मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने शिअद, कांग्रेस और भाजपा पर साधा निशाना

Punjab CM News (आज समाज), चंडीगढ़ : मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने एक बार फिर से पंजाब की रिवायती पार्टियों पर निशाना साधते हुए कहा है कि इन पार्टियों का लक्ष्य किसी भी तरीके से प्रदेश में सत्ता हासिल करना है और अपने इस प्रयास के लिए ये सभी किसी भी हद तक जा सकते हैं। मान ने कहा कि वास्तव में कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा सिर्फ नफरत और फूट डालने के अपने एजेंडे पर निर्भर कर रही हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि वे इन चुनावों में कभी भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए, लेकिन एक बात पक्की है कि लोगों की ताकत ने पहले शक्तिशाली रहे नेताओं को जमीन पर लाकर खड़ा कर दिया है।

विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों को जड़ से खारिज किया

मुख्यमंत्री ने विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों को जड़ से खारिज करते हुए कहा कि उनके उम्मीदवारों को परेशान किया गया है। उन्होंने कहा कि जिला परिषद की 347 जोनों के लिए कांग्रेस के 331, अकाली दल के 298 और भाजपा के 215 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जबकि पंचायत समिति की 2833 जोनों के लिए कांग्रेस के 2433, अकाली दल के 1814 और भाजपा के 1127 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इससे साबित होता है कि हर पार्टी को इन खुली चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारकर चुनाव लड़ने का उचित अवसर मिला है।

सत्ता प्राप्त करने की उम्मीद में चुनाव लड़ने के लिए आगे

मुख्यमंत्री ने कहा कि पुरानी पार्टियां पंजाब को बिकाऊ प्रदेश समझती हैं, जिस कारण वे सत्ता प्राप्त करने की उम्मीद में चुनाव लड़ने के लिए आगे आ रही हैं। उन्होंने कहा कि एक नेता कह रहा है कि भाजपा अपने नेताओं का सम्मान नहीं करती। भगवंत सिंह मान ने कहा कि अगर इस नेता को भगवे रंग में विश्वास नहीं रहा तो उसे अपनी निराशा दिखाने के लिए मीडिया में लंबे इंटरव्यू देने की बजाय पार्टी छोड़ देनी चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि लोग कांग्रेस से इतने तंग आ चुके हैं कि दिग्गज नेता भी अपने गृह मैदान में हार रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रदेश कांग्रेस प्रमुख की पत्नी गिद्दड़बाहा से हार गई थी, जबकि 1.75 किलोमीटर (कांग्रेसी नेता के घर से राज भवन तक की दूरी) दूर रहने वाले मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी भी डेरा बाबा नानक से हार गई थी। उन्होंने कहा कि सिद्धू जोड़ा भले ही जो मर्जी शेखी मारे, लेकिन हकीकत यह है कि पंजाब सरकार में मंत्री के रूप में नवजोत सिंह सिद्धू की कार्यक्षमता पूरी तरह शून्य थी।

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