जानिए कौन से ग्रह शुभ स्थिति में होने चाहिए
Vivah Ka Shubh Yog, (आज समाज), नई दिल्ली: हर कोई चाहता है कि शादी के बाद उसका वैवाहिक जीवन अच्छा बीते। जीवनसाथी का साथ मिले। घर में शांति रहे और सुख-समृद्धि मिलती रहे। कुछ लोगों के वैवाहिक जीवन में आपसी तनाव, पार्टनर के स्वास्थ्य संबंधी परेशानी या आर्थिक अस्थिरता रहती है।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? दरअसल, वैदिक ज्योतिष के अनुसार सुखी और स्थिर वैवाहिक जीवन के लिए कुछ ग्रहों का शुभ और मजबूत होना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जब ये ग्रह उदय अवस्था में होते हैं और कुंडली में स्पष्ट दिखाई देते हैं, तब विवाह के योग आसानी से बनते हैं और कोई रुकावट नहीं आती।

ये ग्रहण करते है प्रभावित

विवाह और दांपत्य जीवन को गुरुदेव, शुक्रदेव, चंद्रदेव, लग्नेश और सप्तमेश जैसे ग्रह सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि यदि ये ग्रह शुभ स्थिति में हों, तो व्यक्ति को योग्य जीवनसाथी मिलता है और शादी के बाद जीवन प्रेम, समझ और सुख से भर जाता है।

देवगुरु का प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पतिदेव को विवाह और दांपत्य सौभाग्य का प्रमुख ग्रह माना गया है। विशेषकर कन्या के विवाह में बृहस्पति देव की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यदि जन्मकुंडली में बृहस्पति देव उच्च अवस्था में विराजमान हों या मित्र राशि में स्थित हों, तो विवाह में किसी प्रकार की बाधा नहीं होती और योग्य जीवनसाथी प्राप्त होने के योग प्रबल होते हैं।

  • बृहस्पति देव की कृपा से विवाह के बाद जीवन में सुख, सम्मान, संतान सौभाग्य और शांति बनी रहती है। यदि कुंडली में बृहस्पति देव नीच राशि में हों या पाप प्रभावों से पीड़ित हो रहे हों, तो विवाह में विलंब अथवा रुकावटें उत्पन्न हो सकती हैं।
  • ऐसे में पीली वस्तुएं, पीले पुष्प, पीली मिठाई, पीले वस्त्र तथा केला आदि दान करने से बृहस्पति देव की स्थिति मजबूत होती है। ज्योतिषी से सलाह लेने के बाद पुखराज रत्न धारण करने से भी बृहस्पति देव की कृपा प्राप्त होने लगती है।

शुक्र ग्रह का महत्व

शादी और दांपत्य सुख के मुख्य देवता शुक्रदेव माने जाते हैं। विवाह का मुहूर्त निकालते समय सबसे पहले शुक्रदेव की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यदि जन्मकुंडली में शुक्रदेव अस्त हो रहे हों या किसी पाप प्रभाव से पीड़ित हो रहे हों, तो शुभ विवाह योग प्रबल नहीं होते।

बृहस्पति देव और शुक्र देव का उच्च स्थिति में होना अनिवार्य

विवाह कार्य को सफल बनाने के लिए बृहस्पति देव और शुक्र देव दोनों का उच्च स्थिति में अनिवार्य माना गया है। यदि शुक्रदेव कमजोर स्थिति में हों, तो शुक्रवार के दिन सफेद वस्तुएं जैसे दूध, दही, चावल, सफेद मिष्ठान, सफेद वस्त्र और सफेद पुष्पमाला दान करने से शुक्र देव शुभ फल प्रदान करने लगते हैं और विवाह में आ रही बाधाएं दूर होने लगती हैं।

लग्न भाव और सप्तम भाव का प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में लग्न भाव व्यक्ति की पहचान, प्रकृति और जीवन की दिशा को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण भाव माना गया है। यदि लग्न में किसी ग्रह का पाप प्रभाव उपस्थित हो रहा हो, तो विवाह के मार्ग में रुकावटें आ सकती हैं। ऐसे समय में उस ग्रह के बीज मंत्र का जाप करने और आवश्यक दान करने से बाधाएं कम होने लगती हैं। इसके साथ ही शुभ योग प्रबल होने लगते हैं।

वहीं, सप्तम भाव को विवाह और दांपत्य जीवन का प्रमुख भाव माना जाता है। इस भाव पर शुभ दृष्टि पड़ रही हो, सप्तमेश देव मजबूत हों और संबंधित ग्रह अनुकूल स्थिति में विराजमान हों, तो विवाह के योग शीघ्र बनते हैं और शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं।

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