Bihar elections – Tejaswi’s rallies in Bihar indicate number one: बिहार चुनाव-बिहार मे तेजस्वी की रैलियाँ तो नम्बर एक का इशारा कर रही

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पर रैलियो मे सुनने की गम्भीरता का अभाव भी दिख रहा है और तेजस्वी के बोलते वक्त भी लगातार होता हुडदंग मेरे राजनीतिक चिन्तन और आकलन को थोडा विचलित भी कर रहा है ।
कांग्रेस मे तो भष्मासुरो की भरमार है और चिराग रोशनी के बजाय विपरीत हवा बहा रहा है ।
कभी भाजपा के खिलाफ प्रधानमंत्री मटेरियल माने जाने वाले नितीश मुख्यमंत्री के लिए भी महंगे होते दिख रहे है तो सत्ता की मलाई चाट कर भाजपा ने बडी चालाकी से चाटा हुये दोने की गन्दगी नितीश के मत्थे मढ़ने मे कामयाबी पा लिया है ,ऐसा लगता है ।
कई बार नये हो या पुराने छोटे खिलाडी भी मैदान मे थका देते है और उनसे जीतने वाला भी उस थकान मे बराबरी के पहलवान से मार खा जाता है ।
वैसे ये बिहार है जिससे एक जमाने तक देश को दिशा दिखाने और देश के लिए लडाई छेड़ने की उम्मीद की जाती रही है पर श्री बाबू , दिनकर , जयप्रकाश ,कर्पूरी जैसो की धरती मे राजनीतिक खाद की जगह यूरिया ने उर्वरा शक्ति उत्पादकता  को शायद बहुत चोट पहुचाया है ।
गम्भीर बहस चुनाव से गायब है और अपने अपने पुराने हथियार पर ही शान चढ़ाने की सभी की कोशिश दिख रही है जो एकतरफ़ा फैसलाकुन तो नही दिख रही है ।
इस बार कुर्सी खाली करो की जनता आती है नारा अभी तक तो किसी भी कोने से सुनायी नही दिया ।
दुष्यंत की पंक्तियाँ कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही मेरी कोशिश है की कुछ सूरत बदलनी चाहिये जैसी आवाज भी अभी तक कही से नही आई है जबकी चुनाव प्रचार उठान ले चुका है और सारे महारथी सवार हो चुके है अपने रथो पर ।
ऐसा भी नही सुना अब तक कि “पक गई है आदते बातो से सर होंगी नही ,कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नही ।
तो कैसा हो गया ये बिहार ? ये वो बिहार तो नही जहा जेल तोड कर अंग्रेजो को चुनौती दिया था जयप्रकाश ने और ये वो बिहार भी नही है जहा के गांधी मैदान मे सशक्त नेता इन्दिरा गांधी को तार्किक और फैसलाकुन चुनौती दिया था ।
अब अगर किसी भी तरह चाहे धर्म या जाती ,धन या धमकी ,शराब या ताड़ी ही सरकार बनने की बुनियाद हो जाये और मुद्दो पर बहस और जवाबदेही कोसी की बाढ  मे बह गई हो और नंगा भूखा मतदाता भी जाती और धर्म मे ही आत्मसम्मान और भविष्य तलाश रहा हो तो क्या बात करना इस चुनाव की और क्या आकलन करना की क्या होगा और इस चुनाव के परिणाम का बिहार के भविष्य पर देश की राजनीती के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा । जो जीतेगा वो लूटेगा और बिहार तथा यहा का किसान मजदूर वैसे ही एक रोटी और कपडे के लिए देश भर मे भटकेगा । शिकायत करने का अधिकार भी कहा है फिर जनता को की सत्ता ने उसके लिए क्या किया ? क्योकी आपने पूछा ही नही किसी भी चुनाव मे की पिछ्ले 5 साल मे क्या किया और फिर ये भी नही की बताओ की अगले 5 साल मे कौन कौन  क्या करेगा ? वो सुन कर और गुन कर वोट डालते तो वो होता और उसके लिए सबकी जवाबदेही होती ।
जो बोवोगे वही तो काटोगे आप चाहे जनता हो , कार्यकर्ता हो या नेता हो ।
तो आईये इन्तजार करते है बिहार के चुनाव मे पाकिस्तान , मुस्लमान ,
कश्मीर,अगड़ा , पिछड़ा , यादव , कुर्मी , पासवान ,
माझी , ठाकुर , ब्राह्मण ,  भूमिहार , कायस्थ जैसे महत्वपूर्ण मुद्दो पर मतदान का । बाढ ये क्या होती है ,चमकी बुखार ये क्या होता है , बेकारी ये क्या होती है , मजदूरो का पलायन या फिर सड़क पर हजारो मील का सफर याद नही ,अपराध देखा नही , पढाई चाहिये नही । छोडिए इन फालतू चाय या काफी के समय की चर्चाओ को ।
आईये बिहार को और बदतर बिहार बनाये है ।
क्या है संभावनाए ?
डा सी पी राय
राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार
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