जीवन में ख़ुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम स्थाई प्रेम से भरपूर रहें : संत राजिन्दर सिंह महाराज

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Panipat News/To be happy in life it is necessary that we should be filled with lasting love: Sant Rajinder Singh Maharaj
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आज समाज डिजिटल
– संत राजिन्दर सिंह महाराज
जीवन में ख़ुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम स्थाई प्रेम से भरपूर रहें। सदा-सदा का प्रेम केवल प्रभु का प्रेम है, जोकि दिव्य व आध्यात्मिक प्रेम है। जब हम इस संसार में दूसरों से प्रेम करते हैं, तो हम इंसान के बाहरी रूप पर ही केंद्रित होते हैं और हमें जोड़ने वाले आंतरिक प्रेम को भूल जाते हैं। सच्चा प्रेम तो वह है जिसका अनुभव हम दिल से दिल तक और आत्मा से आत्मा तक करते हैं। बाहरी रूप तो एक आवरण है, जो इंसान के अंतर में मौजूद सच्चे प्रेम को ढक देता है।

व्यक्ति के सार-रूप से प्रेम प्रकट कर रहे होते हैं

मान लीजिए कि आपके पास खाने के लिए कुछ अनाज है। अनाज प्लास्टिक की थैली में लपेटा जा सकता है और डिब्बे में भी। हम उस थैली या डिब्बे को नहीं, बल्कि उसके अंदर मौजूद अनाज को खाना चाहते हैं। इसी तरह जब हम किसी इंसान से कहते हैं कि ”मैं तुमसे प्रेम करता हूँ“, तो हम उस व्यक्ति के सार-रूप से प्रेम प्रकट कर रहे होते हैं। बाहरी आवरण, या हमारा शारीरिक रूप, वो नहीं है जिससे हम वास्तव में प्रेम करते हैं। वास्तव में हम उस व्यक्ति के सार से प्रेम करते हैं, जोकि उसके भीतर मौजूद है।

हम किसी व्यक्ति से अपने जीवन की संपूर्ण अवधि के दौरान प्रेम कर सकते हैं

हम यह कैसे जान सकते हैं? जीवन के दौरान इंसान में कितने सारे बदलाव आते हैं! शुरू में उसका आकार एक नन्हे शिशु का होता है, फिर वह बालक के रूप में स्कूल जाने वाला बच्चा बनता है, किषोर से वयस्क बनता है, वयस्क से तीस, चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे, और सौ वर्ष की आयु को पार करता है। हम किसी व्यक्ति से अपने जीवन की संपूर्ण अवधि के दौरान प्रेम कर सकते हैं, चाहे उस व्यक्ति का बाहरी रूप लगातार बदल रहा होता है, उसकी आयु लगातार बढ़ रही होती है। असल में उस बाहरी आवरण के भीतर वो इंसान होता है जिससे हम प्रेम करते हैं।

हमारे जीवन का उद्देश्य ही यही है कि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाएँ

रहस्य यह है कि हम उस व्यक्ति के सार से प्रेम करते हैं। हम उस व्यक्ति के मूल स्वरूप से प्रेम करते हैं, और वह मूल आत्मिक स्वरूप स्वयं प्रेम ही है। हमारे जीवन का उद्देश्य ही यही है कि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाएँ, और फिर अपनी आत्मा का मिलाप उसके स्रोत, परमात्मा, में करवा दें। इस उद्देश्य को प्राप्त करने में संत व महापुरुष हमारी सहायता करते हैं। एक पूर्ण संत अपनी रूहानी तवज्जो हमें प्रदान करता है, जिससे कि हमारी आत्मा अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ने के लायक बन जाती है।
शारीरिक रूप की ओर से ध्यान हटाएँ और अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव करें
तब हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाते हैं। फिर सत्गुरु के मार्गदर्शन में नियमित ध्यानाभ्यास करते हुए हमारी आत्मा आध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति करती जाती है और अंततः परमात्मा में जाकर लीन हो जाती है। आइए हम सभी अपने बाहरी शारीरिक रूप की ओर से ध्यान हटाएँ और अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव करें। तभी इस मानव चोले में आने का हमारा लक्ष्य पूर्ण होगा और हम सदा-सदा के लिए प्रभु में लीन होने के मार्ग पर अग्रसर हो पाएँगे।
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