आज शिक्षक की दशा

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आज समाज डिजिटल, बिंदु गोयल :

मैं ही हूंँ वह जो निरपराध होकर भी,
कुछ गलत लोगों की सजा पा जाता हूंँ।
कहीं नजर नहीं आता मेरा सम्मान मुझको,
बस वैतनिक व्यक्ति ही बन जाता हूंँ।
माना कि वेतन लेता हूंँ
माना कि वेतन लेता हूंँ
पर सच मानो कक्षा में मैं तन से नहीं मन से ही जाता हूंँ।
उस समय नहीं आता ख्याल कि क्या मिलेगा,
कुछ कम या कुछ ज्यादा मिलेगा।
बस पढ़ाता ही जाता हूंँ सिखाता ही जाता हूंँ और अपने नैतिक कर्तव्य को निभाता ही चला जाता हूंँ।
अरे बच्चों मैं ही हूंँ वह जोअपने सपनों को,
तुम सब में जीता जाता हूंँ।
और अधिक क्या कहूंँ मैं तुमको,
मैं हिंदी अध्यापक हूंँ जो,
अ से अज्ञान, से ज्ञ से ज्ञानी तक बनाता हूंँ।
और मेरा नाम ही बिंदु है,
अगर कहीं पीछे लग जाऊँ तो बस कीमत बढ़ाता जाता हूंँ ।

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