Even without the Big Three, Thiem established his separate existence: बिग थ्री के बिना भी थिएम ने किया अपना अलग वजूद क़ायम

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बेशक इस बार यूएस ओपन टेनिस में न रोजर फेडरर थे और न रफायल नडाल थे। नोवाक जोकोविच भी डिस्कवालिफाई होने की वजह से बाहर हो गए थे। ऐसी स्थिति में ऑस्ट्रिया के डॉमिनिक थिएम और एलेक्ज़ेंडर ज़्वेरेव का उभरना और रोमांच को अंत तक बनाए रखना वास्तव में इसे खेल की जीत ही कहा जाएगा। तीन दिग्गजों के बिना थिएम के चैम्पियन बनने के महत्व को कम नहीं किया जा सकता क्योंकि कभी जोकोविच नौ साल पहले फेडरर को हराकर ऐसा ही आगाज़ किया था और फिर उन्हें टेनिस के बिग थ्री में शामिल होने में देर नहीं लगी थी।

डॉमिनिक थिएम पहले भी तीन मौकों पर ग्रैंड स्लैम टूर्नामेटों के फाइनल में पहुंच चुके हैं लेकिन फ्रेंच ओपन में रफायल नडाल और ऑस्ट्रेलियन ओपन में जोकोविच ने उनके बढ़ते कदमों को रोक दिया लेकिन जिस तरह उन्होंने पिछले साल फ्रेंच ओपन में जोकोविच को हराया और इससे पहले वह इंड़िया वेल्स के बीएनपी पेरियास ओपन में रोज़र फेडरर को हरा चुके हैं और एक-एक अन्य मौकों पर नडाल और मरे को हराकर बड़ा उलटफेर कर चुके हैं, उसे देखते हुए उन्हें आगे की किसी भी प्रतियोगिता में बेहद गम्भीरता से ही लिया जाएगा।

मगर इस बार जर्मनी के एलेक्ज़ेंडर ज़्वेरेव से पहले दो सेट हारने के बाद उन्होंने जिस तरह शानदार वापसी करके चैम्पियन होने का गौरव हासिल किया, वह वास्तव में काबिलेतारीफ है। एक तो उनके पास गज़ब का स्टेमिना है। दूसरे, बेसलाइन पर उनके पास शानदार खेल है। तीसरे उनका बैकहैंड उनकी बड़ी ताक़त है। इन्हीं तीन खूबियों से वह इन दो वर्षों में बिग थ्री (फेडरर, नडाल और जोकोविच) को कड़ी चुनौती देते रहे हैं।

कुछ भी हो, इस बार यूएस ओपन को नया चैम्पियन मिल गया है, उस देश का चैम्पियन जहां से पहले कभी कोई यूएस ओपन का खिताब नहीं जीत सका था। ऑस्ट्रिया के डेमिनिक थिएम ने यह कमाल किया।  सच तो यह है कि इस देश से इन 20-25 वर्षों में थॉमस मस्टर का नाम ही सुनने में आया है जिन्होंने 1995  में फ्रेंच ओपन का खिताब अपने नाम किया था। उनकी इस क़ामयाबी से निश्चय ही ऑस्ट्रिया में टेनिस का खेल एक बार फिर से बहाल हो जाएगा और अगले वर्षों में वहां से कई चैम्पियन बनते दिखाई दे सकते हैं।

पहले डेनिल मेदवेदेव के खिलाफ सेमीफाइनल में दो सेट टाईब्रेकर में जीतने से उनकी फाइनल के लिए अच्छी खासी तैयारी हो गई थी और फिर जर्मनी के एलेक्ज़ेंडर ज़वेरेव के खिलाफ पहले दो सेट हारने के बावजूद खिताब जीतने का कमाल करना किसी अजूबे से कम नहीं था। जहां थिएम का बैकहैंड उनकी बड़ी ताक़त साबित हुआ, वहीं ज़ेवरेव का बैकहैंड उनके लिए हार का एक कारण साबित हुआ। सच तो यह है कि आखिरी तीन सेट में यही दोनों के बीच का बड़ा अंतर रहा। दूसरे थिएम ने ज़ेवरेव के मुक़ाबले काफी कम ग़लतिया कीं। ज़ेवरेव को लगता है कि अपनी तेज़तर्रार सर्विस का कुछ ज़्यादा ही गुमान हो गया था लेकिन एक सच यह है कि उन्हें अपनी सेंकड सर्विस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। दूसरी सर्विस हल्की होने का उन पर इतना दबाव रहता है कि वह फाइनल में कई मौकों पर डबल फाल्ट करते दिखाई दिए। फाइनल में उन्होंने खूब ग़लतियां कीं। इन ग़लतियों से ही ज़ेवरेव ने खेल पर अपनी पकड़ कमज़ोर कर दी थी।

थिएम को यदि अपने खेल के स्तर को और ऊंचा ले जाना है और बिग थ्री के लिए भविष्य की प्रतियोगिताओं में खतरा बनना है तो उन्हें खासकर अपनी सर्विस में और गति लाने की ज़रूरत है। अच्छे बेसलाइनर से आपको फ्रेंच ओपन में तो लाभ मिल सकता है लेकिन अपने खेलने की शैली से उन्हें खासकर विम्बलडन जीतने में खासी मशक्क्त करनी पड़ सकती है। वहीं ज़ेवरेव को भविष्य में नाजुक मौकों पर ग़लतियों से बचना होगा, अपना स्टेमिना और बढ़ाना होगा। उनके पास ऊंची कदकाठी है। उनकी गेंद तक पहुंच भी काफी अच्छी है। पहली तेज़तर्रार सर्विस का भी उन्हें फायदा मिलता है। ज़रूरत है अपने खेल के स्तर को और आगे बढ़ाने की क्योंकि आगे की प्रतियोगिताओं में प्रतियोगी और भी मुश्किल आने वाले हैं।

मनोज जोशी

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