• मुकद्मा अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम तथा बीएनएस की धारा 112 के तहत चलाने की मांग

Jind News (आज समाज) जींद। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) कार्यकर्ताओं ने ने सोमवार को हरियाणा के एडीजीपी वाई पुरन कुमार आत्महत्या मामले में निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर महामहिम राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन लघु सचिवालय में सौंपा।

बसपा प्रदेश सचिव सुरत सिंह, जोन प्रभारी मास्टर जिले सिंह कश्यप, जिला अध्यक्ष राकेश सिवानामाल ने कहा कि गत सात अक्टूबर को हरियाणा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक वाई पुरन कुमार द्वारा की गई आत्महत्या न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है बल्कि यह उस जातिवादी मानसिकता का भयावह प्रतिबिंब है, जो आज भी हमारे प्रशासनिक ढांचे में व्याप्त है। वाई पुरन कुमार की आत्महत्या नोट और और डाइंग डिकलरेशन के मुख्य अंश (हिंदी अनुवाद) उच्च अधिकारियों द्वारा उनकी आवाज को दबाना दर्शाता है।

जातिवादी मानसिकता बेहद शर्मनाक घटना

यह कथन न केवल एक डाइंग डिकलरेशन है बल्कि यह भारतीय न्याय संहिता बीएनएस 2023 की धारा 112 के अंतर्गत आत्महत्या के लिए उकसाने का स्पष्ट मामला बनता है। साथ ही अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत जाति-आधारित उत्पीडऩ की धाराएं स्वत: लागू होती हैं। इस घटना पर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे जातिवादी मानसिकता की बेहद शर्मनाक घटना  बताया है। यह घटना दर्शाती है कि उच्च पदों पर पहुंचने के बावजूद दलित अधिकारियों को जाति के आधार पर अपमानित किया जाता है और यह प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भेदभाव का जीवंत प्रमाण है।

न्यायपालिका की गरिमा पर हमला

उन्होंने इस मामले में निष्पक्ष जांच, दोषियों की गिरफ्तारी तथा उच्चतम न्यायालय की निगरानी की मांग की है। इसके अतिरिक्त हाल ही में देश के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ;ब्श्रप्द्ध पर एक व्यक्ति द्वारा जूता फेंकने की घटना अत्यंत निंदनीय है। यह घटना न केवल न्यायपालिका की गरिमा पर हमला है, बल्कि यह मनुवादी मानसिकता द्वारा संविधान की आत्मा को चुनौती देने का प्रयास है। उन्होंने मांग की कि डीजीपी शत्रुजीत कपूर, एसपी रोहतक नरेंद्र बिजारणिया एवं अन्य नामजद अधिकारियों की तत्काल गिरफ्तारी की जाए।

मुकद्मा अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम तथा बीएनएस की धारा 112 के तहत चलाया जाए। इस मामले की निगरानी उच्चतम न्यायालय या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा की जाए।  सीजेआई पर हुए हमले की उच्चस्तरीय जांच हो और दोषियों को संविधान विरोधी कृत्य के लिए दंडित किया जाए। जाति-आधारित उत्पीडऩ के मामलों में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

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