Business News Update : अमेरिका से व्यापार समझौते का भारत पर बढ़ रहा दबाव

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Business News Update : अमेरिका से व्यापार समझौते का भारत पर बढ़ रहा दबाव
Business News Update : अमेरिका से व्यापार समझौते का भारत पर बढ़ रहा दबाव

समझौता जरूरी लेकिन भारत को अपने हितों के प्रति दृढ़ रहने की जरूरत : जीटीआरआई

Business News Update (आज समाज), बिजनेस डेस्क : वर्तमान में विश्व के सभी प्रमुख देश जो एक साझे दबाव से गुजर रहे हैं वो है अमेरिका द्वारा नई टैरिफ दरें लागू करना। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अमेरिका आगामी एक अगस्त से नई दरें लागू करेगा। जिसमें कोई ढील नहीं दी जाएगी। अमेरिका उन देशों के नाम भी घोषित कर चुका है जो एक अगस्त से नई दरों के तहत भुगतान करेंगे।

हालांकि भारत उन देशों में शामिल नहीं है। भारत और अमेरिका अभी भी व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की कोशिश में जुटे हुए हैं जिसपर अंतिम सहमति नहीं बन पा रही। अमेरिका के बढ़ते दबाव के बावजूद भारत को अपने हितों के प्रति दृढ़ रहने की जरूरत है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट में यह टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया कि भारत को अपने रास्ते पर बने रहना चाहिए और कृषि जैसे प्रमुख क्षेत्रों में समझौता करने से बचना चाहिए। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दबाव में व्यापार समझौता करने से अपरिवर्तनीय परिणाम हो सकते हैं। खासकर तब जब ऐसे समझौते अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के बाद टिक न पाएं।

ट्रंप ने व्यापार वार्ता के बीच इन देशों पर लगाया टैरिफ

इन शर्तों को लागू करने में सीमित सफलता मिलने के कारण, ट्रम्प प्रशासन ने दंडात्मक उपाय अपनाए हैं। 7 जुलाई को, अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरिया से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की। कुछ ही दिनों बाद, 12 जुलाई को, यूएस ने यूरोपीय संघ और मेक्सिको से आयातित उत्पादों पर 30 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी, जबकि इन देशों के साथ बातचीत अभी भी जारी है।

भारत सहित 20 से ज्यादा देश दबाव का सामने कर रहें

जीटीआरआई रिपोर्ट ने भारत से आग्रह किया कि उसे समझना होगा कि वह अकेला देश नहीं है जो इस तरह के दबाव का सामना कर रहा है। अमेरिका इस समय 20 से ज्यादा देशों के साथ व्यापार वार्ता कर रहा है और 90 से ज्यादा देशों से रियायतें मांग रहा है। हालांकि, अधिकांश लोग इसका विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ये मसाला सौदे राजनीति से प्रेरित हैं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कोई स्थायी निश्चितता प्रदान नहीं करते हैं।

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