Dhyanchand misses a lot on game day… contemplation must be on this day: ल दिवस पर खूब याद आते हैं ध्यानचंद….चिंतन ज़रूर होना चाहिए इस दिन

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एसएस डोगरा

नई दिल्ली :हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की याद में हर साल खेल दिवस मनाया जाता है और इसी दिन राष्ट्रीय खेल पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया जाता है। इसी दिन हमें ओलिम्पिक में तीन बार गोल्ड जीतने वाली टीम के सदस्य ध्यानचंद याद आते हैं। इसी दिन हम इतिहास में एकमात्र व्यक्तिगत स्पर्धा के गोल्ड विनर अभिनव बिंद्रा को याद कर लेते हैं, जिन्होंने बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में भारत को पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में यह क़ामयाबी दिलाई लेकिन एक सच यह भी है कि ओलिम्पिक में आठ गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम को इन खेलों में पदक जीते 40 साल हो चुके हैं। लेकिन इस दौरान राज्यवर्धन सिंह राठौर से लेकर कर्णम मालेश्वरी और लिएंडर पेस तक और विजेंद्र और सुशील के दो पदकों के अलावा विजय कुमार, गगन नारंग, एमसी मैरीकॉम, योगेश्वर दत्त, पीवी सिंधू, सायना नेहवाल और साक्षी मलिक की कामयाबियां भी याद आती हैं। ओलिम्पिक कुश्ती में खाशाबा जाधव ने देश को पहला ओलिम्पिक वैयक्तिक पदक दिलाया।

इतना ही नहीं ओलिम्पिक हॉकी में भारत ने 1928 से 1956 तक अपना गोल्ड नहीं गंवाया। 1960 में पहली बार हारे लेकिन चार साल बाद भारत ने पाकिस्तान से न सिर्फ पिछली हार का हिसाब चुकता किया बल्कि भारत को फिर से गोल्ड दिलाया। इसके 16 साल बाद भारत को मॉस्को में हॉकी का फिर गोल्ड हासिल हुआ लेकिन उसके बाद से भारत इस खेल में एक कांसे के तमगे के लिए भी जूझता रहा। इसी तरह 1975 के वर्ल्ड कप हॉकी के गोल्ड के बाद भी भारत को इस प्रतियोगिता में कभी पदक हासिल नहीं हो पाया।

क्रिकेट ने ज़रूर तीन मौकों पर देश को बड़े दायरे में गौरवान्वित किया। 1983, 2011 में वनडे वर्ल्ड कप और 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप जीतना भारत की विश्व स्तर की बड़ी क़ामयाबियां रहीं।

खेलों के लिए जब दूरदर्शन का अलग चैनल है तो यह रेडियो के लिए क्यों नहीं है। खेलों की निचले स्तर की खबरों को बड़े दायरे में लाने से खेलों का ही विकास होगा। हर ज़िले में स्पोर्ट्स स्कूल क्यों नहीं हैं। स्कूलों में खेलों के पीरियड को मौजमस्ती के लिए ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है। इस दौरान ज्यादातर स्कूलों में गम्भीर रूप से छात्रों को खेलों का अवसर क्यों नहीं दिया जाता। हर राज्य में आधुनिकतम सुविधाओं से जुड़ी स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी क्यों नहीं है। हर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी और पैरा खिलाड़ियों के लिए सरकारी नौकरी की सुविधा क्यों नहीं है। सभी खिलाड़ियों और कोचों के लिए पेंशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मेडिकल सुविधाओं निशुल्क क्यों नहीं हैं। इन बातों का भी जायज़ा लिया जाना ज़रूरी है कि हरियाणा और केरल जैसे राज्य ही खेलों में क्यों ऊपर उठे। मेजर ध्यानचंद को आज तक भारत रत्न से सम्मानित क्यों नहीं किया गया। भारत सरकार के खेलो इंडिया और दिल्ली सरकार के मिशन एक्सलेंस से भी खेलों को बढ़ावा दिया गया है।

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