर उस प्रदेश और देश में भारतियों के बीच चल रहा है जो बिहार से ताल्लुक रखते हैं। देश के भीतर इस चुनाव पर निगाहें इसलिए टिकी हैं क्योंकि इसमें लोग अपने भविष्य को तलाश रहे हैं। बिहार में विधानसभा की 243 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में 122 का जादुई आंकड़ा पाने के लिए सभी दल लालायित हैं। सभी ने अपनी अपनी विसात बिछा रखी है। शुरुआती दिनों में जब भाजपा बिहार में चुनाव की बात कर रही थी, तब राष्ट्रीय जनता दल कोरोना संक्रमण की बात कर इसको आगे टालने को कह रही थी। इससे समझा जा रहा था कि राजद चुनाव के लिए तैयार नहीं है। जब चुनाव की अधिसूचना जारी हुई तो समझा जा रहा था कि यह एकतरफा है और भाजपा-जेडीयू गठबंधन के आगे विपक्ष नेता विहीन है। नितिश के चेहरे के आगे सब अदने लग रहे थे।  मगर अब हालात बदले बदले से हैं और चुनाव मोदी बनाम तेजस्वी हो गया है।

नहीं दे पा रहे हिसाब

चुनाव प्रक्रिया के साथ ही टिकटों का बंटवारा शुरू हुआ तो भी महागठबंधन में टूटफूट सामने आने लगी। नितिश कुमार और नरेंद्र मोदी की जोड़ी के आगे सब फीके पड़ गये। जब चुनाव प्रचार शुरू हुआ और रैलियों, पत्रकारों के बीच महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने बोलना शुरू किया तो सबकी बोलती बंद हो गई। राजद और कांग्रेस के घोषणा पत्र सामने आये तो रोजगार और नौकरी मुद्दा बनने लगा। 15 साल का जेडीयू और भाजपा की सरकार के कार्यों की समीक्षा होने लगी। मुख्यमंत्री नितिश कुमार ने राजद-कांग्रेस के घोषणा पत्र के नौकरी के वादे का मजाक बनाया। भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने तो यहां तक कह डाला कि इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता। 10 लाख नौकरी का वादा पूरा करना संभव ही नहीं है। तभी भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी करने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भेजा, उसमें 19 लाख नये रोजगार सृजन करने की बात कही गई थी। इस पर तंज करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि उन्होंने जिन 10 लाख नौकरियों की बात की है, उसका तो वह हिसाब दे रहे हैं मगर भाजपा अपने 19 लाख रोजगार का हिसाब दे, क्योंकि उससे नेता तो नौकरी ही न होने की बात कर रहे हैं।

नितिश मोदी का हथियार जंगलराज का युवराज

तेजस्वी के नौकरी और सभी समाज को न्याय के मुद्दे के खिलाफ नितिश और नरेंद्र मोदी ने हमला बोलते हुए लालूराज को जंगलराज कहकर अपना प्रचार किया। इस पर सफाई देने के बजाय तेजस्वी ने ईमानदार और युवाओं का हक की बात की। इसका असर यह हुआ कि चंद दिनों में ही तेजस्वी ने अपने सधे हुए भाषण और नित गंभीर आचरण से खुद को बिहार का विकल्प बना दिया। नितिश और मोदी की रैलियों में नीरसता और विरोध का नतीजा यह हुआ कि उन्होंने तेजस्वी और लालू परिवार पर निजी हमले करने शुरू कर दिये। इसके बाद नितिश पीछे चले गये और मोदी की रैलियां बढ़ गईं। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपनी रैलियों में बिहारियों पर कोरोना काल में हुए अन्याय पर राग छेड़ दिया। युवा नेतृत्व और युवाओं की बात ने बिहारियों में इतना जोश भरा कि उनकी रैलियों में जनता खुद दौड़ने लगी। प्रधानमंत्री मोदी मजबूरन इन दोनों युवा चेहरों पर लगातार दो युवराज कहकर हमला कर रहे हैं। वह यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए अखिलेश और राहुल की जोड़ी का उदाहरण दे रहे हैं। प्रधानमंत्री भी दोनों युवा नेताओं पर निजी हमले बोल रहे हैं।

मोदी की चाल में घिरे हैं राजद-कांग्रेस

एक दौर के मतदान में महागठबंधन की बढ़त देखकर अब मोदी ने बिहारी मुद्दों से दूर पाकिस्तान, अनुच्छेद 370, पुलवामा और ‘डबल युवराज’, ‘जंगलराज का युवराज’ जैसी बातों को ही भाषणता में प्रमुखता दी। इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरे दौर का मतदान होने तक चुनाव से नितिश गायब हैं। अब चुनाव मोदी और तेजस्वी के बीच होता दिख रहा है। चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने अपने सभी बड़े चेहरों, मंत्रियों और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लगा दिया है। चुनावी रणनीति के तहत मायावती की बसपा और ओवैसी की एआईएमआईएम का समझौता कर दिया गया। चिराग पासवान को रणनीति के तहत नितिश की पार्टी जेडीयू और महागठबंधन के खिलाफ उतार दिया गया। जिससे वह दलित तबके के वोट काटकर सत्तारूढ़ पार्टी को लाभ पहुंचा सकें। महागठबंधन में रही वीआईपी दल हो या पूर्व मुख्यमंत्री मांझी का दल दोनों को मिलाकर जंग लड़ी जा रही है। यह दल वोटकटुआ के रूप में अधिक नजर आते हैं।

विकल्पहीनता नहीं परिपक्कता

इस चुनाव में दो युवा चेहरों की परिपक्कता लगातार नजर आ रही है। जहां भाजपा के तमाम दिग्गज मोदी सहित तेजस्वी और राहुल को निशाना बना रहे हैं, वहीं यह दोनों सिर्फ मुद्दे की बात करके उनकी खीज बढ़ा रहे हैं। इस खीज में कई जगह नितिश और भाजपा के नेता तमाम लोगों को सार्वजनिक रूप से डांट भी पिला चुके हैं। जाति, धर्म और मंदिर-मस्जिद की बात भी भाजपा नेता लगातार कर रहे हैं। हालात यह हैं कि जिस विपक्ष को विकल्पहीन कहा जा रहा था, उसके दो युवा चेहरे शालीनता और शिष्टाचार के साथ अपने मुद्दों से नहीं भटक रहे। वह सवालों के जवाब काम से देने की बात करते हैं। ऐसे में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की राजनीतिक परिपक्कता भी चर्चा का विषय है। रैलियों में आई भीड़ इनके भाषणों में पूरा उत्साह दिखा रही है जबकि दूसरे खेमें में भीड़ निराश दिखती है।

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