आखिर क्यों दिख रही है विराट कोहली में निरंतरता की कमी?

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मनोज जोशी
आज समाज डिजिटल:
जो बल्लेबाज 23 हजार अंतरराष्ट्रीय रनों के करीब हो, जिसके नाम 70 अंतरराष्ट्रीय सेंचुरी (27 टेस्ट, 43 वनडे) और कुल 115 हाफ सेंचुरी हों और जिसका तीनों फॉर्मेट में औसत 50 प्लास का हो तो ऐसे खिलाड़ी पर कोई भी फख्र कर सकता है। विराट पिछले वर्षों में टीम इंडिया के बड़े मैच विनर के रूप में सामने आये हैं लेकिन हाल में उनकी निरंतरता पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल पिछली दस पारियों में विराट सिर्फ 26.70 के औसत से 267 रन बना पाये हैं। मौजूदा सीरीज में वह रन बनाने के मामले में ज्यादा सहज नजर नहीं आ रहे। पिछले साल न्यूजीलैंड का दौरा भी उनका हल्का गया। सबसे बड़ी परेशानी उनका एक ही तरह से आउट होना है। वह आउट साइड द आॅफ स्टम्प गेंदों पर बहुत सहज नहीं दिखाई दे रहे। कई बार शरीर से दूर खेलना उनके लिए महंगा साबित हो रहा है। इसी तरह से वह लीड्स टेस्ट की पहली पारी में एंडरसन का शिकार बने। एंडरसन ने उन्हें टेस्ट क्रिकेट में कुल सातवीं बार और इस सीरीज में दूसरी बार आउट किया है। वैसे इसे लेकर बहुत चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इंग्लैंड की टीम जब भारत आई और भारत की टीम तीन साल पहले इंग्लैंड गई तो एंडरसन उन्हें एक बार भी आउट नहीं कर पाये। 2014 के इंग्लैंड दौरे में जरूर उन्होंने विराट को चार बार और 2012 के कोलकाता टेस्ट में एक बार आउट किया। इन सातों मौकों पर विराट ज्यादातर मौकों पर या तो विकेट के पीछे या स्लिप की दिशा में लपके गये। इस सीरीज में भी दो मौकों पर वह एंडरसन की गेंदों पर विकेट के पीछे लपके गये। एंडरसन यह बात अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि उन्हें चौथे स्टम्प पर गेंदबाजी करके परेशानी में डाला जा सकता है। यहां से विराट उनके सामने यह तय नहीं कर पाते कि गेंद को छोड़ा जाये या खेला जाये क्योंकि यहां से कई बार उनकी गेंद अंदर की ओर आती है और यहीं पर गेंद पिच होकर बाहर की ओर चली जाती है। नॉटिंघम में विराट एंडरसन की एक फुलर लेंथ की गेंद को पहले छोड़ना चाहते थे। जब देखा कि गेंद बाहर नहीं है तो उसे डिफेंड करने चले गये जिससे गेंद बल्ले का बाहरी किनारा लेती हुई विकेटकीपर के दास्तानों में गई। इसी तरह लीड्स टेस्ट की पहली पारी में एंडरसन ने विराट को ऐसे जाल में फांसा कि विराट ठीक उसी तरह आउट हुए जैसे कि अक्सर आउट हो रहे हैं। उन्होंने विराट को स्क्रैम्ब्ल सीम गेंद की और इस बार गेंद को गुडलेंग्थ से थोड़ा पीछे रखा। वह जानते थे कि ऐसी गेंद पर विराट ड्राइव के लिए जाएंगे। हुआ भी यही। विराट अपनी आदत के अनुसार शरीर से दूर खेलने की गलती कर बैठे जो उनके लिए परेशानी का कारण साबित हुई।
इस बारे में विराट कोहली के कोच राजकुमार शर्मा ने कहा कि ऐसा फेज हर बड़े खिलाड़ी के जीवन में आता है। सुनील गावसकर, विवियन रिचर्ड्स और सचिन तेंडुलकर के करियर में भी ऐसे फेज आये हैं। विराट इससे उबरने के लिए मेहनत कर रहे हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिए वह कृतसंकल्प हैं। राजकुमार शर्मा यह भी कहते हैं कि एंडरसन जैसा गेंदबाज जो 600 से ज्यादा विकेट ले चुका हो और अपनी सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में हो और जो दुनिया के चोटी के बल्लेबाजों को परेशान कर चुका हो, ऐसे गेंदबाज का सामना करना वास्तव में काफी चुनौतीपूर्ण होता है। राजकुमार शर्मा मानते हैं कि टीम इंडिया के बैटिंग कोच विक्रम राठौर, रवि शास्त्री उनकी इन परेशानियों पर काम कर रहे होंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वह इन परेशानियों से जल्द ही निजात पा लेंगे।
जब 2014 के इंग्लैंड दौरे पर विराट को इसलिए जूझना पड़ा क्योंकि तब एंडरसन की आउटस्विंगर उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही थी लेकिन इसके चार साल बाद इंग्लैंड के अगले ही दौरे पर विराट ने इस आउटस्विंग का सामना करने के लिए परफैक्ट फुटवर्क का परिचय दिया। वह शॉट्स भी देरी से खेलने लगे। उन्होंने अपने ओपन स्टांस से स्विंग का बखूबी सामना किया लेकिन न्यूजीलैंड दौरे में इनस्विंग का सामना करना उनके लिए परेशानी का सबब साबित हुआ। खासकर जैमिसन की गेंदें जो इनस्विंग जैसी लगती हैं, लेकिन होती आउटस्विंगर हैं, ऐसी गेंदों से उन्होंने इस दौरे में भी परेशान किया और फिर वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में भी परेशान किया। ऐसी गेंदें 80 के दशक के तेज गेंदबाज रिचर्ड हैडली की याद ताजा कराती हैं। विराट की आउट साइट द आॅफ स्टम्प गेंदों की इस परेशानी को एंडरसन ने भी बारीकी से पढ़ लिया और वह उनके खिलाफ इसी तरह की गेंदों और उसमें विविधता लाकर उन्हें लगातार परेशान कर रहे हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि जिस तरह 2014 की असफलता से विराट बखूबी निकलने में सफल रहे, कुछ इसी तरह से वह मौजूदा असफलताओं से भी जल्द निकलने में कामयाब हो जाएंगे।

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