Hafeez, Wahab, Anderson, and Plessy are proving the point of Old Is Gold: ओल्ड इज़ गोल्ड` की बात को सही साबित कर रहे हैं हफीज़, वहाब, एंडरसन, और प्लेसी  

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पाकिस्तान के पूर्व कप्तान रमीज़ राजा सहित तमाम पूर्व क्रिकेटर इस बात के लिए अपने टीम मैनेजमेंट की आलोचना करते हैं कि टीम में अधेड़ उम्र के खिलाड़ियों को क्यों खिलाया जा रहा है और वह भी टी-20 फॉर्मेट में, लेकिन लगता है कि पाकिस्तान के ऐसे खिलाड़ी अब अपने हर तगड़े शॉट और शानदार गेंदबाज़ी के साथ रमीज़ राजा को माकूल जवाब दे रहे हैं।

मोहम्मद हफीज़ और तेज़ गेंदबाज़ वहाब रियाज इसके बड़े उदाहरण हैं। हफीज़ ने इंग्लैंड दौरे में आतिशी अंदाज़ में खेलते हुए लगातार दूसरी हाफ सेंचुरी लगाई। इससे पिछले मैच में बांग्लादेश के खिलाफ भी उनकी लाहौर टेस्ट में हाफ सेंचुरी है। दूसरे वनडे में जहां उन्होंने टीम को बड़े स्कोर तक पहुंचाने में मदद की वहीं तीसरे वनडे में उन्होंने पाकिस्तान की जीत में अहम भूमिका निभाई। उनका अगर पिछले दो साल का औसत देखें तो वह 90 रन प्रति पारी से भी ऊपर का रहा है जबकि वह अगले कुछ महीनों में 40 साल के हो जाएंगे। हैदर अली जैसे उभरते खिलाड़ी की बल्लेबाज़ी को हफीज़ के अनुभव का साथ मिला तो हैदर भी अपने पहले ही मैच में सुपरहिट हो गए। इसके अलावा हफीज़ पार्ट टाइम बॉलर भी हैं। इसी तरह वहाब रियाज़ पर पाकिस्तान टीम प्रबंधन का भरोसा नहीं रह गया था जिससे उन्हें पहले दो टी-20 मैचों में खेलने का मौका नहीं मिल सका लेकिन जब तीसर वनडे में उन्हें मौका मिला तो उन्होने पहले न सिर्फ किफायती गेंदबाज़ी करके दबाव बनाया बल्कि दो विकेट और एक रनआउट करके इंग्लैंड की मज़बूत होती स्थिति पर लगाम लगाकर मैच का रुख पाकिस्तान की ओर मोड़ दिया।

इसी तरह 38 की उम्र में जेम्स एंडरसन ने ऐसा काम कर दिखाया जो आज तक के इतिहास में किसी तेज़ गेंदबाज़ ने नहीं किया। पाकिस्तान के खिलाफ मैच में वह अपने टेस्ट करियर में 600 विकेट का आंकड़ा पार करने के बाद जब यह कहते हैं कि उनका अगला लक्ष्य 700 टेस्ट विकेट पूरा करना है, तो सुनने में बेहद अच्छा लगता है। वह वास्तव में आज के युग के महान तेज़ गेंदबाज़ हैं, जो इस उम्र में भी कभी एक पारी में 5 विकेट चटकाते हैं जबकि उन्हें पिछले दिनों वेस्टइंडीज़ के खिलाफ विकेटों के लिए जूझते देखा गया था जिसकी कसक उन्होंने खासकर पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज़ में पूरी की। साउथ अफ्रीका के फाफ डू प्लेसी भी 36 की उम्र को पार कर चुके हैं। पिछले वनडे में ही उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जैसी धाकड़ टीम के खिलाफ सेंचुरी बनाई है और उससे पिछले मैच में उन्होंने 96 रन की नॉटआउट पारी खेली। वह साउथ अफ्रीकी टीम के एक बड़े हथियार साबित हो रहे हैं। इसी तरह आज टीम इंडिया के विकेटकीपर रिद्धिमान साहा दुनिया के बेहतरीन विकेटकीपरों में से एक हैं लेकिन उन पर आक्रामक शैली में बल्लेबाज़ी करने का दबाव है जिससे उन्हें निकट भविष्य में अपनी जगह टीम से गंवानी पड़ सकती है। 38 साल पार कर चुके श्रीलंका के ऑफस्पिनर दिलरूवान परेरा ने इंग्लैंड और साउथ अफ्रीका के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करके बढ़ती उम्र को अपने खेल पर हावी नहीं होने दिया।

अब सवाल ये है कि जो युवा खिलाड़ियों की पौध को मौका कौन देगा। दरअसल इस समय इंग्लैंड की टेस्ट टीम के जैक क्राले, वनडे टीम के डाविड मालान, ऑस्ट्रेलिया के मार्नुस लैबुशेन और वेस्टइंडीज़ के ओशाने थॉमस जैसे कुछ चुनिंदा खिलाड़ी ही हैं, जिन्होंने युवा उम्र में ही बड़ा खिलाड़ी होने की दस्तक दी है।

कई बार युवा खिलाड़ियों को मौके की बात कहकर वर्तमान टीम का नुकसान हो जाता है। बेहतर यही है कि इन सीनियर खिलाड़ियों के साथ एक या दो युवा खिलाड़ियों को अवसर दिया जाए जिससे टीम पर कोई बुरा असर न पड़े। हैदर अली को लेकर यह प्रयोग कारगर रहा। मौका मिलते ही उनकी प्रतिभा खासकर हफीज़ जैसे सीनियर खिलाड़ी के साथ बल्लेबाज़ी करते हुए उभरकर सामने आई। हैदर अली ने अंडर 19 और पाकिस्तान सुपर लीग में भी शानदार प्रदर्शन किया था।

अब य़हां एक तर्क यह भी है कि टी-20 वर्ल्ड कप एक साल टल गया है। ऐसी स्थिति में उम्रदराज खिलाड़ी के रिफ्लेक्सेज़ और कमज़ोर होने का खतरा है लेकिन यहां इन दिग्गजों के साथ जिन युवा खिलाड़ियों को मौका मिल रहा है, वह आगे कैसा प्रदर्शन करेंगे, अंतरराष्ट्रीय मैचों के दबाव का किस तरह सामना कर पाएंगे। इस दबाव में उनका नैचुरल गेम कितना प्रभावित होगा, ये सब दिलचस्प पहलु होंगे।

एक सच यह भी है कि श्रीलंका, वेस्टइंडीज़ और बांग्लादेश जैसे तमाम देशों में आज वैसा टैलंट सामने नहीं आ रहा, जैसा कई साल पहले आया करता था। ऐसी स्थिति में इन टीमों को दस साल से भी ज़्यादा समय से खेल रहे उन खिलाड़ियों से काम चलाना पड़ रहा है, जिन पर उम्रदराज़ होने का ठप्पा लग चुका है या फिर जिनके रिफ्लेक्सेज़ पहले से काफी कमज़ोर हो चुके हैं।

ज़ाहिर है कि जिन देशों में नया टैलंट आ रहा है, वहां सीनियर खिलाड़ियों की मौजूदगी में उन्हें आगे बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि आज इंग्लैंड ही एकमात्र ऐसी टीम है जो टी-20 की अपनी टीम में एक भी टेस्ट टीम का खिलाड़ी नहीं खिलाती लेकिन वास्तव में इंग्लैंड की टीम अपवाद है। उम्मीद करनी चाहिए कि अगले दो-तीन वर्षों में कई टीमों के खिलाड़ी बदल चुके होंगे और नई युवा पौध प्रदर्शन करती दिखाई देगी।

मनोज जोशी

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