President Murmu On Deadlines For State Bills, (आज समाज), नई  दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रेसिडेंट और गवर्नर के लिए स्टेट के बिलों को लेकर समयसीमा तय करने के मामले में सवाल उठाए हैं। दरअसल, तमिलनाडु सरकार और वहां के राज्यपाल के बीच हुए विवाद के बाद यह मामला उठा था। राज्यपाल ने प्रदेश सरकार के बिल रोककर रखे थे और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आठ अप्रैल को फैसला सुनाते हुए कहा था कि गवर्नर के पास कोई वीटो पावर नहीं है।

राष्ट्रपति को तीन माह में लेना होगा फैसला : कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर देश के राष्ट्रपति को तीन माह में फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति मुर्मू ने शीर्ष अदालत के इस फैसले का कड़ा खंडन किया है। उन्होंने इस बात जोर दिया कि संविधान में ऐसी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, इसलिए शीर्ष अदालत कैसे राज्यपाल और राष्टÑपति के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की डेडलाइन करने का फैसला दे सकती है।

संविधान के अनुच्छेद 200 का हवाला दिया

राष्ट्रपति के जवाब में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल की शक्तियों और विधेयकों को स्वीकृति देने या न देने की प्रक्रियाओं के साथ-साथ राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने का विवरण दिया गया है। हालांकि, अनुच्छेद 200 में राज्यपाल द्वारा इन संवैधानिक विकल्पों का उपयोग करने के लिए कोई समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है। इसी तरह, अनुच्छेद 201 विधेयकों को स्वीकृति देने या स्वीकृति न देने के लिए राष्ट्रपति के अधिकार और प्रक्रिया को रेखांकित करता है, लेकिन यह इन संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई समय सीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है।

राज्यपाल और राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियां

्नराष्टÑपति के जवाब में यह भी कहा गया है कि भारत का संविधान ऐसे कई उदाहरणों को मान्यता देता है, जहां किसी राज्य में कानून लागू होने से पहले राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। राज्यपाल और राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियां, जैसा कि अनुच्छेद 200 और 201 के तहत प्रदान की गई हैं, संघवाद, कानूनी एकरूपता, राष्ट्रीय अखंडता और सुरक्षा व शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत सहित कई विचारों द्वारा आकार लेती हैं। इस जटिलता को और बढ़ाते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर परस्पर विरोधी निर्णय दिए हैं कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की स्वीकृति न्यायिक समीक्षा के अधीन है या नहीं।

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