बजरंग से प्रेरणा लेकर अब संगीता करेंगी अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में वापसी

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Bajrang and Sangeeta 1
Bajrang and Sangeeta 1

मनोज जोशी, आज समाज डिजिटल
आम तौर पर कहा जाता है कि पुरुष की कामयाबी के पीछे किसी महिला का हाथ होता है लेकिन टोक्यो ओलिम्पिक में पदक जीतने वाले बजरंग पूनिया के साथ ठीक उल्टा है। वह अपनी पत्नी संगीता फोगट के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा साबित हुए हैं। आलम यह है कि संगीता भी अब अंतरराष्ट्रीय कुश्तियों में उतरने की योजना बना रही हैं और वह भी बजरंग के स्तर की रेसलर बनना चाहती हैं।
सोनीपत स्थित अपने निवास पर संगीता ने आज समाज को बताया कि वह इस साल अक्टूबर में होने वाली वर्ल्ड चैम्पियनशिप के ट्रायल में उतरकर अपनी दावेदारी पेश करेंगी। अब वह अपने घटनों की इंजरी से उबर चुकी हैं।
बारी-बारी से घुटनों में हुई इंजरी से उन्हें तमाम प्रतियोगिताओं से हटना पड़ा था। उन्होंने कहा कि जब हम दोनों का मिशन देश के लिए पदक लाना होगा तो उन्हें विश्वास है कि उसके परिणाम भी अच्छे आएंगे। संगीता ने कहा कि वह पिछले कुछ समय से रीहैब में थीं और अब उन्होंने कुश्ती लड़ना फिर से शुरू कर दिया है। संगीता एशियाई चैम्पियनशिप में ब्रान्ज मेडल जीतने के अलावा एशियाई कैडेट और कामनवेल्थ चैम्पियनशिप में भी सिल्वर मेडल जीत
चुकी हैं। वहीं बजरंग पूनिया ने कहा कि वह ओलिम्पिक मेडल जीतने से खुश हैं लेकिन देशवासियों की उम्मीदों के अनुकूल गोल्ड मेडल न जीत पाने का उन्हें मलाल भी है। उन्होंने कहा कि वह देशवासियों को विश्वास दिलाते हैं कि पेरिस में इस मेडल का रंग जरूर बदलेगा। बजरंग ने स्वीकार किया कि किर्गिस्तान के पहलवान के खिलाफ अपने पहले ही मुकाबले में इंजरी की वजह से उनकी फुट मूवमेंट बुरी तरह प्रभावित हो रही थी। उनका कुश्ती लड़ने का स्टाइल ही
अटैकिंग है लेकिन इस इंजरी ने उन्हें अटैकिंग होकर लड़ने ही नहीं दिया जिससे कड़े संघर्ष के बाद वह यह मुकाबला जीत सके। बजरंग ने कहा कि दूसरी कुश्ती में ईरान के पहलवान के खिलाफ उन्होंने एकतरफा कुश्ती जीती। ैवैसे भी किसी कुश्ती में हम बड़े अंतर से जीतने के इरादे से नहीं जाते।
विपक्षी के सामने आने पर ही उसकी ताकत का पता चलता है। यहां गौरतलब है कि अजरबेजान के अलीयेव हाजी के खिलाफ बजरंग की कई कमजोरियां सामने आईं। ये वही अलीयेव हाजी हैं जिन्हें उन्होंने प्रो रेसलिंग लीग में लुधियाना में कड़े संघर्ष में हराया था। बजरंग ने कहा कि हाल में रूस में एक टूनार्मेंट के सेमीफाइनल के दौरान घुटने में लगी इंजरी की वजह से मैं इस मुकाबले में अपना सौ फीसदी नहीं दे पाया। डाक्टरों ने तो मुझे घटने की सम्भावित सर्जरी के बारे में कह दिया था लेकिन उन्होंने उनकी इस बात को यह कहकर टाल दिया कि ओलिम्पिक का पदक किसी भी चीज से अहम है।

दो साल पहले बजरंग ने इंडिया न्यूज को कजाकिस्तान के शहर नूरसुल्तान में एक वायदा किया था कि वह वर्ल्ड चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल में जिस कजाक पहलवान से करीबी मुकाबले में हारे हैं, उसे वह आने वाले समय में एकतरफा अंतर से हराएंगे। आखिरकार बजरंग ने इस पहलवान को 8-0 के अंतर से हराकर अपना वायदा पूरा किया। बजरंग ने कहा कि उस मुकाबले में दो साल पहले कजाक पहलवान को मेजबान होने का कितना फायदा मिला था, यह पूरी दुनिया ने देखा था। इस बार मैं पहले से ही तय करके आया था कि इस पहलवान को किसी भी हालत में जीतने नहीं दूंगा। मैंने उसकी कमियां देखीं। अगर मैं पूरी तरह से फिट होता तो तकनीकी दक्षता के आधार पर मैं यह मुकबला जीतता। देश में 65 किलोग्राम वर्ग में बजरंग के स्तर के पहलवान न होना भी उनके लिए चिंता का विषय है। इस बारे में बजरंग कहते हैं कि अगर प्रैक्टिस में पार्टनर अच्छा हो तो तैयारी अच्छी करने और प्रदर्शन सुधारने में मदद मिलती है। जिस पॉवर के साथ ट्रेनिंग की जाती है, उसका अभाव मुझे वास्तव में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में होता है। ओलिम्पिक से पहले रूस में हुई तैयारी के बारे में उन्होंने कहा कि वह एक वर्ल्ड क्लास तैयारी थी।

रूस की उस एकेडमी से 2016 का चैम्पियन सोसलान और 74 किलो का ओलिम्पिक चैम्पियन तैयार हुआ। मुझे भी वहां यह कहकर प्रोत्साहित किया जाता था कि मैं अगर ओलिम्पिक में गोल्ड जीतकर लाया तो वे मेरी तस्वीर अपनी एकेडमी में लगाएंगे। बजरंग ने कहा कि प्रो रेसलिंग लीग पहलवानों के लिए अंतरराष्ट्रीय तैयारी करने का एक अच्छा मंच है जहां काफी संख्या में ओलिम्पिक और वर्ल्ड चैम्पियनशिप के मेडलिस्ट आते हैं। रवि दहिया को इसी लीग ने विशिष्ट पहचान दी है। जिन खिलाड़ियों को कोई नहीं जानता था, उन्हें इस लीग ने पहचान दी है। मुझे उम्मीद है कि यह लीग जल्द ही शुरू होगी। इसका हमारे पहलवानों को काफी फायदा मिला। बजरंग का अगला लक्ष्य वर्ल्ड चैम्पियनशिप है। ैमैं इस बारे में डॉक्टरों से विचार-विमर्श करुंगा। अगर वह मेरी इंजरी को गम्भीर बताते हैं तो फिर मेरे अगले लक्ष्य अगले साल होने वाले एशियाई खेल और कॉमनवेल्थ गेम्स होंगे लेकिन बड़ी लक्ष्य पेरिस में अपने पदक के रंग को बदलना होगा।

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